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खंडहरों में तब्दील हो रहे हैं कांगड़ा के धार और धंगड़ गांवों के मकान

इन हिमाचल डेस्क।। आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के कुछ ऐसे गांवों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके आसपास के सारे गांव विकास की डोर से जुड़ चुके हैं मगर इन गांवों का नसीब अभी तक नहीं फिरा है। प्रदेश के कांगड़ा जिले के इन गांवों के लोग आज भी अंग्रेजों को याद करते हैं। इसलिए, क्योंकि यहां पर यातायात का साधन वह रेलगाड़ी है, जो अंग्रेजों के जमाने में बनी थी। इन गांवों को सड़क तक नसीब नहीं हो पाई है। जब शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क न हो तो मुश्किल होना लाजिमी है। ऐसा ही हुआ धार और दंगड़ नाम के इन गांवों के साथ और यहां की पीढ़ी बेहतर भविष्य के लिए पलायन कर रही है। गांव में आपको ज्यादातर बुजुर्ग लोग ही मिलेंगे।

बरसात आने वाली है और इस गांव के लोगों की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। दरअसल बरसात में यहां पर भूस्खलन होता रहता है। कई बार तो रेलगाड़ी भी कई हफ्तों तक बंद हो जाती है। फिर उस दौरान धार-धंगड़ में रहने वाले करीब 2 हजार लोगों के लिए वक्त बिताना सजा जैसा हो जाता है। धार-धंगड़ गांव कांगड़ा के देहरा उपमंडल में आते हैं। आलम यह है कि लोग इन गांवों को खुद ही कालापानी कहकर पुकारते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि नजदीकी दुकान से दूध लाना हो तो 6 किलोमीटर पैदल चलना होता है। राशन के लिए 10 किलोमीटर की दूरी तय करके चंदुआ जाना पड़ता है। इन गांवों में तीन दुकानें तो हैं मगर उनके लिए भी सामान रानीताल से ट्रेन के जरिए लाना पड़ता है। बीमारों को चारपाई पर उठाकर करीब 10 किलोमीटर दूर सपड़ यू मसूर PHC ले जाना पड़ता है। या फिर सीधे नगरोटा सूरियां या टांडा मेडिकल कॉलेज का रुख करना पड़ता है। लोग तो कहते हैं कि पिछले 10 सालों में करीब डेढ़ दर्जन लोगों की मौत इसीलिए हो गई क्योंकि उन्हें वक्त पर इलाज नहीं मिल पाया।

खाली मकान अब खंडहरों में तब्दील होने लगे हैं (Image: Courtesy: Amar Ujala)

यहां रहन वालों के साथ समस्या यह है कि कोई अपनी बेटी की शादी इन गांवों के युवकों के साथ करने के लिए तैयार नहीं है। लोग कहते हैं कि कोई अपनी बेटी की शादी कर भई दे तो मायके वाले ताने देते हैं कि पहले पता होता तो शादी भी न करते। लोगों को मलाल इस बात का है कि वे वोट देने के लिए 5 किलोमीटर पैदल चलकर धंगड़ गांव के पोलिंग बूथ पहुंचते हैं, फिर भी उनकी कोई कद्र नहीं। लोग नाराज हैं और विधानसभा चुनावों तक का बहिष्कार करने की बात करते हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि प्लस 1 और प्लस 2 के एग्जाम देने के लिए भी बच्चों को 10-12 किलोमीटर दूर हरिपुर जाना पड़ता है। ग्रामीण कहते हैं कि युवा पीढ़ी तो अपने बेहतर भविष्य के लिए गांव छोड़कर शहरों में जा रही है मगर बुजुर्ग यहां से जाना नहीं चाहते। अगर बच्चे बाहर सेटल होकर अपने मां-बाप को साथ ले जाना चाहें तो जन्मभूमि के लगाव की वजह से बुजुर्ग लोग जाने को तैयार नहीं होते।

पीछे दिख रहे खंडहर किसी दौर में आबाद थे। (Image Courtesy: Amar Ujala)

अच्छी बात यह है कि इस साल फरवरी में हिंदी अखबार अमर उजाला की टीम रेल के माध्यम से इस गांव में गई थी। अखबार ने लोगों से बात करते उनकी समस्या को न सिर्फ सबके सामने रखा, नेताओं से भी बात की। उस वक्त सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा था कि मैं लोगों का दर्द समझता हूं मगर फॉरेस्ट रिजर्व लैंड होने से सड़क नहीं बनी है। उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार केंद्र को प्रस्ताव बनाकर भेजे कि जो गांव फॉरेस्ट रिजर्व लैंड में आते हैं, वहां सड़क बनाने को फॉरेस्ट क्लीयरेंस को वन टाइम रिलेक्सेशन दी जाए तो धार धंगड़ ही नहीं हिमाचल के कई ऐसे गांवों में सड़क बन सकती है। साथ ही इस इलाके के विधायक रविंद्र सिंह रवि ने कहा था कि इस गांव को नैशनल हाइवे दिया है। उनका कहना था कि मेरे विधायक बनने के बाद गांव से पलायन रुका है। उन्होंने विप्लव परिवार पर निशाना साधते हुए कहा कि पलायन को लेकर सवाल उस परिवार से पूछे जाने चाहिए जिसने यहां 50 साल तक राज किया है।

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