Site icon In Himachal | इन हिमाचल : In Himachal delivers the latest news, insightful views, and policy analysis in Himachal Pradesh. Join our platform to stay informed and hold politicians and officials accountable as a vigilant civilian watchdog.

क्या एम्स भी राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा?

इन हिमाचल डेस्क।।

हिमाचल प्रदेश में एम्स को लेकर इन दिनों जमकर राजनीति हो रही है। सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहीं। मगर आप यह जानकर शायद हैरान रह जाएं कि प्रदेश सरकार ने भी इस मुद्दे पर गंभीर लापरवाही बरती है। क्या है यह पूरा मसला, आइए एक-एक पॉइंट को लेकर समझें।

1. केंद्र ने संस्थान के लिए जगह ढूंढने को कहा
जून में जब मोदी सरकार बनी थी, तब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 11 राज्यों को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वे अपने यहां एम्स जैसे संस्थान के निर्माण के लिए 200 एकड़ जमीन तलाश करें।

2. हिमाचल सरकार नहीं ढूंढ पाई जमीन
केंद्र से आई इस चिट्ठी का जवाब एक महीने के अंदर दिया जाना था। यानी एक महीने के अंदर प्रदेश सरकार को जमीन फाइनल करके केंद्र सरकार को उसकी जानकारी देनी थी। मगर वीरभद्र सरकार जमीन ही नहीं ढूंढ पाई।

3. हिमाचल सरकार ने दिया अनोखा सुझाव
तय वक्त पर जमीन ढूंढ पाने में नाकाम रही हिमाचल सरकार ने केंद्र को अनोखा सुझाव दे दिया। वीरभद्र सरकार ने केद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखी चिट्ठी में सुझाव दिया कि अगर एम्स बनाना है तो क्यों न टांडा मेडिकल कॉलेज को ही एम्स में बदल दिया जाए।

4. केंद्र ने ठुकराया हिमाचल सरकार का प्रस्ताव
टांडा मेडिकल कॉलेज को एम्स में बदलने का प्रस्ताव केंद्र ने ठुकरा दिया। केंद्र ने कहा कि पहले से ही मेडिकल कॉलेज को कैसे एम्स में बदल दिया जाए। केंद्र का कहना था कि बात नए एम्स जैसे संस्थान की स्थापना की हो रही है, न कि किसी पुराने संस्थान को अपग्रेड करके एम्स बनाने की।

5. इस साल टल गया एम्स का प्रस्ताव
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा तय वक्त में जमीन का चुनाव न कर पाने और फिर उसके सुझाव के खारिज हो जाने का नतीजा यह निकला कि हिमाचल में एम्स के मुद्दे पर इस साल कोई प्रगति नहीं हो सकी। प्रदेश सरकार अभी जमीन ढूंढने में लगी है। 12 जिलों के डीसी को अपने यहां एम्स के लिए 200 एकड़ जमीन तलाश करने को कहा गया है।

In Himachal को ट्विटर पर फॉलो करें

ऊपर जो भी बातें कही गई हैं, उसकी जानकारी खुद हिमाचल के स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने दी। धर्मशाला में चल रहे विंटर सेशन में प्रश्न काल के दौरान बीजेपी विधायक गुलाब सिंह ठाकुर ने एम्स को लेकर सवाल किया था। उस पर जवाब देते हुए कौल सिंह ने बताया कि अब तक इस मामले में क्या-क्या डिवेलपमेंट हुआ। कौल सिंह ने बताया कि 12 डीसी से कहा गया है कि वे बताएं कि उनके जिले मे कहां पर एम्स बनाया जा सकता है। आखिरी फैसला लेने के बाद उस जमीन को केंद्र को दे दिया जाएगा।

इस पूरे प्रकरण से न सिर्फ हिमाचल प्रदेश सरकार के कामकाज के तौर-तरीके का पता चलता है, बल्कि यह भी साफ होता है कि वह कितनी अदूरदर्शी है। पता चलता है कि:

1. सरकार ने कभी नहीं सोचा कि अगर कोई बड़ा संस्थान बनाना हो तो उसके लिए जमीन कहां-कहां उपलब्ध है। अगर सरकार के पास विजन होता तो वह पहले से ही हर जिले में जगहें ढूंढकर अपने रेकॉर्ड में रखती।

2. सरकार के पास विज़न नहीं है। अगर जगह तय नहीं हो पाई थी, तो वह केंद्र से कह सकती थी कि थोड़ा और वक्त दिया जाए। मगर बजाय इसके यह लिखा गया कि टांडा मेडिकल कॉलेज को एम्स बना दिया जाए।

3. उसे महसूस नहीं हुआ कि अगर एक और उच्च स्तरीय हॉस्पिटल खुलेगा तो यह लोगों के लिए फायदेमंद ही है। डांटा मेडिकल कॉलेज को एम्स बनाने का सुझाव देने से साफ होता है कि प्रदेश सरकार ने अपने सिर से बला टालनी चाही।

4. सरकार को अभी भी यह बात समझ नहीं आ रही है कि एम्स जैसे संस्थान को ऐसी जगह पर होना चाहिए, जहां से वह पूरे प्रदेश के लोगों के लिए फायदेमंद हो। इसीलिए सरकार ने सभी जिलों के डीसी से पूछा है कि जमीन का पता लगाओ।

कहां बनना चाहिए एम्स?
‘इन हिमाचल’ ने प्रदेश के विभिन्न भागों के लोगों से बातचीत करके जानना चाहा कि एम्स कहां बनना चाहिए। ज्यादातर लोगों का कहना था कि इसे प्रदेश के केंद्र में होना चाहिए, ताकि पूरा प्रदेश इसका फायदा उठा सके। कुल्लू में रहने वाले धीरज भारद्वाज बताते हैं कि अगर हमारे यहां कोई सड़क हादसा हो जाए तो अस्पताल पीजीआई रेफर कर देते हैं और घायल रास्ते में दम तोड़ देते हैं। वहीं सोलन और बिलासपुर आदि पंजाब से लगते जिलों से पीजीआई नजदीक है। ऐसे में एम्स ऐसी जगह बने जहां से कुल्लू के लोग भी जल्दी पहुंचे और सोलन, बिलासपुर, ऊना, चंबा, किन्नौर आदि के भी।

In Himachal को फेसबुक पर Like करें

सिरमौर में रहने वाले दिनेश शर्मा बताते हैं कि एम्स के मुद्दे पर राजनीति हो रही है। कुछ लोग उसे अपने चुनाव क्षेत्र में बनवाना चाहते हैं। मगर उन्हें सोचना चाहिए कि यह क्रिकेट स्डेडियम बनाने की नहीं, बल्कि जनता के लिए हॉस्पिटल खोलने की बात हो रही है। यह लग्ज़री नहीं, बल्कि बुनियादी जरूरत है। हमें कोई आपत्ति नहीं कि यह हमीरपुर में बने या लाहौल स्पीति में। मगर इसके पीछे वजह होनी चाहिए। जमीन तो कहीं भी मिल सकती है, मगर जमीन वहां देखी जाए जहां बनाना प्रदेश की जनता के हित में हो।

करसोग के रहने वाले डॉक्टर विजय कुमार ने ‘इन हिमाचल’ से कहा कि 12 के 12 जिलों को जमीन ढूंढने के लिए कहना दिखा रहा है कि प्रदेश सरकार अभी तक दुविधा में है। वह यही तय कर पाने की स्थिति में नहीं है कि एम्स को कहां बनाना लोकहित में। वरना पहले वह लोकेशन तय कर लेती और उसके बाद वहां पर जमीन की तलाश शुरू की जाती है। यह बड़े अफसोस की बात है।

इसके अलावा इन हिमाचल ने फेसबुक पर भी अपने पाठकों से सवाल पूछा था कि एम्स कहां खोला जाना चाहिए। जवाब इस तरह हैं:

“टांडा मेडिकल कॉलेज को एम्स में अपग्रेड कर देना चाहिए और टांडा मेडिकल कॉलेज जैसा कोई संस्थान हिमाचल के बीचोबीच बनाना चाहिए, ताकि सभी हिमाचलियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें।” वरिंदंर चौधरी, कांगड़ा।

“मंडी जिले में ESIC ने कॉलेज कम हॉस्पिटल पर 756 करोड़ रुपये इन्वेस्ट किए हैं, मगर आज तक यह इस स्थिति में नहीं पहुंचा है कि लोग इसका लाभ उठा सकें। ESIC तो इसे चलाने के मूड में दिख नहीं रहा है, ऐसे में इसे एम्स में बदल देना चाहिए। नेरचौक में न सिर्फ जमीन उपलब्ध है, बल्कि यह प्रदेश के एकदम सेंटर में भी है।”  -गोविंद ठाकुर, मंडी।

“लोअर हिमाचल में कहीं भी बनना चाहिए। देहरा, शाहपुर या धर्मशाला।” -बिकास डोगरा, नूरपुर।

“इसे बिलासपुर में बनाना सही होगा।” राजिंदर गर्ग, घुमारवीं।

“यह मंडी जिले में ही कहीं होना चाहिए, क्योंकि मंडी हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, बिलासपुर जैसे जिलों से नजदीक है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोग इस प्रॉजेक्ट का फायदा उठा सकते हैं।” -प्रणव घाबरू, बैजनाथ

“एम्स में मंडी में बनना चाहिए।” -संजय ठाकुर, धर्मपुर।

‘एम्स हिमाचल के बीच में कहीं बनना चाहिए। कांगड़ा या हमीरपुर में बनाया जा सकता है।” -ओजस्वी कौशल, चंडीगढ़।

Exit mobile version