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राजनीति में पिछड़ती हिमाचल प्रदेश सेंट्रल यूनिवर्सिटी और छात्र हित

आज ही एक अखबार में हिमाचल प्रदेश के एक बड़े राजनेता का बयान पढ़ा-

“केंद्रीय विश्वविद्यालय के भवन निर्माण में अड़चन पैदा की जा रही है। धर्मशाला के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए केंद्रीय विवि का प्रशासनिक खंड धर्मशाला और शैक्षणिक खंड देहरा में होना चाहिए।”

इस बयान को पढ़कर मन अत्यंत दुखी और अचंभित हुआ।  पहली बात यह है कि किसी भी एजुकेशनल इंस्टिट्यूट के लिए जगह तय करने के लिए किसी स्थान के ऐतिहासिक महत्व का कोई लेना-देना नहीं है। एक एकदम बिना लॉजिक की बात है। दूसरी  बात यह कि अगर प्रशासनिक भवन और शैक्षणिक भवन 50 किलोमीटर दूर होंगे, तो यह न सिर्फ फालतू का खर्च होगा, बल्कि टीचर्स और छात्रों के रोज के कामों को भी प्रभावित करेगा।

राजनीति की भेंट चढ़ा हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय

किसी भी यूनिवर्सिटी में प्रशासन का मतलब कोई अलग से बहुत बड़ा डिपार्टमेंट नहीं होता, बल्कि क्लैरिकल स्टाफ को छोड़कर शिक्षक या यूं कहिए कि प्रफेसर ही बारी-बारी से प्रशासनिक पदों पर कुछ वर्षों के लिए बैठते हैं।  किसी प्रफेसर को डीन बना दिया जाता है, कोई डेप्युटी डायरेक्टर ऐडमिन हो जाता है  तो कोई रजिस्ट्रार बना दिया जाता है । और यह सब पोस्ट्स एक निर्धारित समय  के बाद  बदलती रहती हैं।  ऐसा नहीं है कि प्रशासनिक जिम्मेदारी मिलने से प्रफेसर पढ़ाना छोड़ देता है।  वह अपने सब्जेक्ट की क्लास भी लेते  हैं और निर्धारित समय अवधि  के दौरान दिन के कुछ घंटे प्रशासनिक कार्यालय  में बैठ  कर अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारी भी  निभाते हैं।

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मुझे नहीं पता कि धर्मशाला  और देहरा के 50 किलोमीटर के सफर को ऐसे प्रफेसर कैसे तय कर पाएंगे। और अगर शैक्षणिक और प्रशासनिक ब्लॉक अगर 50 किलोमीटर दूर होंगे तो क्या छात्र अपने छोटे-छोटे कामों के लिए धर्मशाला का चक्कर लगाते रहेंगे? कुलसचिव अगर कहीं और बैठंगे और शिक्षा कहीं और चलेगी तो क्या अनुशासन होगा? प्रशासनिक खंड क्या होता है? यह मात्र एक बिल्डिंग ही तो है। फिर इसका पूरी यूनिवर्सिटी के साथ बनना कैसे गलत है?

फालतू में सरकार के संसाधन खर्च करना, शिक्षा  का माहौल खराब करना,  विद्यार्थियों के ऊपर आर्थिक बोझ डालना और उन्हें दो जगहों पर छोटे-छोटे कार्यों के लिए दौडाए रखना कहां तक जायज और समझदारी है? मैं भी आईआईटी दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर हूं। शैक्षणिक कार्यों के अलावा अन्य छोटे-छोटे कार्यों के लिए मुझे किसी ऐप्लिकेशन पर हस्ताक्षकर करवाने  के लिए कई  बार प्रशासनिक खंड में जाना पड़ता है।  और यह महज मेरी लैब से 200 मीटर दूर है।  ऐसे छोटे कार्यों के लिए हिमाचल प्रदेश में  बनने वाली सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र क्या 50 किलोमीटर जाया करेंगे।  या बाई पोस्ट  ऐप्लिकेशन भेजा करेंगे ताकि 10 मिनट का कार्य 10 दिन में पूरा हो।

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शिक्षण संस्थान में शैक्षणिक और प्रशासनिक खंड में कोई भेद नहीं है। यूनिवर्सिटी किसी भी स्थान पर बने, वो मेरा मुद्दा नहीं है। लेकिन खुद  एक विकासशील  देश  का नागरिक और छात्र होने की वजह से सरकारी संसधनों के मितव्यय और छात्रहित के बारे में यही मेरी राय और अनुभव है कि वह जहां भी बने, एक स्थान पर दोनों खंड हों। सरकारी खर्चे और छात्र हित में यह जरुरी है। हिमाचल प्रदेश की सेंट्रल यूनिवर्सिटी भी इसका अपवाद नहीं हो सकती।

दुःख इस बात का है इसी के साथ खुली अन्य प्रांतों की सेंट्रल यूनिवर्सिटीज़ में विभिन्न कोर्स शुरू हो चुके हैं, लेकिन हमारे प्रदेश की सेंट्रल यूनिवर्सिटी का स्थान तय न हो पाने की वजह से अभी नाम मात्र के लिए ही कोर्स शुरू हो पाए हैं। प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री भी इस मुद्दे पर सिर्फ भाषणबाजी कर रहे हैं और अभी तक उन्होंने केंद्र को किसी जगह का नाम नहीं सुझाया है। इस पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों को राजनीति बंद करनी चाहिए और बरसों से लटके इस कार्य को अब पूरा करवाने की कोशिशों में जुटना चाहिए।

लेखक:
Aashish Nadda (PhD Research Scholar)
Center for Energy Studies
Indian Institute of Technology Delhi
E-mail  aksharmanith@gmail.com

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