सुरेश चंबयाल
प्रदेश में हालांकि चुनावों में वक़्त है परन्तु राजनीतिक खींचतान देखकर लगता है प्रदेश राजनीति के चाणक्य वीरभद्र सिंह अपने जीवन के अंतिम दांव के तहत चुनाव जल्दी करवा सकते हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के दौरे और हर क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्गों की घोषणा के बाद बीजेपी में जहां नई फुर्ति का संचार हुआ है वहीं सीबीआई द्वारा की जा रही पूछताछ के बाद मुख्यमंत्री के तेवर बदले बदले से लग रहे हैं। सीबीआई की पूछताछ के बाद जब वीरभद्र दिल्ली से लौटे थे, वह आक्रामक नजर आए थे। उन्होंने दर्शा दिया है कि उम्र चाहे जो भी कहती हो, अगला चुनाव हर हाल में वह अपने नेतृत्व में लड़ेंगे। इसीलिए कई पदों पर भर्तियां निकाली गई हैं और हर जगह कोई न कोई नया ऐलान हो रहा है।
राजनीतिक पंडितों को इसका एहसास इस बात से भी होने लगा है की जिस तरह से मुख्यमंत्री के कांगड़ा, मंडी, सिरमौर और कबायली क्षेत्रों के दौरे बढ़े हैं, इसमें जरूर कुछ स्कीम है। इन क्षेत्रों को मिला कर लगभग 30 से ऊपर विधानसभा सीटें बनती हैं। सिरमौर कांग्रेस का गढ़ रहा था, मगर उसे छोड़कर हर क्षेत्र में कांग्रेस की अब मजबूत पैठ है। सीबीआई के कसते शिकंजे के बाद वीरभद्र लम्बा समय चुनाव के लिए नहीं देना चाहेंगे। वह नहीं चाहेंगे कि सीबीआई की इन्क्वायरी किसी मोड़ तक आए और अपनी ही पार्टी में उनकी जगह रिप्लेसमेंट की आवाज उठे।
कांगड़ा में बाली का घेराव
उम्रदराज होने के बावजूद बुशहर का यह राजा अंदर-बाहर हर मोर्चे पर खुद ही लड़ रहा है। इसी नीति के तहत अपनी पार्टी में मुख्यमंत्री के लिए कांगड़ा की आवाज बन रहे परिवहन मंत्री जीएस बाली के पर कतरने के लिए हड़ताल के शिगूफे में भी कहीं न कहीं राजनीति की बू आ रही है। साथ ही नगरोटा बगवां जिस सीट से बाली जीत कर आते रहे हैं और जहां चौधरी समुदाय की भरमार है, वहां चौधरी समुदाय का सम्मेलन आयोजित हुआ। खास रणनीति के तहत चौधरी समुदाय के नेता चन्द्र कुमार के बेटे वर्तमान विधायक नीरज भारती की गर्जना इस सम्मेलन में करवाई गई।
गडकरी के दौरे में नड्डा का बाली को पार्टी में आने का आमंत्रण और वीरभद्र का यह कहना कि बाली जाना चाहे तो जा सकते हैं, दिखा रहा है कि सुखराम और स्टोक्स के बाद वीरभद्र सिंह अब बाली को ही अपना प्रतिद्वंद्वी मानकर चल रहे हैं। बाली को कंट्रोल करने के लिए उन्होंने कांगड़ा किले के मोर्चों पर घेराबंदी भी कर दी है। नीरज भारती और संजय रतन के साथ पवन काजल भी इस कार्य को बखूबी निभा रहे हैं। नीरज भारती को तो मुख्यमंत्री ने खुली छूट भी दे रखी है।
बीजेपी नहीं है तैयार
वीरभद्र सिंह मान रहे हैं कि प्रदेश बीजेपी अभी चुनावी रूप से तैयार नहीं है। धर्मशाला नगर निगम चुनाव में जिस तरह पूरा कुनबा लगाने के बावजूद भाजपा की करारी हार हुई है, यह कहीं न कहीं मुख्यमंत्री को राहत दे रहा है। धूमल-शांता और अब नड्डा गुटों में बंटी भाजपा किसके लीडरशिप में चुनाव लड़ेगी, यह अभी तय नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री धूमल इस कड़ी में दिल्ली का चक्कर लगा चुके हैं परन्तु शाह मॉडल पर चल रही बीजेपी कोई ग्रीन सिग्नल उन्हें नहीं दे रही है। वीरभद्र सिंह मानकर चल रहे होंगे कि बीजेपी जब तक अपना संगठन और नेता तय करे, उससे पहले ही प्रदेश में चुनाव की घोषणा कर दी जाए, जिससे बीजेपी के अंदर नेतृत्व के लिए जो भी आक्रोश पनपे, उसका फायदा लिया जाए। हालांकि कांग्रेस के सभी मंत्री-संत्री अपने विधानसभा क्षेत्रों में डट चुके हैं। देश में हालिया हुए चुनावों से कांग्रेस की जो हालत पतली हुई है, उसी डर के कारण कांग्रेसी सत्ता सुख छिन जाने के भाव से डरे हुए हैं।
राहुल की नाराजगी
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पार्टी में परिवर्तन चाहते हैं और पुराने नेता, जो किसी भी तरह सत्ता से चिपके रहना चाहते हैं, राहुल के फॉर्मूले में सेट नहीं बैठ रहे। राहुल अब युवा लोगों को आगे लाना चाहते हैं ताकि भविष्य में कांग्रेस का कुछ हो सके। उनके फॉर्मूले में वीरभद्र सिंह सेट नहीं बैठ रहे हैं। पिछली बार भी वीरभद्र सिंह कड़े तेवर लेकर प्रदेश में लौटे थे, परन्तु इस बार हालत अलग है। इस बार सत्ता विरोधी लहर कांग्रेस के लिए होगी, न कि भाजपा के लिए।
परिवार की चिंता
सीबीआई के शिकंजे के बावजूद सत्ता में बने रहने की हर हाल में जो मजबूरी मुख्यमंत्री की है उसमे परिवार का भी रोल है।प्रतिभा सिंह की मंडी से हार से वीरभद्र सिंह को झटका लगा है। अगले कुछ वर्षों में उन्हें प्रतिभा से लेकर बेटे विक्रम को भी राजनीति में सेट करना है, इसलिए वीरभद्र सोच रहे हैं कि अगले पांच साल फिर सत्ता मिल जाए तो वह हर काम बखूबी कर सकते हैं। और अगर सत्ता का कंट्रोल हाथ से गया तो सबकुछ बिखर भी सकता है।
पहले भी जल्दी चुनाव करवा चुके हैं वीरभद्र
ऐसा नहीं है कि वीरभद्र सिंह पहली मर्तबा ऐसी सोच रख रहे होंगे। इससे पहले भी अपने खास ज्योतिषी प्रेम शर्मा की सलाह पर वीरभद्र सिंह ऐसा कर चुके थे परन्तु उस समय हार का सामना करना पड़ा था। मगर वह हार सुखराम फैक्टर से हुई थी। हालांकि राजा साब की कैलकुलेशन उस समय भी सही थी। पंजाब में अकाली-भाजपा विरोधी लहर है। इस बात को ध्यान में रखते हुए वीरभद्र सिंह हिमाचल में भी समय पूर्व चुनाव करवाने का अपना दांव खेल सकते हैं।
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(लेखक हिमाचल से जुड़े मसलों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों In Himachal के लिए लेख लिख रहे हैं)