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लेख: अपनी-अपनी पार्टियों में कमजोर हो रहे हैं वीरभद्र और धूमल

प्रदेश में सर्दी की आहट के बीच चुनावी सरगर्मियों का दौर भी शुरू हो गया है। प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल तैयारी में जुट गए हैं। कांग्रेस में सभी नेता लगभग यह मान चुके हैं कि वीरभद्र सिंह को अभी भी पार्टी के अंदर से कोई चुनौती नहीं है। सीबीआई और ईडी के मामले भी लंबी कोर्ट प्रक्रिया का हिस्सा होकर लोगों के रुझान और जिज्ञासा को खत्म कर रहे हैं। वीरभद्र चाहते हैं कि किसी भी तरह सातवीं बार सत्ता पर कब्जा किया जाए। इस इच्छा के कारण वह संगठन की कमान अपने हाथ में लेना चाहते हैं। सार्वजनिक मंचों से वीरभद्र के सुक्खू के ऊपर सचिवों की आड़ से किए गए हमले इस बात को और पुख्ता करते हैं।

धूमल की राह चल पड़े हैं वीरभद्र?

पिछले चुनाव में जिस रास्ते और मानिसकता के साथ पूर्व मुख्यमंत्री धूमल चले थे, वीरभद्र भी उसी राह पर चल पड़े हैं। धूमल भी मिशन रिपीट तो चाहते थे, परंतु अपने विरोधियों को विधानसभा के अंदर नहीं देखना चाहते थे। इसलिए जहां-जहां शांता समर्थक टिकट पा गए, वहां-वहां कांगड़ा में धूमल समर्थक बागी हो गए। नतीजा सबके सामने रहा- बिना कांगड़ा किले को भेदे भाजपा सत्ता से दूर हो गई। वीरभद्र भी चाहते हैं सरकार बने, पर उनके विरोधियों का वजूद न रहे। इसी कड़ी में अपने सबसे ताकतवर प्रतिद्वंद्वी परिवहन मंत्री जीएस बाली के खिलाफ जो घेरेबंदी ओबीसी के नाम पर की गई, वह किसी रणनीति का हिस्सा जान पड़ती है।

बाली पर भारती के हमले भी चर्चा में रहे।

नीरज भारती ने कांगड़ा में बाली पर जो हमले किए, वे उसी रणनीति का हिस्सा जान पड़ते हैं। प्रदेश की राजनीति में यह हमले चर्चा का केंद्र रहे, मगर लोगों को हैरानी इस बात की हुई कि बेबाक और तुरंत रिऐक्ट करने वाले परिवहन मंत्री इस मामले में कुछ नहीं बोले। इस कारण ज्यादा सुर्खियां मीडिया के हिस्से में भी नहीं आईं।

इस बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुक्खू को अलग-थलग करने के लिए मुख्यमंत्री के बेटे के नेतृत्व वाले युवा संगठन ने मोर्चा संभाला। मगर कहीं न कहीं वरिष्ठ नेता राम लाल ठाकुर, सुधीर शर्मा, बाली और स्टोक्स आदि भांप गए हैं कि आपस में लड़े तो खत्म हैं। वैसे भी देश में जिस तरह से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो रहा है, उस हिसाब से तो ऐसी लड़ाई वजूद ही खत्म कर देगी। इस चक्कर में डैमेज कंट्रोल शुरू हुआ और वीरभद्र व सुक्खू की मीटिंग के साथ सीजफायर हो गया।

सुक्खू ने कांग्रेस संगठन पर पकड़ बनाई हुई है।

भाजपा की बात करें तो मोदी शाह मॉडल के ढर्रे पर चली यह पार्टी अंदर से जितनी कुलबुला रही हो, बाहर से संगठित दिख रही है। हालांकि एम्स को लेकर अनुराग ठाकुर का नड्डा को लिखा लेटर उनकी आंतरिक हसरतों की झलक देता है। यह बताता है कि बड़े नेताओं के बीच कितनी संवादहीनता भाजपा में है। अनुराग एम्स के लिए नड्डा को लेटर लिख रहे हैं, उनसे मिल नहीं रहे हैं। ऐसी भी सुगबुगाहट है कि इस पत्र के माध्यम से अनुराग दिखाना चाहते थे कि एम्स को लेकर केंद्रीय मंत्री नड्डा से ज्यादा संवेदनशील मैं हूं।

अनुराग ठाकुर की नड्डा को लिखी चिट्ठी चर्चा में है।

नड्डा इस पत्र का क्या जबाब देते हैं या नहीं देते हैं, यह आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल बीजेपी समर्थक भी असमंजस में हैं कि आने वाले चुनाव में उनका नेता कौन होगा। न धूमल यह बता पा रहे हैं कि वह नेता हैं, न नड्डा यह जता रहे हैं कि वह आ रहे हैं। सोचने समझने का वक़्त सत्ती और पवन राणा की जोड़ी भी किसी को नहीं दे रही है।

नड्डा और धूमल को लेकर बीजेपी कार्यकर्ता असमंजस में हैं।

अभ्यास वर्ग पर अभ्यास वर्ग से कार्यकर्तायों को पवन राणा और सत्ती ने इस बार व्यस्त रखा है। वर्षों से प्रदेश में कांग्रेस के पर्याय वीरभद्र सिंह और भाजपा के धूमल रहे हैं। मगर इस बार हालात अलग है। कांग्रेस मतलब वीरभद्र भी नहीं कही जा सकती, क्योंकि सुक्खू संगठन में पकड़ बनाकर समानांतर उपस्थिति बनाए हुए हैं। दूसरी तरफ बीजेपी में भी धूमल के बजाय संगठन सर्वमान्य चल रहा है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन दिनों इन हिमाचल के लिए नियमित लेखन कर रहे हैं।)

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