आई.एस. ठाकुर।।
सबसे पहले तो हिमाचल प्रदेश के बोर्ड एग्ज़ाम्स में पास होने वालों को बधाई और साथ ही इन हिमाचल को भी, जिसने इस बार दसवीं के टॉपर्स की कोई फोटो नहीं डाली। दरअसल मेरे लिए यह खबर अहमियत नहीं रखती कि किसने टॉप किया और कितने नंबर लाए। मेरे लिए वह खबर झकझोर देने वाली थी, जिसमें पढ़ा कि एक बच्ची ने नंबर कम आने पर खुदकुशी कर ली। वही नहीं, हर साल न जाने कितने ही बच्चे कम नंबर आने पर डिप्रेशन में चले जाते हैं और इस तरह के कदम उठाते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि मेरिट में आने वाले बच्चे बधाई के पात्र हैं और उन्हें सम्मान मिलना चाहिए। इसके लिए उन्होंने जो मेहनत की है, उसके लिए वे इस लाइमलाइट के हकदार भी हैं। मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसी लाइमलाइट को देखते हुए कुछ पैरंट्स अपने बच्चों से भी ऐसी ही उम्मीदें पालने लगते हैं। वे अपनी इच्छाएं और सपने अपने बच्चों पर थोप दिया करते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी शानदार नंबर लाएं और इस तरह उनका ”नाम रोशन” करें।
बहुत से पैरंट्स इसके लिए अपने बच्चों को हर वक्त पढ़ने के लिए कहते हैं। कुछ बच्चे तो पढ़ाई में रम जाते हैं, लेकिन जिस तरह हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं, सभी बच्चों की नेचर एक जैसी नहीं होती। हर कोई पढ़ाई में उतना तेज नहीं होता। हो सकता है कि किताबें पढ़ने में उसकी रुचि न हो, मगर वह किसी अन्य मामले में बहुत होशियार हो। हो सकता है कि वह गणित में उतना अच्छा न करता हो, मगर भाषा और साहित्य पर उसकी पकड़ अच्छी हो। हो सकता है उसकी साइंस में रुचि न हो, मगर इतिहास में बड़ा मन लगता हो। हो सकता है वह इस सब के इतर खेलकूद में ज्यादा रुचि रखता हो। इस तरह के बच्चे बार-बार पढ़ाई के लिए कहे जाने पर प्रेशर में चले जाते हैं। न तो वे अपना मनपसंद ही कुछ पाते हैं औऱ न ही पढ़ाई में ही अच्छा कर पाते हैं।
कई पैरंट्स को तो मैंने देखा है कि वे अपने बच्चों के अंकों की तुलना अन्य रिश्तेदारों के बच्चों के अंकों से करते हैं। वे अपने बच्चों का डांटते हैं, उसे सजा देते हैं और कई बार पिटाई भी करते हैं। सोचिए, बाल मन पर इसका क्या असर पड़ता होगा। साथ ही हमें यह भी समझना होगा कि बहुत ज्यादा अंक लाने बच्चों में से कुछ ”पढ़ाकू” और ”रट्टामार” भी होते हैं। भले ही वे इस तरह की परीक्षाओं में नंबर ले आते हों, मगर उनका व्यवहारिक ज्ञान ज़ीरो होता है। इस तरह के अंक लाने का फायदा भी क्या है?आपने देखा होगा कि बहुत नंबर लाने वाले बच्चे आगे चलकर कई बार फिसड्डी भी साबित होते हैं तो कई बार औसत प्रदर्शन करने वाले बच्चे आगे चलकर बहुत कामयाब हो जाते हैं।
मेरी गुजारिश है अध्यापकों, अभिभावकों और पत्रकारों से कि मेरिट और ज्यादा नंबर लाने को इस तरह से ग्लैमराइज न करें। और अपने बच्चों को नंबर लाने के बजाय उसकी रुचि को समझें। देखें कि वह क्या करना चाहते हैं। उस ओर ज्यादा ध्यान दें। पढ़ाई पर भी ध्यान दें, मगर उसकी रुचि का ख्याल रखें। अगर बच्चा अपनी मर्जी से कुछ कर रहा होगा तो पढ़ने में भी वह जरूर ध्यान देगा। उसे ज्यादा नंबर लाने वाले बच्चों का नहीं, उन लोगों का उदाहरण दीजिए जो जीवन में कामयाब हैं। उन्हें बताइए कि वे कैसे उस स्तर तक पहुंचे। साथ ही बच्चों को अपनी इच्छा के हिसाब से सब्जेक्ट न पढ़ाएं। उससे पूछें कि रुचि किसमें है। जबरन डॉक्टर या इंजिनियर बनाने की न सोचें। अब दौर गया कि यही दो प्रफेशन थे। अब हजारों प्रफेशन हैं, जहां पर सम्मान और खूब पैसे वाली नौकरियां मिलती हैं। बच्चों को बच्चे ही रहने दें, उन्हें मशीन न बनाएं।