एस.आर. हरनोट।। राजा वीरभद्र सिंह प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने छठवीं बार 2012 के अंत में प्रदेश का नेतृत्व संभाला था। वे कई बार लोकसभा के लिए चुने गए और केंद्र में मंत्री रहे। उनकी लोकप्रियता इसी से आंकी जा सकती है। वे हिमाचल के लोगों के दिलों में बसते रहे हैं और शायद ही कोई ऐसा विकास या लोगों का काम हो जो उन्होंने न किया हो। उनके दरबार में जब भी कोई गरीब या जरूरतमंद गया वह खाली हाथ नहीं लौटा और कई बार तो उनके हालात देखकर उनकी आंखे आंसू तक बहाती रही है। लेकिन इस बार उनकी आंखों के आंसू और अपने कर्मचारियों के लिए वह प्रेम पता नहीं कहाँ चला गया ?
प्रदेश सरकार ने 1995 में कुछ बचे हुए कॉर्पोरेट सेक्टर के कर्मचारियों के लिए पेंशन स्कीम लागू की लेकिन कुछ असंवेदनशील अफसरों के दवाब में उसे 2003 में रद्द कर दिया गया। मजे की बात थी कि इस दौरान रिटायर हुए कर्मचारियों और अफसरों ने उसे कोर्ट से ले लिया जबकि बाकी बेचारे मुंह ताकते रह गए। वे कोर्ट में गए और हिमाचल हाई कोर्ट से जीत गए लेकिन उन्हीं अफसरों की वजह से सरकार ने करोड़ों रुपये अपील में खर्च करके सुप्रीम कोर्ट से इसी साल उसे रिजेक्ट करवा दिया हालांकि उसमें बात प्रदेश सरकार पर डाली गई कि यदि वो चाहे तो पैंशन लागू कर सकती है। लेकिन बार बार उनसे गुहार लगाने के बाद भी राजा साहब की आंखें नम नही हुई है।
मुख्यमंत्री जी हिमाचल पर्यटन विकास निगम के चेयरमैन भी हैं। देश की सबसे बड़ी निगम होते हुए रिटायर कर्मचारियों को कोई भी सुविधा नहीं है जबकि अनेक वर्गों को बाहर होटलों में 25 से 50 प्रतिशत तक जलपान, परिवहन इत्यादि में छूट है। निगम के जो कर्मचारी रिटायर हुए हैं उनमें सबसे बदतर स्थिति तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की है। एक उदाहरण अपने गांव का दे रहा हूं। नीचे दिया एक चित्र श्री राम लाल माली का है जिसने तकरीबन 40 साल बतौर माली विभिन्न निगम के होटलों में दी है। न जाने कितनी क्यारियां आज भी तरह तरह के फूलों से सजी उनके हाथ की हैं। जो थोड़ा सा धन मिला उससे बेटियों का विवाह और छोटा सा घर बना जो अभी भी पूरा न हो सका। अब रामलाल माली मनरेगा में ध्याडी लगा कर गुजारा करते हैं। परंतु पंचायत में अब तो मनरेगा भी बंद हो गया और वह बेचारा बेकार हो गया। अब थोड़े से धन के लिए स्थानीय मंदिर की बहार से सेवा करता है।
यह इसी माली की बात नहीं है, न जाने कितने ऐसे कर्मचारी बेचारे रोजी के लिए तरस रहे हैं। अपने चेहतों को तो अफसरों ने रिटायरमेंट के बाद दोबारा नौकरी तक दे दी है।
हिमाचल में जब सभी विभागों और अधिकतर निगमों व बोर्डो में पेंशन हैं तो थोड़े से रह गए कर्मचारियों के प्रति, पता नहीं राजा साहब की आंखों में क्यों आंसू नहीं आते, क्यों इस छोटी सी बची रह गयी सुविधा न देने के लिए राजा साहब के मन में प्यार नहीं उमड़ता। क्यों दो तीन अफसर इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि उनको अपने इन असहाय कर्मचारियों का दर्द महसूस नहीं होता।
सुप्रीम कोर्ट ने गेंद प्रदेश सरकार के पाले में डाल दी है, मुख्यमंत्री उनसे नाराज अपने ही कर्मचारियों को पेंशन सुविधा दे सकते हैं। हम “आंसुओं” से भी गुहार लगाते हैं कि वे इस अंतिम चुनाव के साल में राजा साहब की आंखों में चले आएं, बरसे ताकि उनका दिल स्वतन्त्र रूप से निर्णय ले सके। हमारे दो अति कुशल अफसरों को भी भगवान सद्बुद्धि दे कि इस मामले में असहयोगी कलम चलाते हुए उनकी आंखें भी नम हो जाये। सभी के सहयोग की अपील करते हुए।
DISCLAIMER: ये लेखक के अपने विचार है, इनके लिए वह खुद उत्तरदायी हैं। In Himachal इनसे सहमत या असहमत होने का दावा नहीं करता।