- विजय इंद्र चौहान
आंकड़ों के हिसाब से देखें तो यह ओलिंपिक गेम्स भारत के लिए कोई ख़ास सफलता वाले नहीं रहे। पर इम्पैक्ट या प्रभाव के नजरिए से देखें तो यह भारत के लिए अब तक की सबसे सफल ओलिंपिक गेम्स रहे हैं। ओलिंपिक शुरू होने से पहले ये उम्मीदें लगाई जा रही थीं कि इस बार भारत पिछली बार के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन करेगा और ज्यादा मेडल जीतकर लाएगा। क्योंकि ओलिंपिक में भाग लेने जा रहा भारतीय दल अब तक का सबसे बड़ा दल था। इसलिए जाहिर सी बात है कि मेडल्स की उम्मीदें भी ज्यादा की थी।
गेम्स शुरू हुए और धीरे-धीरे जिन खिलाड़ियों से मेडल की उम्मीद थी, वे शुरू के मुकाबलों में ही बाहर हो गए। जैसे ही ऐसा हुआ, कुछ भारत सरकार विरोधी या यूं कहें कि देश में रह कर भी देश विरोधी रवैये वाले लोगों ने यह माहौल बनाना शुरू कर दिया कि इस बार भारत को कोई भी मेडल नहीं मिलेगा और यह भारत सरकार की नाकामी है। सोशल मीडिया और अन्य परंपरागत हर तरह के मीडिया में निराशा का माहौल बनाने की भरपूर कोशिश की गई। देशवासी जिन्हें खिलाड़ियों से मैडल की उम्मीद थी वह तो निराश थे ही, साथ में खिलाड़ी जो ओलिंपिक में भाग लेने ए हुए थे उनके लिए भी निराशा का माहौल बनाया गया। जिन खिलाड़ियों के मुकाबले अभी होने थे उनके लिए रास्ता और कठिन हो गया था।
जब सारी उम्मीदें लगभग खत्म होती हुई लग रहीं थी तब एक ऐसे खेल में जिसमे भारत की विश्व स्तर पर कोई पहचान नहीं है उसमे भारतीय महिला खिलाड़ी दीपा कर्मकार ने ऐसा प्रदर्शन किया की सारा देश गर्व और खुशी से झूम उठा।
दुर्भाग्य रहा कि इतने शानदार प्रदर्शन के बाद भी दीपा कर्माकर को कोई मैडल नहीं मिला और वह चौथे स्थान पर रहीं। मैडल तो नहीं मिला पर दीपा ने अपना काम कर दिया था। पूरा देश जो निराशा में डूबा हुआ था वह गर्व के मारे फूले नहीं समा रहा था। सारे सोशल मीडिया पर दीपा के प्रदर्शन पर बधाई के सन्देश ही घूम रहे थे और किसी को भी यह मलाल नहीं था कि दीपा मैडल नहीं जीत पाई। अब लोग यह सोचने लगे थे कि मैडल नहीं मिला तो क्या हुआ दीपा कर्माकर ने जो प्रदर्शन किया क्या वह कम है। पर अब क्या था। समर्थकों के साथ साथ खिलाड़ियों में भी माहौल निराशा से आशा में बदल गया था और परिणाम आने में कोई ज्यादा वक़्त नहीं लगा। अगले दिन ही दूसरी महिला खिलाडी शाक्षी मलिक ने कुश्ती में मैडल जीत कर भारत का ओलिंपिक में खाता खोल दिया।
और सिलसिला यहीं पे नहीं रुका। उससे अगले दिन बेडमिंटन में एक और महिला खिलाड़ी पी वी सिंधु ने फाइनल में प्रवेश पा लिया और भारत के लिए सिल्वर मैडल पक्का करवा दिया। जैसे ही पी वी सिंधु ने सेमिफाइनल जीता सारा देश एक जुट हो कर पी वी सिंधु और भारतीय महिलाओं की जय जय कार करने लगा। इससे पहले शायद ही कभी पूरे देश ने एक जुट हो कर महिलाओं का गुणगान किया होगा।
इसी ओलिंपिक ने हमें सिखाया की निराशा चाहे जितनी मर्जी हो एक आशा की किरण सब कुछ बदल देती है। जिस हिसाब से सारा देश पी वी सिंधु के सेमीफाइनल मैच जितने पर एक जुट हुआ था ऐसा शायद नहीं होता अगर कुछ लोगों ने देश में निराशा का माहौल बनाने की कोशिश न की होती। लोगो का एक जुट होना इस बात का संकेत है की जब की देश की क्षमता के ऊपर प्रशन चिन्ह जगाया जायेगा तो सारा देश एक साथ खड़ा होगा। जय हिन्द।