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प्राइमरी एजुकेशन: तीसरी और पांचवीं क्लास के बच्चों को ‘क ख ग’ तक का ज्ञान नहीं

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।।  हिमाचल प्रदेश सरकार कहती है कि शिक्षा उसकी प्राथमिकताओं में शामिल है। सबसे ज्यादा बजट शिक्षा विभाग पर खर्च करने का दावा भी सरकार कई बार कर चुकी है मगर जमीनी हकीकत आपको हैरान कर देगी। मंडी जिले के 49 प्राथमिक स्कूल ऐसे हैं, जहां बच्चों को क-ख-ग तक का ज्ञान नहीं है।

देश भर की तरह मंडी जिले में भी सर्वशिक्षा अभियान कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस अभियान के तहत जिला प्रशासन ने उड़ान कार्यक्रम की शुरूआत की है, जिसके तहत प्राथमिक स्कूलों के बच्चों में शिक्षा के स्तर को सुधारने पर जोर दिया जा रहा है। उड़ान कार्यक्रम के फीडबैक के लिए 20 शिक्षा खंडों में बेसलाइन और एंडलाइन सर्वे करवाया गया। इस सर्वे में खुलासा हुआ कि जिले के 49 प्राथमिक स्कूल ऐसे हैं, जो रेड ज़ोन में हैं। यानी इन स्कूलों के बच्चों को न तो क-ख-ग का ज्ञान है और न ही शब्दों का। बच्चे जमा और घटाने में भी पूरी तरह से असमर्थ हैं।

हैरानी की बात तो यह है कि अधिकतर बच्चे ऐसे हैं, जो कक्षा तीसरी और पांचवी में पहुंच चुके हैं, लेकिन उन्हें भी क-ख-ग और शब्दों का ज्ञान नहीं है। इस बात की पुष्टि सर्वशिक्षा अभियान की जिला परियोजना अधिकारी हेमंत शर्मा ने की है। उन्होंने बताया कि 49 स्कूल ऐसे पाए गए हैं जो रेड ज़ोन में हैं और वहां पर बच्चे पढ़ाई के मामले में बेहद कमजोर हैं।

जिले के शिक्षा खंड सदर में सबसे ज्यादा 12 स्कूल रेडजोन में शामिल हैं। इसके अलावा शिक्षा खंड बल्ह में चार, चौंतड़ा में एक, द्रंग में चार, सुंदरनगर में चार, सराज में छह, करसोग में दो, चच्चोट में आठ, धर्मपुर में तीन और गोपालपुर शिक्षा खंड में पांच स्कूल एंडलाइन सर्वे के बाद रेडजोन में शामिल किए गए हैं।

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सर्वशिक्षा अभियान की जिला परियोजना अधिकारी हेमंत शर्मा के अनुसार रेडजोन में दर्शाई गई पाठशालाओं का निरीक्षण करने के निर्देश दे दिए गए हैं। इसके लिए खंड स्तर पर एक ऑब्जर्वेशन दल का गठन करने को भी कहा गया है। गठित दल से रेडजोन में शामिल स्कूलों का निरीक्षण करके रिपोर्ट रिकॉर्ड सहित मांगी गई है। एंडलाइन सर्वे से हुए खुलासे के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है।

जिले के अधिकतर स्कूल ऐसे हैं, जहां पर या तो अध्यापक है ही नहीं या फिर एक-दो अध्यापकों के सहारे स्कूल चल रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सर्वाधिक बजट का प्रावधान करने के बाद भी प्रदेश में शिक्षा का स्तर गिरता क्यों जा रहा है। इस सवाल पर सरकार को चिंतन करने की आवश्यकता तो है, लेकिन लगता है सरकार के पास चिंतन करने का समय नहीं है। सरकार का फोकस नए स्कूल खोलने के ऐलानों पर ज्यादा लगता है, क्वॉलिटी ऑफ एजुकेशन पर नहीं।

(आर्टिकल के साथ इस्तेमाल की गई तस्वीर प्रतीकात्मक है।)

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