शनिवार को बैजनाथ पहुंचे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कुछ अलग अंदाज़ में दिखे। आमतौर पर उनका भाषण राजनीति और सरकार के कार्यों पर ही फोकस्ड रहता है लेकिन बैजनाथ की गुनगुनी धूप में उन्होंने अपने विरोधियों पर भी कोई प्रहार नहीं किया। राजनीतिक भाषण संक्षिप्त में निबटाकर ज्यों ही धोलाधार की तरफ उनकी नजर उठी, कुछ क्षण रुककर धौलाधार को निहारते रहे। इसके बाद उनके शब्द किसी और तरफ ही रुख कर गए।
मुख्यमंत्री बोले समस्त राजनीतिक जीवन में पूरा प्रदेश घूमा, हर जगह गया मगर बड़ा भंगाल कभी नहीं जा पाया। इस बार गर्मियों में जरूर जाऊंगा। इसके बाद वह हिमाचल प्रदेश की संस्कृति पर बोलने लगे। कुछ क्षण विराम लेने के बाद उन्होंने कहा दया और धर्म हिमाचल प्रदेश संस्कृति हैं, लेकिन हम अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘सड़कों पर घूमती दर-दर की ठोकरें खाती गऊ माता की दशा से दिल दुखी होता है। सरकार इनके लिए गोशाला का निर्माण करने जा रही है परन्तु लोगों सहयोग के बिना यह कार्य पूर्ण नहीं हो पायेगा।’
भावुक होते हुए वीरभद्र ने कहा, ‘आखिर ऐसी नौबत ही क्यों आई कि गाय सड़कों पर छोड़ दी गई। आखिर हमारे दीन धर्म को क्या हो गया? कल को ऐसा न हो बच्चे बूढ़े मां-बाप बोझ समझने लगें।’ युवा लोगों ओर मुखातिब होते हुए मुख्यमंत्री ने आह्वाहन किया, ‘आज का बच्चा कल का युवा और परसों का बुज़ुर्ग होगा। कोई कितना पढ़-लिख ले मगर संस्कृति न भूले। हिमाचल प्रदेश की पहचान बनी रहे यही हमारी उपलब्धि होगी।’
इसी साथ मुखयमंत्री का सम्बोधन खत्म हुआ और काफी देर तक तालियों की आवाज गूंजती रही। महिलाओं और ख़ासकर उम्र का दौर गुजार चुके लोगों की आंखें इस दौरान भर आई थीं।