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हार से ‘बौखलाए’ वीरभद्र ने शुरू की बदले की राजनीति?

शिमला।।
प्रदेश की चारों सीटों पर मुंह की खाने से बौखलाई कांग्रेस सरकार ने आनन-फानन में कुछ ऐसे फैसले लिए हैं, जिनसे चारों तरफ उसकी आलोचना हो रही है। सरकार ने कांगड़ा से बीजेपी सांसद शांता कुमार के चैरिटेबल ट्रस्ट के मेडिकल कॉलेज समेत 4 मेडिल कॉलेजों की मंजूरी रद्द कर दी है। इसके साथ ही सचिवालय में शिमला रूरल सेल को बंद करने की तैयारी भी की जा रही है।हिमाचल प्रदेश के अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज स्थापित करने के लिए जारी किए 4 लेटर ऑफ इन्टेंट (एलओआई) कैंसल कर दिए हैं। ये एलओआई इससे पहले ही बीजेपी सरकार ने जारी किए थे। इन चार कॉलेजों में से एक शांता कुमार के विवेकानंद ट्रस्ट का है, जो पालमपुर में है। इसके अलावा हमीरपुर, बडू साहिब पावंटा और मंडी के लिए दी गई मंजूरी भी रद्द कर दी गई है। यह फैसला मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की अध्क्षता में हुई बैठक में लिया गया है।

कॉलेजों को दिए गए एलओआई रद्द करने को सरकार का सामान्य फैसला समझा जा सकता था, लेकिन एक अन्य फैसले को देखकर ऐसा लग नहीं रहा। सरकार ने सचिवालय में शिमला रूरल सेल को बंद करने की तैयारी शुरू कर  दी है। इसे सेल को कांग्रेस सरकार के गठन के बाद खोला गया था। जाहिर है, ऐसे में यह फैसला भी वीरभद्र सिंह की इजाजत के बिना नहीं लिया गया होगा। इन फैसलों की टाइमिंग भी साफ इशारा कर रही है कि कहीं न कहीं ये राजनीति से प्रेरित फैसले हैं।

खबर है कि वीरभद्र सिंह इस बात से बेहद नाराज हैं कि उनके अपने चुनाव क्षेत्र शिमला रूरल से बीजेपी के कैंडिडेट वीरेंद्र कश्यप को 1734 वोटों की ली़ड कैसे मिल गई। इसी बात से नाराज होकर रूरल सेल को बंद किया जा रहा है। अधिकारी तो इस बारे में कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन खबर है कि सोमवार या मंगलवार तक इस सेल को बंद करने का आदेश जारी किया जा सकता है। अखबारों में छपी खबर के मुताबिक शनिवार को सामान्य प्रशासन विभाग ने जानकारी मांगी है कि इस सेल के माध्यम से अब तक विकास के कितने काम हुए हैं।

इन खबरों से वीरभद्र सिंह के करीबी भी हैरान हैं। कांग्रेस के एक जिला स्तर के नेता ने बताया कि वीरभद्र सिंह जैसे परिपक्व नेता से ऐसी राजनीति की उम्मीद नहीं की जा सकती। शिमला रूरल के एक बाशिंदे को शनिवार को सचिवालय में मुसीबतों का सामना करना पड़ा। इस परेशान सीनियर सिटिजन ने कहा कि राजनीति में जीत-हार लगी रहती है। इस तरह से बदले की भावना से काम करना लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।

वहीं वीरभद्र के विरोधियों का कहना है कि परिवारवाद के चक्कर में वीरभद्र विवेक खो चुके हैं। कुछ लोग उनकी बढ़ती हुई उम्र को भी इस तरह के फैसलों के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं। वीरभद्र के करीबियों का भी मानना है कि पहले से ही हाईकमान की नजरों में चढ़े वीरभद्र इस तरह के कदम उठाकर अपनी ही मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। मगर ये करीबी वीरभद्र को सलाह देने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे, क्योंकि इन दिनों कब उनका मूड उखड़ जाए, कहा नहीं जा सकता।

राजनीतिक पंडितों के मुताबिक आमतौर पर राजनीति की शतरंज के माहिर वीरभद्र सोच-समझकर चालें चलते थे। लेकिन अब चारों तरफ से घिर जाने पर अब वह एक अनाड़ी की तरह फैसले लेकर चालें-चल रहे हैं। वह प्यादों को मारने के चक्कर में अपने हाथी, घोड़े, ऊंट और वजीर तक को गंवा चुके हैं। अब उनके पास सिर्फ राजा और कुछ प्यादे ही बचे हैं। देखना यह है कि इस तरह से यह बाजी कब तक चलती रहती है।

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