‘इन हिमाचल’ को अपने फेसबुक पेज पर एक पाठक और IIT दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर आशीष नड्डा की तरफ से एक मेसेज मिला है। इस मेसेज में उन्होंने हिमाचल प्रदेश सरकार के उस फैसले से अहमति जताई है, जिसके तहत इंजिनियरिंग करने की इच्छा रखने वाले छात्रों को पॉलिटेक्निक या इंजिनियरिंग के लिए होने वाले नैशनल लेवल टेस्ट्स देना अनिवार्य कर दिया गया है। उन्होंने प्रदेश के तकनीकी शिक्षा मंत्री जी.एस.बाली को एक पत्र लिखा है, जिसे हम यथावत प्रकाशित कर रहे हैं।- संपादक
श्री जी.एस.बाली,
तकनीकी शिक्षा एवं परिवहन मंत्री,
हिमाचल प्रदेश सरकार।
आदरणीय बाली जी,
मैं आशीष नड्डा आपके राज्य का एक नागरिक हूं और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली(IIT Delhi ) से पीएचडी कर रहा हूं। सबसे पहले तो मैं आपको इस बात के लिए बधाई देना चाहता हूं कि आप हिमाचल सरकार के इकलौते ऐसे मंत्री हैं, जो पारंपरिक ढर्रे से हटकर प्रदेश की तरक्की के लिए कुछ न कुछ दूरदर्शी फैसले लेते रहते हैं। मैंने यह देखा है कि आप नई और व्यावहारिक सोच लेकर चलते हैं।
श्रीमान जी! इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान आपकी सरकार और मंत्रालय के ऐसे फैसले की तरफ लाना चाहता हूं, जिसमें मुझे नीतिगत स्तर पर अमल लाने में कुछ त्रुटियां नजर आ रही हैं। इस फैसला का नुकसान आम आदमी और हिमाचल प्रदेश के छात्रों को ही उठाना पड़ रहा है। लेकिन उस बात पर आने से पहले मैं यह साफ़ कर देना चाहता हूं कि मैं किसी राजनीतिक या शैक्षणिक संस्था से नहीं जुड़ा हूं। इस मामले का मैंने अपने विवेक और अनुभव से स्वतः संज्ञान लिया है।
मंत्री जी! कैबिनेट की मीटिंग के एक फैसले के तहत सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जो छात्र पॉलिटेक्निक की परीक्षा या इंजिनियरिंग की राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली परीक्षा में नहीं बैठेंगे, उन्हें बाद में प्रदेश के किसी भी संस्थान में दाखिला नहीं दिया जाएगा। या यूं कहा जाए कि इन परीक्षाओं में बैठना अनिवार्य कर दिया गया है, भले ही छात्र को बाद में शून्य अंक ही क्यों न आएं। नीतिगत रूप से आपका यह निर्णय सही हो सकता है, लेकिन प्रदेश की भौगोलिक और ग्रामीण परिस्थितियों को देखते हुए इस फैसले के दुष्परिणामों से आपको अवगत कराना चाहता हूं।
‘नंबर मायने न रखते हों, ऐसे टेस्ट का क्या फायदा?’ |
श्रीमान! प्रदेश में कई ऐसे परिवार हैं जो खुद उच्च शिक्षित नहीं हैं और न ही स्कूल लेवल के बाद सही से जानते हैं कि बच्चे को आगे क्या शिक्षा दी जाए। जो भी टेस्ट आपने अनिवार्य किए हैं, इनके फॉर्म अक्टूबर नवंबर में भर दिए जाते हैं। यानी अगर कोई दसवी या बारहवीं कक्षा में पढ़ रहा हो तो उसे स्कूल के बाद तकनीकी शिक्षा के लिए अगले सत्र में ऐडमिशन के लिए यह फॉर्म नवंबर-अक्टूबर में भरने होंगे। कई बार उन घरों के बच्चे, जिनके घर में शिक्षा से जुड़ा माहौल न हो, उस समय ये फॉर्म अनिभज्ञता या जागरूकता की कमी या सेशन में व्यस्त रहने के कारण नहीं भर पाते। परन्तु बाद में जब वे अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर लेते हैं, तब जाकर ही कहीं ऐडमिशन के लिए सोचते हैं। इधर-उधर पता करते हैं तो उन्हें पता चलता है की वे किसी निजी संस्थान में दाखिल ले सकते हैं। परन्तु आपके इस रूल के कारण ऐसे छात्र प्रदेश में अपने घरों के आसपास शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाएंगे। इसके लिए उनके गरीब अभिवावकों को उन्हें बाहरी प्रदेशों में भेजना होगा। इसके लिए उन्हें वहां हॉस्टल की फीस या रहने के लिए अलग से खर्च वहन करना होगा। क्या यह उनके साथ ज्यादती नहीं है?
आपके रूल से या तो बच्चे का एक साल खराब होगा या कोई गरीब जो अपने घर के आसपास बच्चे को शिक्षा दे सकता है, उसे प्रदेश के बाहर भेज कर अनावश्यक खर्चे के बोझ तले दबना पड़ेगा। और उसे टेस्ट में सिर्फ बैठना अनिवार्य करना, भले ही अंक शून्य या नेगेटिव हों, कहां तक व्यावहारिक है?
श्रीमान जी! अब मैं आपका ध्यान तकनीकी शिक्षा के डिग्री कोर्स की तरफ लाता हूं। मैं आज आईआईटी दिल्ली से पीएचडी कर रहा हूं, लेकिन मैंने स्कूल पास करके इंजिनियरिंग में जाने के लिए एक साल कोचिंग भी ली थी। इसके बावजूद मैंने IIT-JEE का फॉर्म नहीं भरा था। मुझे लगता था कि मेरी तैयारी उस लेवल की नहीं है तो मैं क्यों अपने पैसे फालतू में बर्बाद करूं। श्रीमान! आज वही फॉर्म, जिसका टेस्ट आपने अनिवार्य किया है, एक हजार रुपये के आसपास का हो गया है। हो सकता है किसी गरीब का बच्चा उसे इसलिए नहीं भरता हो कि प्रतिस्पर्धा के हिसाब से मेरी तैयारी नहीं है तो मैं क्यों पैसे बर्बाद करूं। मान लीजिए बाद में उस बच्चे के घर वालों को लगता है कि हम कैसे न कैसे पैसे जोड़कर या बैंक से लोन लेकर अपने बच्चे को प्रदेश के किसी कॉलेज से इंजिनियरिंग करवा देंगे। ऐसे में आपका बनाया रूल उस बच्चे के भविष्य के आड़े आ जाएगा।
मंत्री जी, मेरे कहने का मतलब है कि आपके इस रूल से शिक्षा की गुणवत्ता में कोई वृद्धि नहीं हो रही। गरीब या जो लोग जागरूक नहीं हैं, उन परिवारों के बच्चों पर प्रदेश से बाहर जाकर शिक्षा ग्रहण करने का अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ रहा है और कुछ तो शिक्षा से महरूम रह जा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि इसका कारण वे टेस्ट हैं, जिनमें बैठना आपने अनिवार्य कर रखा हैं। वह भी इस अजीब तर्क के साथ कि मार्क्स कितने भी आएं, कोई फर्क नहीं पड़ेगा, बस एग्जाम दीजिए।
मैं उम्मीद करता हूं कि आपका पूरा ध्यान प्रदेश में निजी कॉलेजों की गुणवत्ता सुधारने पर रहेगा। लेकिन आपके इस फैसले से सिर्फ बाहरी राज्यों की तरफ पलायन बढ़ रहा है और यह गारंटी नहीं है वहां अधिक पैसे खर्च करके भी इन बच्चों को क्वॉलिटी एजुकेशन मिले।
भवदीय,
Aashish Nadda (PhD Research Scholar)
Center for Energy Studies
Indian Institute of Technology Delhi
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