बिलासपुर के टीहरा में हुए हादसे में दो मजदूरों को मौत के मुंह से निकलने में 10 दिन की अनथक मेहनत लगी। इस कार्य में बड़ी कंपनी के इंजीनियर्स, एनडीआरएफ, बीआरओ के जवान, सहायक मजदूर एवं प्रशासन के साथ एक ऐसे शख्स का नाम लेना भी बहुत जरूरी है, जिसके टैलंट के कारण ही पांचवें दिन मजदूरों के ज़िंदा होने की पुष्टि हो पायी थी।
राज कम्युनिकेशन घुमारवीं के मालिक राजेश शर्मा ने इन दुर्गम परिस्थितियों में जमीन से 50 मीटर नीचे सीसीटीवी कैमरा और माइक्रोफोन पहुंचाया। यह कोई आसान कार्य नहीं था। इन हिमाचल के साथ खास बातचीत में राजेश शर्मा ने इस बारे में डीटेल में बताया कि यह सब कैसे सम्भव हो पाया और क्या परेशानियां आईं।
राजेश शर्मा
राजेश ने बताया कि जब सुरंग के मेन गेट से मलबे को हटाकर अंदर जाना पॉसिबल नहीं रहा तो इन्जिनियर ने फैसला लिया कि सुरंग के ऊपर कहीं से नीचे होल कर के हम सीसीटीवी कैमरा नीचे भेजंगे और स्थिति का पता करेंगे। यह कोई आसान कार्य नहीं था। पहले तो पहाड़ी के ऊपर जहां होल करना था, वहां जाने के लिए सड़क बनानी पड़ी। ड्रिलिंग को कम्पलीट होते-होते पांच दिन लग गए। राजेश ईमानदारी से कहते हैं कि पांच दिन बाद किसी को भी नीचे मजदूरों के जिन्दा होने की उम्मीद नहीं थी।
राजेश बताते हैं कि ड्रिलिंग खतम होने के बाद अब मेरा काम शुरू था। परन्तु चुनौती यह थी कि 50 मीटर तक सीसीटीवी कैमरे को कैसे उतारा जाए। वह भी 4 इंच के उस छेद से, जहां पानी भी रिस रहा था। कैमरा भी इस तरह से पहुंचना चाहिए था कि नीचे उसे हर दिशा में घुमा सकें। ऐसा करने में बार-बार परेशानी आ रही थी।
साइट पर अपने कार्य में लगे हुए राजेश
निराश हुए जब सीसीटीवी में कोई नहीं दिखा
राजेश कहते है कि एक घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद जब कमयाबी हाथ नहीं लगी तो हमने वही तरीका अपनाया, जिससे कठपुतलियां कंट्रोल की जाती हैं। मगर तब निराशा छा गई, जब कैमरे को इधर-उधर घुमाने पर कोई हलचल नहीं दिखी। इतनी मशक्कत के बाद यह सब निराश कर देने वाला था। तभी उन्हें लगा कि हो सकता है मजदूर कैमरे वाले स्थान से दूर हों और अंधेरे में वैसे भी कहां कुछ दिखता।
पहली बार सुनी सतीश की आवाज
फिर एक नया ट्रिक आजमाया गया। कैमरे को ऊपर खींच लिया गया और एक जलती हुई टॉर्च नीचे भेजी गयी। यह तरीका वाकई लाज़बाब था और काम भी कर गया। टॉर्च की रौशनी वहां से 100 मीटर दूर मशीन पर बैठे मजदूरों को दिख गई। यह टॉर्च की रौशनी नहीं थी, यह उम्मीद और जिंदगी की रौशनी थी। सतीश और मनीराम दोनों मजदूर उस ओर लपके। राजेश कहते हैं मैं होल के ऊपर से आवाजे भी लगा रहा था। तभी नीचे से भी आवाज आई। राजेश ने बताया, ‘यह मेरी जिंदगी का सबसे ज्यादा ख़ुशी का पल था। मैंने सबको बताया कि नीचे से भी आवाज आ रही है पर कोई नहीं माना। लोगों ने कहा यह तुम्हारी आवाज वापस आ रही है। पर मैं जानता था कि यह आवाज मेरी नहीं, नीचे से आ रही है।’
राजेश ने बताया, ‘इस बात को पुख्ता करने के लिए अब मैंने दोबारा सीसीटीवी कैमरा और उसके साथ वन-वे माइक्रोफोन नीचे भेजा। सीसीटीवी कैमरा जब नीचे पहुंचने वाला था, मजदूर सतीश ने उसे अपने हाथों से खींचा और ऊपर तक सबको पता चल गया नीचे कोई है जो अपने आप डोरी को खींच रहा है। थोड़ी देर में ही पेड़ से लगी हमारी स्क्रीन पर दो चहरे दिखे। यह हम सबके लिए खुशी का पल था। इस खबर के साथ पूरा हिमाचल झूम गया। बचाव अभियान अब नए जोश में था। फिर टू-वे कम्युनिकेशन सेट किया गया फिर रोज कई बार बात होने लगी।’
प्रथम बार जब स्क्रीन पर दिखे मजदूर
‘देखा नहीं था पर सतीश से दोस्ती हो गई’
राजेश बताते हैं सतीश तोमर ही अक्सर नीचे से बात करता था। उसका सेन्स आफ ह्यूमर और हिम्मत जबरदस्त थी। राजेश ने बताया, ‘अक्सर मैं ही मजदूरों से बात किया करता था। सतीश को पहले कभी देखा नहीं था पर एक दोस्ती टाइप हो गयी थी और बस अब उसी दिन का इंतज़ार था कब वो बाहर आए। यह इंतज़ार लंबा खिंच रहा था चिंता भी होती थी परन्तु आखिर 10 वे दिन भगवान की कृपा से वो बाहर निकाल लिए गए। अब उनसे मिलूंगा जब वो हॉस्पिटल में थोड़ा ठीक हो जायेंगे तो।’
बहुत काम सोये पांच दिन
राजेश ने बताया कि दोनों बन्दों के जीवित होने का पता लगने के बाद दिन रात काम होने लगा फिर बहुत कम सोना होता था। पांच दिन बस वहीं साइट पर ही कभी 2 या 3 घंटे की नींद हो पाती थी। परन्तु दिल को एक सकून मिलता था कि नहीं, इस पुण्य कार्य को करना है। सबसे पहले मुझे यह पता चला कि अंदर लोग जिन्दा है यह मेरे लिए बहुत ही गर्व और रोमांच भरा अनुभव था।’
ऑपरेशन का अंतिम चरण जब नीचे उतरा जवान
राजेश कहेते हैं कि अब बस यही दुआ भगवान से है कि तीसरा मजदूर हिरदा राम भी खाएं देव कृपा से सलामत हो।
‘इन हिमाचल’ राजेश शर्मा के जज्बे, संवेदना और टैलंट को सलाम करता है।