हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय नेताओं में से एक और बीजेपी के सीनियर लीडर जगत प्रकाश नड्डा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे हैं। भले ही प्रदेश में नेतृत्व विवाद को टालने के लिए उन्हें पार्टी ने केंद्र की तरफ भेजा था, लेकिन इस बात का अंदाजा किसी को नहीं था कि अपनी काबिलियत के दम पर वह संगठन में सबसे ऊंचे पद की जिम्मेदारी संभालने तक के दावेदार हो जाएंगे। आइए, एक नजर डालते हैं जेपी नड्डा के अब तक के राजनीतिक सफर पर:
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जिस वक्त बिहार में स्टूडेंट मूवमेंट चरम पर था, उस दौर में जेपी नड्डा की उम्र 15-16 साल थी। मगर इसी उम्र में नड्डा ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसके बाद वह छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और एबीवीपी के साथ जुड़े। 1977 में छात्र संघ चुनाव में वह पटना यूनिवर्सिटी के सेक्रेटरी चुने गए। 13 सालों तक वह विद्यार्थी परिषद में ऐक्टिव रहे।
संगठन में उनकी काबिलियत को देखते हुए जेपी नड्डा को साल 1982 में उनके पैतृक राज्य हिमाचल प्रदेश में विद्यार्थी परिषद का प्रचारक बना कर भेजा गया। इसके साथ ही उन्होंने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई भी शुरू की। तेज़ तर्रार जेपी नड्डा हिमाचल के उस दौर के छात्रों में काफी लोकप्रिय हुए। नड्डा के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के इतिहास में पहली बार छात्र संघ चुनाव हुआ और उसमें विद्यार्थी परिषद को संपूर्ण जीत हासिल हुई। उस दौर में वह 1983-1984 में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी परिषद के पहले प्रेजिडेंट बने। 1986 से 1989 तक जगत प्रकाश नड्डा विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव रहे।
1989 में केंद्र सरकार के भ्रटाचार के खिलाफ नड्डा ने राष्ट्रीय संघर्ष मोर्चा का गठन किया इस आंदोलन को चलाने के लिए उन्हें 45 दिन तक जेल में भी रहना पड़ा। 1989 के लोकसभा चुनाव में जगत प्रकाश नड्डा को भारतीय जनता पार्टी ने युवा मोर्चा का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया गया जो देश में युवा कार्यकर्तायों को चुन कर चुनाव लड़ने के लिए आगे लाने का काम करती थी। 1991 में 31 साल की आयु में नड्डा भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्य्क्ष बने। अपने कार्य काल में नड्डा ने जमीनी स्तर पर लोगों को जोड़ने और ट्रेनिंग देने पर बल दिया। जेपी नड्डा के कार्यकाल में बहुत से युवा पार्टी से जुड़े। उन्होंने कार्यशाला आदि लगाकर युवा वर्ग के भीतर पार्टी की विचारधारा का प्रचार किया । यह उस समय अपने आप में एक नई तरह का प्रयोग था।
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1993 में नड्डा ने चुनावी राजनीति की तरफ रुख किया और अपने पहले ही चुनाव में हिमाचल प्रदेश विधानसभा में बिलासपुर के विधायक के रूप में कदम रखा। इस चुनाव में पार्टी के प्रमुख नेताओं की हार के कारण नड्डा को विधानसभा में विपक्ष का नेता चुना गया। तेज तर्रार और ओजस्वी वक्ता के रूप में नड्डा ने कम विधायकों का साथ होने के बावजूद सरकार को 5 साल तक विभिन्न मुद्दों पर ऐसे घेरा की विपक्ष में होने के बावजूद उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया। 1998 में हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने पर नड्डा ने स्वास्थय मंत्रालय का कार्यभार संभाला। बाद में 2007 की बीजेपी सरकार में नड्डा वन पर्यावरण और संसदीय मामलों के मंत्री रहे। मंत्रायलय और सत्ता से ऊपर संगठन को तवज्जो देने वाले शख्स की छवि रखने वाले नड्डा ने मंत्रालय से इस्तीफा दिया और राष्ट्रीय टीम का रुख किया। वह नितिन गडकरी की टीम में राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता रहे।
राजनाथ सिंह की टीम में उन्हें दोबारा राष्ट्रीय महासचिव चुना गया। अभी तक वह इसी पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान संगठन की जिम्मेदारी संभालने से लेकर और भी कई काम उन्होंने बखूबी निभाए। टिकट आवंटन के समय भी उनकी योग्यता पार्टी के काम आई। खास बात यह रही कि वह किसी भी खेमे से नहीं जुड़े और बीजेपी का हर धड़ा उनकी संगठन शक्ति का लोहा मानता है।
नड्डा छत्तीसगढ़ के भी प्रभारी रहे थे, जहां पर बीजेपी ने तीसरी बार सरकार बनाई। लो-प्रोफाइल रहने वाले नड्डा को बीजेपी के लगभग सभी बड़े नेताओं का समर्थन हासिल है। नड्डा के रिश्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी काफी अच्छे रहे हैं। एक अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मोदी जब हिमाचल प्रदेश के प्रभारी थे, तब से दोनों के बीच समीकरण काफी अच्छा है। दोनों अशोक रोड स्थित बीजेपी मुख्यालय में बने आउट हाउस में रहते थे। वह बीजेपी के स्टार जनरल सेक्रेटरी अमित शाह के साथ पार्टी की यूथ विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा में काम कर चुके हैं।
(विभिन्न स्रोतों से एकत्रित जानकारी के आधार पर)