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क्या यह गरीब की मेहनत का उपहास नहीं : चार महीने से नहीं मिला मिड डे मील वर्कर को मानदेय

आशीष नड्डा ।

वो सुबह पहले अपने घर का काम निबटाती हैं  फिर जल्दी जल्दी गावं के  स्कूल की तरफ रूख करती है।  कुछ भी हो कोई भी परिस्थिति हो उन्हें स्कूल पहुंचना ही है क्योंकि वो नहीं पहुंचेगी तो उन बच्चों के लिए खाना कैसे बनेगा जो दिन का लंच स्कूल में बने भोजन से ही करते हैं।  महीने की चार छ छुट्टियों को छोड़ दिया जाए तो इन औरतों की दिन की यही दिनचर्या है।  इन्हे अपने अपने इलाकों में मिड डे मील वर्कर के नाम से जाना जाता है।
आप हैरान होंगे यह सब यह औरते कर रहे हैं सिर्फ 1000 रूपए मासिक पगार के लिए।  आप समझ सकते  हैं एक हजार रुपया क्या होता है हर आदमी के लिए एक हजार रूपए की अलग अलग कीमत है।  वीकंड पर दो दोस्तों का पार्टी का मूड बन जाए तो दारु की एक अदद बोतल और च साथ में चिकन मटन पर ही एक हजार रुपया उड़ जाता है।
लेकिन 1000  रूपये की कीमत  इन ग्रामीण गरीब औरतों से बेहतर कौन जान सकता है जिन्हे हर रोज बच्चों का खाना स्कूल में जाकर बनाना है उसे परोसना है  पूरा महीना यह करने के बाद  तब महीने के अंत में 1000 रुपया सरकार की तरफ से मिलता है। अब आप समझ सकते हैं 1000 रुपया कितना कीमती है किसी के लिए।  इन सब के बीच दुःख का विषय और यहाँ आर्टिकल लिखने का कारण मुझे इसलिए लगा जब मुझे पता चला की पिछले चार महीनों से हमारी सरकार जो तीन साल पुरे करने का जश्न मना रही है 1000 रूपए सेलरी इन मिड डे मील वर्कर्स को नहीं दे पा रही है।
आप जान रहे होंगे 1000 रुपये के लिए इतनी जद्दोजहद और वो 1000 भी चार महीने से नहीं मिला है लेकिन  कोई सुनने वाला नहीं है।  मुख्यमंत्री जिनके पास खुद  शिक्षा विभाग है दम्भ से मंचों से बड़ी बड़ी बाते करते हैं और उनके होनहार शिक्षा सचिव नीरज भारती उनके बारे में जितना कहा जाए कम है।  यह सब काली  भेड़ों की तलाश में हैं गरीब की आह पुकार इनके कानों में नहीं जाती है।  शिक्षा विभाग में दिहाड़ी पर कार्यरत एक गरीब  मिड डे मील वर्कर औरत को  महीने का उसकी मेहनत का 1000 रूपया भी पिछले चार महीने से न मिला हो  तो लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गयी सरकार को तीन साल का जश्न मनाने से पहले  आत्ममंथन करना चाहिए।
मिड डे मील परोसती कार्यकर्ता : सांकेतिक चित्र
यह हजार रुपया भी सरकार समय पर नहीं देती और मिड डे मील वर्कर महिलाओं से उम्मीद करती है की वो खाना बनाये और साथ में हर बच्चे की थाली भी साफ़ करें यानि 200 बच्चों को खाना भी बने और  200 थालियां भी रोज कोई साफ़ करे और महीने के अंत में 1000 रूपए के लिए भी तरस जाए। किसी स्कूल में 20 बच्चे पढ़ते है किसी स्कूल में 200 भी हैं पर महीना का मानदेय फिक्स है 1000 और वो भी समय पर नहीं मिलता।

मुख्यमंत्री जी कृपया काली पीली भेड़ों से फुर्सत मिले तो अपने प्रदेश के इंसानों की भी सुध लें।   इस तरफ ध्यान दे शिक्षा विभाग आपने अपने पास रखा है।  हो सकता है एक राजा के  लिए 1000 रुापये की कोई कीमत न हो पर एक आशा के साथ इस कार्य में जुडी इन महिलाओं के लिए यह बहुत बड़ी रकम है।  चार महीने का मानदेय समय पर देने की कृपा करें।

“लेखक आई आई टी दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर हैं और प्रादेशिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं इनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है। ” 

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