मंत्रिमंडल विस्तार: हलचल बढ़ी, इन्हें मिल सकती हैं फॉर्च्यूनर*

फ़ाइल फ़ोटो
*दरअसल पहले मंत्री पद मिलने के लिए मुहावरा इस्तेमाल होता था- लाल बत्ती मिलना। मगर वीआईपी कल्चर ख़त्म करने के लिए लाल बत्ती तो इस्तेमाल होती नहीं मगर स्टेटस सिंबल के लिए महँगी एसयूवी, इस्तेमाल होने लगी है। हिमाचल में मंत्रियों को जीएडी से फॉर्च्यूनर मिलती हैं (हालाँकि कुछ मंत्रियों ने अपने विभागों से भी अतिरिक्त गाड़ियाँ इशू करवाई हैं)। इसलिए शीर्षक में हमने फॉर्च्यूनर मिलने को मंत्री पद मिलने के मुहावरे के तौर पर इस्तेमाल किया है।

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में लंबे समय से तीन मंत्री पद ख़ाली चल रहे हैं और अब सत्ताधारी बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष का पद भी ख़ाली हो गया है। इस बीच प्रदेश के राज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की बैठक क्या हुई, एक बार फिर यह चर्चा ज़ोर पकड़ने लगी कि कहीं सीएम मंत्रिमंडल का विस्तार तो नहीं करने जा रहे।

सबसे पहला मंत्री पद तब ख़ाली हुआ था जब लोकसभा चुनाव से पहले अनिल शर्मा ने इस्तीफ़ा दे दिया था। वह ऊर्जा मंत्री थे मगर उनके बेटे आश्रय शर्मा ने कांग्रेस के टिकट से मंडी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। इस कारण अनिल शर्मा को मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। उसी दौरान किशन कपूर को बीजेपी ने काँगड़ा से लोकसभा का उम्मीदवार बनाया था और वह जीत भी गए थे। ऐसे में उनका मंत्री पद भी ख़ाली हो गया। तीसरा मंत्री पद स्वास्थ्य मंत्री विपिन सिंह परमार के हिमाचल विधानसभा अध्यक्ष बनने पर ख़ाली हुआ था। विधानसभा अध्यक्ष का पद डॉक्टर राजीव बिंदल के बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बनने के लिए इस्तीफ़ा देने से ख़ाली हुआ था।

सूत्रों का कहना है कि जब अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष थे और हिमाचल में दो मंत्री पद ख़ाली थे, तब उन्होंने जयराम को मंत्री चुनने की खुली छूट दी हुई थी। उनका सिर्फ़ यही कहना था कि शपथ समारोह से पहले बस एक बार सूचित कर दें कि किसे मंत्री बनाने जा रहे हैं और कब। मगर जयराम ठाकुर ने उस समय फ़ैसला नहीं लिया और यही ढील उन्हें अब महँगी पड़ सकती है। दरअसल अब प्रदेश की राजनीतिक स्थिति बहुत बदल गई है।

अब जेपी नड्डा बीजेपी के अध्यक्ष हैं और उनके आने के बाद ही बिंदल को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया था। नड्डा चाहेंगे कि वह अपने क़रीबियों को मंत्री पद दिलाए। उधर धूमल गुट भी चाह रहा है कि उनमें से कोई मंत्री बने। इस ख़ेमे ने पहले भी बिंदल और बरागटा को मंत्री बनाने के लिए ज़ोर लगाया था। मगर जयराम चाहते है कि सरकार जब उन्हें चलानी है तो मंत्री उनकी पसंद के हों।

मंत्री पद के लिए ये नाम आगे
मंत्री पद के लिए एक नाम जो सबसे आगे चल रहा है, वो है राकेश पठानिया। विधानसभा से लेकर प्रेस कॉन्फ़्रेंस तक वह खुलकर सरकार का बचाव करते नज़र आए है। जब-जब विपक्ष ने सीएम को घेरने की कोशिश की है, पठानिया ने वह भूमिका निभाई है जो सरकार में पहले से बैठे मंत्री नहीं निभा पाए। उनकी आक्रामक शैली और जुनूनी रवैया चर्चा में रहता है। वह काँगड़ा ज़िले से हैं ऐसे में क्षेत्र के समीकरणों के ऐंगल से भी फ़िट बैठते हैं।

राकेश पठानिया

उन्हें ऊर्जा मंत्रालय दिया जा सकता है और साथ ही अर्बन डिवेलपमेंट भी। दरअसल यह भी माना जा रहा है कि प्रदेश के कुछ मंत्रियों के महकमे बदले जा सकते है और कुछ से मंत्री पद वापस लेने का फ़ैसला भी हो सकता है। यह निर्णय आलाकमान परफ़ॉर्मेंस के आधार पर लेगा। शहरी विकास मंत्रालय ऐसे ही मंत्रालयों में से एक है जिसकी रेटिंग कम मानी जा रही है। ऐसे में दो परिस्थितियाँ पैदा हो रही हैं- सरवीण को हटाया जा सकता है या फिर उनका महकमा बदला जा सकता है।

अगर सरवीण को मंत्री पद से हटाया जाता है तो सरकार को कैबिनेट में एक महिला मंत्री बनानी होगी। ऐसे में भोरंज की विधायक कमलेश को मंत्री पद दिया जा सकता है। ऐसा करने से हमीरपुर और बिलासपुर क्षेत्र को प्रतिनिधित्व भी मिल जाएगा और महिला का कोटा भी पूरा हो जाएगा। दरअसल हमीरपुर के विधायक नरेंद्र ठाकुर को मंत्री बनाया जा सकता था मगर धूमल ख़ेमे को इसपर घोर आपत्ति है।

सरवीण चौधरी

अब दूसरी बात- अगर सरवीण को हटाया नहीं जाता है तो क्या होगा। ऐसी स्थिति में उनका महकमा बदलना तय है। सूत्रों का कहना है कि उन्हें राजीव सहजल की जगह सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय दिया जा सकता है और सहजल को स्वास्थ्य मंत्री बनाया जा सकता है। वह ख़ुद डॉक्टर (BAMS) भी हैं। अभी स्वास्थ्य मंत्रालय सीएम के पास है।

इसके अलावा विधानसभा के डेप्युटी स्पीकर हंसराज को भी मंत्री बनाया जा सकता है। हालाँकि, उनका रवैया सरकार को परेशानी खड़ी करने वाला रहा है। वह मंच से कई बार ऐसी बातें कह चुके हैं जो पद के अनुरूप नहीं थी। इनमें चुनावों के दौरान पुलिसकर्मियों को धमकाने और डीसी से वाहन को ओवरटेक करने के लेकर विवाद करना शामिल है।

हंसराज

इसके अलावा सिरमौर ज़िले से सुखराम चौधरी को भी मंत्री बनाने की चर्चा है।

वहीं बिंदल के इस्तीफ़े के बाद ख़ाली हुए प्रदेशाध्यक्ष पद पर भी नियुक्ति होनी है। नाम तो कई हैं मगर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चलेगी इसमें नड्डा की ही। हालाँकि, और ऊपर से आदेश आया तो ऐसा चेहरा देखने को मिल सकता है जो सबको चौंका सकता है।

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