जानें, रेप विक्टिम की पहचान जाहिर करने को लेकर क्या कहता है कानून

शिमला।। हिमाचल प्रदेश सरकार ने शिमला रेप विक्टिम के नाम पर उसके गांव के स्कूल का नामकरण लेने का फैसला किया है। इस फैसले को लेकर सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कानून के मुताबिक विक्टिम की पहचान को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। न सिर्फ नाम और तस्वीर, बल्कि परिजनों के नाम या गांव, लोकैलिटी या फिर स्कूल आदि का नाम भी नहीं बताया जाना चाहिए। यानी कोई भी ऐसी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए जिससे पता चले कि विक्टिम कौन है।

इस मामले को बीजेपी नेता प्रेम कुमार धूमल ने सरकार पर निशाना साधा है कि आखिर कैसे इतनी बड़ी चूक कर दी। हालांकि प्रश्न उन्हीं की पिछली सरकार में मंत्री रहे नरेंद्र बरागटा और उनके बेटे पर भी उठ रहे हैं जिन्होंने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर वीडियो शेयर किए हैं और उनमें शुरू में गुड़िया की तस्वीरें नजर आती हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर हजारों लोगों ने गुड़िया की असली तस्वीरें शेयर की हैं और उसकी तस्वीरों वाले प्रोफाइल पिक्चर फ्रेम भी बनाए हैं। इसी के बाद हरकत में आते हुए बाल संरक्षण आयोग ने इन तस्वीरों को हटाने की गुजारिश की है। मगर लोग अब सरकार पर प्रश्न उठा रहे हैं कि सरकार ने फिर क्यों स्कूल का नाम विक्टिम के नाम पर किया और उसकी नोटिफिकेशन भी जारी की। आइए जानते हैं, इस संबंध में कानून क्या कहता है-

क्या कहता है POCSO ऐक्ट
चूंकि शिमला केस की विक्टिम नाबालिग थी और मामला POCSO ऐक्ट के तहत भी दर्ज हुआ है, इसलिए जानना जरूरी है कि यह ऐक्ट क्या कहता है-

पॉक्सो ऐक्ट का सेक्शन 23 इस तरह से है-
(1) किसी भी व्यक्ति को किसी मीडिया, स्टूडियो या फोटो के जरिए पूरी और प्रामाणिक जानकारी के बिना किसी बच्चे पर ऐसी कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए जिससे उसकी छवि खराब हो या उसकी निजता का उल्लंघन हो।

(2) किसी मीडिया में ऐसी रिपोर्ट नहीं आनी चाहिए जिससे कि बच्चे की पहचान जाहिर हो- उसका नाम, पता, फोटो, परिवार का जिक्र, स्कूल, आस-पड़ोस या फिर कुछ ऐसा जिससे उसकी पहचान पता चले। इस मामले में विशेष अदालत को अगर लगता है कि ऐसा किया जाना बच्चे के हित में है तो वह लिखित अनुमति दे सकता है।

(3) अगर कोई कर्मचारी ऐसा करता है तो वह मीडिया, स्टूडियो या फोटोग्राफिक फैसिलिटी पूरे तौर पर जिम्मेदार होंगे।

(4) अगर कोई सब सेक्शन 1 या सब सेक्शन 2 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो या उसे कम से कम 6 महीने और अधिकतम 1 साल व जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

IPC में यह है प्रावधान
इससे पहले कि कानून को समझें, कुछ साल पीछे चलते हैं। जिस समय दिल्ली में निर्भया गैंगरेप मामला हुआ था, उस वक्त केंद्रीय मंत्री शशि थरूर चाहते थे कि बहादुर बेटी का नाम सार्वजनिक किया जाए। उनका कहना था कि जो ऐंटी रेप कानून बने, उसका नाम रेप विक्टिम के नाम पर रखा जाना चाहिए। मगर भारत का कानून कहता है कि रेप विक्टिम की पहचान जाहिर नहीं की जा सकती और ऐसा करने के दोषियों को आईपीसी की धारा सेक्शन 228 A के तहत सजा का सामना करना पड़ सकता है। 2 साल की सजा और जुर्माने तक का प्रावधान इस मामले में है। हालांकि उस वक्त सरकार ने कहा था कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी कानून का नाम किसी व्यक्ति के नाम पर रखा जाए।

क्या कहता है भारत का कानून
आईपीसी की धारा 228-A (Disclosure of identity of the victim of certain offences etc) का Sub Section (1) कहता है-  जिस विक्टिम के मामले में धारा 376, धारा 376A, धारा 376B, धारा 376C या धारा 376D के तहत मामला दर्ज हुआ हो,  उसका नाम या कोई ऐसी सामग्री जो उसकी पहचान बताती हो, प्रकाशित करने वाले को सजा मिल सकती है और 2 साल की सजा व जुर्माना हो सकता है।

सब सेक्शन 2 कहता है-  a) जांच अधिकारी या संबंधित पुलिस स्टेशन के इंचार्ज से लिखित परमिशन के बिना b) या विक्टिम की इजाजत के बिना c) अगर विक्टिम मृत या नाबालिग हो तो उसके निकटतम संबंधी की अनुमति के बिना नाम को प्रकाशित नहीं किया जा सकता। ध्यान रहे कि निकटतम संबंधी इस तरह की अनुमति किसी मान्यता प्राप्त वेल्फेयर इंंस्टिट्यूशन या संगठन के चेयरमैन या सेक्रेटरी के अलावा किसी और को नहीं दे सकता। जिन संगठनों का या संस्थाओं का जिक्र ऊपर किया गया है वे राज्य या केंद्र सरकार की तरफ से मान्यता प्राप्त होने चाहिए (बाल संरक्षण आयोग, महिला आयोग आदि)।

Sub Section (3): जो कोई सब सेक्शन 1 में बताए गए मामलों में कोर्ट में चल रही कार्यवाही को बिना इजाजत प्रकाशित करता है, उसके खिलाफ भी दो 2 साल की जेल और जुर्माने की कार्रवाई हो सकती है। इसका मतलब यह है कि इस तरह के मामलों में फैसला आने तक कोर्ट की कार्यवाही को बिना कोर्ट की इजाजत के प्रकाशित नहीं किया जा सकता। फैसला आ जाने के बाद ऐसा करना अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।

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