कहानी: जातिवाद की वजह से होकर भी नहीं हो पाई शादी

आज से हम नया सेक्शन शुरू कर रहे हैं, जिसमें प्रदेश के लोग ऐसी कहानियां भेज सकते हैं, जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर दें। वे मनोरंजक भी हो सकती हैं और कुछ सिखाने वाली भीं। वे एक सवाल के तौर पर भी हो सकती हैं और समस्या के तौर पर भी, जिसे इन हिमाचल के पाठक अपने सुझाव देकर सुलझाने की कोशिश कर सकते है। हमें इस सेक्शन को शुरू करने की प्रेरणा हमारी रीडर निशा धीमान से मिली, जिन्होंने यह कहानी हमें भेजी है।

पिछले दिनों मंडी में जाति को लेकर एक बारात लौटने की खबर पढ़ी। 2 साल पहले का वाकया मेरी आंखों के सामने घूम गया, क्योंकि उस वक्त भी ऐसा ही कुछ हुआ था। मेरी सहेली मीनू बहुत खुश थी। 5 साल के लंबे अफेयर के बाद उसकी शादी जो हो रही थी। मगर शादी निपटते ही उसकी खुशियों को ग्रहण लग गया। शादी का पंडाल युद्धक्षेत्र में बदल गया था। लोग गुत्थमगुत्था थे। लाठियों-डंडों से भिड़े पड़े थे। दुल्हन पक्ष वाले दूल्हे के साथ आए बारातियों को बुरी तरह से धुन रहे थे। हाथ में कुर्सी आ रही थी तो कुर्सी से, झाड़ू आ रहा था तो झाड़ू से, जो मिल रहा था उससे धुनाई हो रही थी। न उम्र का लिहाज हो रहा था न अन्य किसी मर्यादा का। कोहराम को चीख-पुकार से पूरा इलाका दहल गया था। आधे लोग गाड़ियों से भाग रहे थे तो कुछ आसपास से उस तरह की तरफ आ रहे थे। महिलाएं हो रही थीं जोर-जोर से, मानो शादी न होकर किसी की मौत हो गई हो।

शुरू में मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैं तो मीनू के साथ उसके कमरे में अन्य लड़कियों के साथ थी और उसकी गुत्त बना रही थी। पता नहीं बाहर से कैसे ये शोर आने लगा था। इतने में एक महिला रोती-रोती अंदर आई और बोली- लड़के वाले अगड़ी जाति के नहीं हैं। यह सुनकर कमरे में बैठा हर शख्स हैरान रह गया। मीनू के चेहरे की रंगत अचानक उड़ गई। मैं समझ ही नहीं पा रही थी क्या हो रहा है। इससे पहले कि कोई और सवाल करता, मैंने पूछा क्या मतलब? तो उस महिला ने बताया कि लड़के वालों ने झूठ बताया कि वे जनरल हैं, वे दरअसल $$$$$$ हैं। मैंने मीनू की तरफ देखा और उससे पूछा कि क्या बात है, तुझे पता है कुछ?

मीनू इससे पहले कि कोई जवाब देती, बेहोश हो गई। इधर हम परेशान कि मीनू को कैसे होश में लाया जाए। उसके चेहरे पर पानी फेंका तो वह होश में आई और तुरंत रोने लगी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ। कॉलेज से ही मैं और मीनू पक्की सहेलियां बन गई थीं। इतनी प्यारी सी लड़की, शर्मीली बहुत। पानी पीते वक्त मिली थी वह। बाद में धीरे-धीरे घुली-मिली तो पता चला कि शुरू में शर्माती है, बाद में घुल-मिल जाती है। इतनी हंसमुख और चंचल निकली कि पूछो मत। खैर, इस बीच उसका कॉलेज के ही एक सीनियर लड़के पंकज से अफेयर चलने लगा था। वह मुझे पंकज ही हर बात बताती। ग्रैजुएशन के बाद पंकज फौज में भर्ती हो गया और मीनू ने बीएड करने लगी। मैं एमए करने के लिए शिमला चली आई।

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इस दौरान मीनू से फोन पर बात होती रही। वह बताती रही कि कैसे पंकज से उसकी बात होती रहती है और अब वह शादी के लिए कहने लगा है। मैंने उसे बताया कि अपने घर पर बात करे और किसी को बताए कि ऐसी-ऐसी बात है। कम से कम मां को ही बता दे। इस दौरान मीनू ने मुझे बताया कि उसकी मौसी का लड़का भी फौज में है और पंकज ने उससे दोस्ती कर ली है। दोनों का एक-दूसरे के यहां आना-जाना भी हो गया। मीनू मुझे बताती कि कैसे पंकज क्या-क्या गिफ्ट लेकर आता है। कभी महंगा सा फोन और उस फोन के टूट जाने पर और महंगा फोन, कभी ये कपड़े तो कभी वो कपड़े। मुझे बहुत खुशी होती। एक दिन मुझे मीनू ने फोन करके बताया कि उसकी शादी तय हो गई है। और अच्छी बात यह थी कि शादी भी पंकज के साथ ही तय हुई थी। मीनू ने अपनी मां को यह बात बताई थी और मीनू ने इस बारे में अपनी बहन (मीनू की मौसी, जिसका बेटा पंकज का दोस्त था) से बात की। फिर जब पता चला कि लड़के का व्यवहार अच्छा है तो मीनू के पापा को भी उन्होंने यह बात बताई।

मीनू के पापा ने एक-दो दिन तो जवाब नहीं दिया, मगर बाद में कहा कि ठीक है। बात करते हैं लड़के वालों से। फिर प्रक्रिया शुरू हुई। कुंडली मिलाई गई, लड़की वाले और लड़के वाले मिले। बात पक्की हुई। रिंग सेरिमनी हुई और शादी भी तय हो गई। तय डेट पर बारात आई होटेल में, सभी रस्में हंसते हुए निभाई गईं और शादी हो गई। मगर विदाई से ठीक पहले जो कोलाहल मचा था, वह हैरान कर देने वाला था। मेरे मन में कभी यह ख्याल नहीं आया कि इस शादी में जाति को लेकर भी कोई बात होगी। क्योंकि अमूमन जब आप शादी इस तरह से करते हैं तो मैंने देखा है कि लोग पूछताछ करते हैं, कुंडलियां मिलाते हैं, लड़के या लड़की के घरबार का पता करते हैं, फिर शादी होती है। और वैसे भी आजकल जाति को लेकर कौन इतना चिंतित होता है। खैर, मैं इसी उधेड़-बुन में लगी थी कि जानकारी मिली कि लड़की के रिश्तेदार विदाई करने के पक्ष में नहीं है।

हस्तक्षेप हुआ और काफी देर माहौल बना। बारातियों को बंधक भी बनाकर रखा गया और बाद में बारात को बिना दुल्हान के लौटा दिया गया। मुझे लग रहा था कि अगर जाति का चक्कर रहा भी होगा तो मीनू और उसके घरवालों को पता होगा और उन्होंने खुद अपने रिश्तेदारों से बात छिपाई होगी। उन्होंने सोचा होगा कि बेटी की खुशी के लिए एक बार शादी हो जाए फिर कौन पूछता है। पंकज का घर भी तो मीनू के घर से 30-40 किलोमीटर दूर है। मैं बड़ी दुखी थी। मैंने मीनू से पूछा कि क्या बात है। क्या तुझे पता था कि तुम दोनों की जातियां अलग हैं? मीनू ने मां की कसम खाते हुए कहा कि मुझे नहीं पता था कि उसकी असली जाति क्या है। मुझे तो यही लगता था कि वह भी जनरल होगा। वह खुद से बात-बात में बोलता था कि हम राजपूत ऐसे, हम राजपूत वैसे होते हैं। और अगर मुझे पता होता कि वह जनरल नहीं है, घरवाले तैयार नहीं होते तो मैं उससे भागकर शादी कर लेती। मेरे लिए उसकी जाति मायने नहीं रखती। मगर उसने झूठ क्यों बोला। छिपाने की क्या जरूरत थी। झूठ का सहारा क्यों लिया? क्या उसे मेरे प्यार पर भरोसा नहीं था? मेरे मम्मी-पापा की कितनी बदनामी हो गई। मेरी जिंदगी ही तबाह हो गई। मैं कुछ कर बैठूंगी।

मैंने उसे बोला चुप रह, फिर पंकज का नंबर मांगा। पंकज को मैंने फोन किया तो उसने बोला कि अभी बात नहीं कर सकता। मैंने कहा कि मुझे जरूरी बात करनी है, तुम्हें बात करनी होगी, ये तुम दोनों के फ्यूचर का सवाल है। पंकज ने कहा आधे घंटे में मैं खुद फोन करता हूं।  एक डेढ़ घंटे बाद पंकज का फोन आया। मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ। उसने मुझे कहा कि पता नहीं क्या गलतफहमी हुई है। मैं जनरल ही हूं। न मैंने कभी इस बात को लेकर झूठ बोला न कभी किसी से बात छिपाई। तुम्हें यकीन नहीं हो तो मेरे सारे सर्टिफिकेट देख लो। ऐसा होता तो मैं रिजर्वेशन का ही फायदा उठाकर कहीं और नौकरी कर रहा होता या आगे पढ़ रहा होता, तुम जानती हो कि मैं पढ़ने में अच्छा रहा हूं। मुझे ऐसा करने की जरूरत भी क्या है? मगर खैर, जब मीनू को ही मुझपे भरोसा नहीं। मेरे रिश्तेदारों को पीटा गया तो अब इस रिश्ते का कोई मतलब नहीं।

मैंने उससे कहा ठंडे दिमाग से काम लो। जो भी गलतफहमी है, वो दूर हो सकती है। रिश्तेदार बेवकूफी कर रहे हैं तो तुम दोनों को अपना दिमाग ठीक रखो। कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। इस बीच मैंने अपने एक कॉमन फ्रेंड से बात की, जो मीनू और पंकज दोनों को जानता था। उससे मैंने कहानी पूछी। उसने मुझे जो बताया, उसे सोचकर मैं हैरान रह गई कि प्रदेश में जातिवाद की क्या स्थिति है।

दरअसल पंकज के दादा वगैरह मूलत: एक पिछड़ी जाति से संबंध रखते थे। 80 या 90 के दशक में हुई जनगणना के दौरान उन्होंने अपने आप को जनरल दिखाया। उनके जैसे कई परिवारों ने अपनी जाति जनरल दिखाई। बाद में ऐसा हुआ कि वे जनरल के दौर पर पंजीकृत हो गए, जबकि उनकी ही जाति के अन्य लोग पुरानी जाति के तौर पर ही पंजीकृत रहे। मगर आपस में सबका उठना-बैठना, बर्तन आदि बरकरार रहा। बाद में आरक्षण का फायदा उठाने से भी वे लोग वंचित रह गए, जिन्होंने खुद को जरनल कैटिगरी में रखवाया था। जातिवाद तो समाज में बरकरार है ही। ऐसे में भले ही वे कागजों में जनरल जाति में हों, पहले से जनरल जाति वाले लोग इन्हें स्वीकार नहीं करते। वे उन्हें उसी जाति के मानते हैं, जिससे वे मूलत: संबंध रखते थे। मगर आज जब खुद को जनरल के तौर पर रजिस्टर करवाने वाले परिवार अपने ही सर्कल में मूल जाति में पंजीकृत परिवारों में शादी करते हैं तो उन्हें अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करने के लिए दी जाने वाली रकम मिलती है। खैर, यह अलग विषय है।

यहां पर ऐसा हुआ कि पंकज ऑन पेपर जनरल है। इसलिए अगर उसने मीनू से कहा कि वह जनरल है तो उसने सच ही कहा। कानून वह जनरल ही है। मगर चूंकि तथाकथित अगड़ी जातियों के लोग उनके परिवार को जातिवाद की मानसिकता के चलते $$$$$ मानते हैं, इसीलिए पंगा हुआ। दरअसल बारात के साथ गए टैक्सी वालों में कुछ अगड़ी जाति से भी थे। जब होटेल में सब खाना खा रहे थे तो उन्होंने अलग बैठकर खाना खाने की मांग कर दी। होटेल मालिक ने कहा कि बारात के साथ बैठकर खा लीजिए। इस पर किसी जातिवादी टैक्सी चालक ने कहा कि हम फ्लां जाति से हैं, हम इनके साथ बैठकर नहीं खाते। होटेल वाला और बड़ा जातिवादी। वह तुरंत लड़की के पिता के पास गया और बोला कि आपने कहां करवा दी लड़की की शादी, वे तो जाति से $$$$$ हैं।

इसके बाद ही सब बवाल शुरू हुआ था। यह घटना बड़ी दुखद है। सुनने में आया है कि गांव वालों ने मीनू के परिजनों का बहिष्कार कर दिया है। कानूनन तो वे इस तरह का ऐलान नहीं कर सकते, मगर उन्होंने मीनू के परिवार के बातचीत करना या उनके यहां आना-जाना बंद कर दिया है। घटना को 2 साल हो चुके हैं। इस बीच मैंने मीनू से बात करने की कोशिश की थी, मगर उसका फोन नंबर स्विच ऑफ आया। शायद बदल लिया है। पंकज से भी बात करने का कोई मतलब नहीं लगा। पता चला है कि अपने मम्मी-पापा के साथ ही गांव में रहती है। वह मीनू सब छोड़कर अपने पति के यहां जाने को तैयार है, मगर घरवाले इसके लिए तैयार नहीं।

मुझे इस घटनाक्रम ने इतना दुख पहुंचाया है कि इसका कोई हिसाब नहीं। शुरू में मुझे लगा कि पंकज गलत है, जिसने बात छिपाई। कभी मुझे लगा कि मीनू गलत है। पर अब मैं मानती हूं कि गलत सिर्फ हमारा समाज है। जो आज भी जातिवाद के चक्कर में फंसा हुआ है। लड़का सेटल है, लड़की पढ़ी-लिखी है, दोनों प्यार करते हैं, क्या इतना काफी नहीं है? उनकी जाति कहां आड़े आ जाती है? मेरी इतनी तमन्ना है कि मीनू और पंकज सब बातों को भुलाकर एक हो जाएं और उनके रिश्तेदार भी उन्हें स्वीकारें। क्योंकि परिवार दो लोगों का नहीं, दो परिवारों और दो समूहों का मेल होता है। उम्मीद है कि ऐसा ही उन दो बच्चों के साथ हो, जिनकी खबर कुछ दिन पहले पढ़ने को मिली थी। कभी-कभी सोचती हूं कि कब तक जातिवाद यूं ही समाज में जहर घोलता रहेगा?

(लेखिका निशा धीमान पुणे में सॉफ्टवेयर इंजिनियर हैं। इस कहानी के पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं।)

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