स्मार्टफोन से ‘स्मार्ट फार्मिंग’ करके आप भी ऐसे कमा सकते हैं लाखों

प्रशान्त प्रताप सेहटा।। फ़ार्मिग यानी खेतीबाड़ी अब वैसी नहीं रही जैसी कुछ साल पहले हुआ करती थी। आज के दौर में युवा किसान बागवान पारंपरिक तौर तरीकों से हटकर आधुनिक व स्मार्ट फ़ार्मिंग में रुचि ले रहे हैं। बदलते दौर के साथ बदलती तकनीक ने इसके विस्तृत रूप को समझने में काफ़ी मदद की है। इस बदलाव में सबसे अहम योगदान स्मार्टफ़ोन्स का रहा है।

स्मार्टफ़ोन्स पर इंटरनेट चलाकर सोशल मीडिया और गूगल से सीखने वाले किसान बागवानों की कमी नहीं है। इतना ही नहीं इसी स्मार्टफोन की वजह से कई पढ़े लिखे युवा खेतीबाड़ी को अपना पेशा बनाकर हर साल लाखों रुपये कमा रहे हैं।

स्वादिष्ट सेब उत्पादन के लिए मशहूर हिमाचल और जम्मू-कश्मीर को “ऐपल बाउल्स आफॅ इंडिया“ के नाम से भी जाना जाता है। दोनो ही सेब उत्पादक राज्यों में सेब व अन्य फ़लों की बागवानी बदलाव के दौर से गुज़र रही है। बागवान पुरानी किस्मों के बदले अब नई व उन्नत किस्मों के फल उगाने पर बल दे रहे हैं जिससे उनकी आमदनी में इज़ाफा हो सके।

बागीचों में फलों से लदे पुराने बडे बडे पेडों की जगह अब बौने आकार के पौधों ने ले ली है, जिनका प्रबंधन तो आसान है ही, साथ ही यह बागीचे पौधा लगाने के एक दो साल में ही फलों से लद जाते हैं। यह सब विदेशों में की जाने वाली बागवानी की तकनीक है। यह तकनीक यहां इंटरनेट के ज़रिए ही लोकप्रिय हुई हैं।

इंटरनेट के ज़रिए ही बागवान इन तकनीकों के बारे में जानकारी हासिल कर रहे हैं और इसी की वजह से यह तकनीक हिमालय के पहाड़ों पर पर सफल होती दिखाई दे रही है। हिमाचल और जम्मू कश्मीर में ऐसे कई उदाहरण है जिसमें बागवानों ने इंटरनेट से सीखकर सफलता से हाई डेंसिंटी आर्चर्ड्स स्थापित किए और उनसे दो से तीन गुना अधिक आजीविका भी अर्जित कर रहे हैं।

स्मार्टफोन से स्मार्ट फ़ार्मर बनने की राह यहीं खत्म नहीं होती। किसान बागवान स्मार्टफोन्स का इस्तेमाल जानकारी के प्रसार और एक दूसरे से सीखने के लिए भी कर रहे हैं। फेसबुक और व्हाट्सएप्प जैसे सोशल प्लेटफॉर्म्स पर भी प्रगतिशील किसान बागवानों के अनेकों ऐसे ग्रुप हैं जिनके प्रयोग से वह बागीचों में आने वाली दिक्कतों को विशेषज्ञों और दुसरे साथियों से सांझा कर रहे हैं।

अनुभवी बागवानों की मदद मिलने से कई दूसरे नौसिखिये युवा किसान बागवान भी सफलतापूर्वक फलोत्पादन कर रहे हैं और इससे अच्छी आमदनी कमा रहे है। यह किसान बागवान केवल सोशल मीडिया के ज़रिए एक दूसरे से ही नहीं जुडें है बल्कि विदेशों में दूसरे किसान बागवानों, विशेषज्ञों और नर्सरीयों के संपर्क में भी है। इसके चलते वह विदेशों में अपनाई जाने वाली तमाम तकनीकों और फलों की आधुनिक किस्मों को यहां मंगवाकर उनका उत्पादन कर रहे हैं। इतना ही नहीं, पहाडों के बागवान विदेशों से आ रहे नए फलों को अपनाने से भी गुरेज़ नहीं कर रहे।

The placing of apple trees in the orchard.

स्मार्टफोन्स और इंटरनेट की जोडी न केवल किसान बागवानों को आधुनिक तरीके से खेतीबाड़ी करना सीखा रही है बल्कि उन्हें संगठित करने में भी अहम रोल निभा रही है। सीखने और मिलकर आधुनिक तरीकों से बागीचों में काम करने की ललक ने सोशल मीडिया के माध्यम से ही प्रगतिशील बागवानों के कई संगठनों को जन्म दिया है, जिनमें से कई सरकारी कागजों में दर्ज़ हो चुके हैं।

हिमाचल में युवा बागवानों की “यंग ऐंड युनाईटेड ग्रोवर्स एसोसिएशन (युगा)“ ऐसे ही संगठनों में से एक है। इस संगठन के सभी रजिस्टर्ड सदस्य सोशल मीडिया के माध्यम से ही आगे आए थे। आज इस संगठन में हिमाचल के बाहर उत्तराखंड के ऐसे बागवान भी जुड रहे हैं जो हिमाचल की तर्ज पर सेब व अन्य फलों की बागवानी अपना रहे है।

Agricultural business Need Online Conference Calls to bring specialists and farmers together

यह स्मार्टफोन्स की वजह से ही संभव हो पाया है कि आज किसान बागवान खेती बाडी और देश भर की मंडियों से जुडी तमाम तरह की जानकारियां अपने जेब में लिए घुम रहा है। यह डिजीटल क्रांति हरित, क्रांति के बाद देश के किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है।

(लेखक शिमला के जुब्बल के रहने वाले हैं। बाग़वानी और लेखन में उनकी रुचि है। उनसे prashantsehta89 @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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