रियासत मंडी की क्रांतिकारी रानी- ललिता उर्फ खैरागढ़ी

इन हिमाचल डेस्क।। यह बात किसी से छिपी नहीं है हिमाचल के राजे-रजवाड़े भी ब्रिटिश इंडियन के तहत आने वाले तमाम राजे-रजवाड़ों की तरह अंग्रेजों के आगे नतमस्तक हो चुके थे। मगर मंडी रियासत की रानी ललिता कुमारी ने बगावत का बिगुल फूंका हुआ था। आलम यह था कि गोरों ने रानी ललिता या रानी खैरागढ़ी को रियासत से बेदख कर उनके मंडी आने पर रोक लगा दी थी।

रानी भवानी सेन की पत्नी ललिता दरअसल खैरागढ़ रियासत की राजकुमारी थीं। उन्हें रानी खैरागढ़ी भी इसीलिए कहा जाता था। साल 1912 में राजा भवानी सेन का निधन हो गया। अंग्रेजों की परंपरा रही थी कि वारिस न होने पर वे सीधे रियासतों को अपने कब्जे में ले लेते थे। राजा भवानीसेन और ललिता के कोई अपनी संतान नहीं थी मगर बालक जोगिंदर सेन को गोद लिया गया था। वही जोगिंदर सेन जिनके नाम पर सुक्राहट्टी का नाम बदलकर जोगिंदर नगर रखा गया है।

जोगिंदर सेन मंडी रियासत के वारिस तो थे मगर संरक्षक की भूमिका निभा रही उनकी मां ललिता ने पुत्रमोह के बजाय देशप्रेम को प्राथमिकता दी। रानी खैरागढ़ी ने क्रांति का रास्ता अपना लिया। उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले लाला लाजपतराय के संगठन के लिए काम किया। उन्होंने आजादी के लिए संघर्ष करने वालों को आर्थिक योगदान तो दिया ही, खुद भी सक्रिय भूमिका निभाई।

रानी ललिता के बेटे जोगिंदर सेन बाद में रियासत के राजा बने। उन्होंने न सिर्फ कई विकास कार्य करवाए बल्कि देश के आजाद होने पर हिमाचल के गठन में भी अहम भूमिका निभाई।

बालक जोगिंदर सेन छोटा था, मगर रानी ललिता लगातार क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ी रहीं। बम बनाने का प्रशिक्षण भी उन्होंने लिया था। मंडी में गदर पार्टी के कई सदस्य सक्रिय थे और रानी खैरागढ़ी उनके संरक्षक की भूमिका में थीं। साल 1914 में योजना बनाई गई कि नागचला स्थित सरकारी खजाने को लूट लिया जाए। पंजाब से क्रांतिकारियों की तरफ से बनाए गए बम भी मंगवाए गए थे। क्रांतिकारी मंडी में अंग्रेज सुपरिटेंडेंट, वजीर और अन्य अंग्रेज अफसरों को उड़ाना चाहते थे। नागचला में खजाने को तो लूट लिया गया, मगर दलीप सिंह और पंजाब के क्रांतिकारी निधान सिंह पकड़े गए। पुलिस ने इन्हें भयंकर यातनाएं दीं और उन्होंने सभी सदस्यों के बारे में जानकारी दे दी।

बद्रीनाथ, शारदा राम, ज्वाला सिंह, मियां जवाहर सिंह और लौंगू नाम के क्रांतिकारियों को पुलिस ने पकड़कर जेल में डाल दिया। बात रानी खैरागढ़ी की आई तो उन्हें रियासत से निकाल दिया गया। कोई और होता तो हार मान लेता या झुक जाता, मगर रानी ललिता ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने लखनऊ में प्रवास के दौरान कांग्रेस में सक्रियता से हिस्सा लेना शुरू किया। उन्होंने असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया और महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी चुनी गईं।

मां तो मां होती है। साल 1938 में मंडी रियासत का सिल्वर जुबली समारोह था। बेटे जोगिंद्रसेन, जो मंडी के राजा थे, ने मां को लखनऊ से मंडी बुलाया। मां चल दी, लेकिन मन में एक ही आग थी कि अंग्रेज दफा होने चाहिए इस देश से। आज के जोगिंद्रनगर (सुक्राहट्टी) में हराबाग नाम की जगह है, जहां पर क्रांतिकारियों के साथ वह बैठक कर रही थीं। गांववालों ने क्रांतिकारियों के लिए खाना भेजा मगर वह शायद खराब था। रानी को हैजा हो गया और उनका निधन हो गया। अफसोस कि देश को आजाद देखे बिना ही वह इस दुनिया से चली गई।

पता नहीं कितने लोग उनकी कहानी को जानते होंगे, मगर अगर आज आपने सुनी तो इसे आगे और लोगों को बताना न भूलें। ऐसी रानी जो न सिर्फ देशप्रेमी थी, बल्कि सही मायनों में मजबूत और सशक्त महिला थी। वह न सिर्फ महिलाओं के लिए बल्कि हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

हाल ही में मंडी में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया है-

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