क्यों खुदकुशी के लिए बदनाम हुआ कंदरौर पुल, कैसे रुकेगा सिलसिला?

  • विवेक अविनाशी
मंडी के एक निजी कॉलेज में पढ़ रही कुल्लू जिले के आनी से ताल्लुक रखने वाली छात्रा दीक्षा ने पिछले सप्ताह बिलासपुर के कंदरौर पुल से सतलुज में कूदकर आत्महत्या कर ली। एशिया के सबसे ऊंचे पुल से हुई खुदकुशी की इस घटना ने एक बार फिर कंदरौर पुल को सुर्खियों में ला खड़ा किया है।
इस आत्महत्या का विडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गया था। वास्तव में इस पुल से कूदकर आत्महत्या करने का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। एक अपुष्ट समाचार के अनुसार बिलासपुर के कंदरौर पुल पर और अली खड्ड के पुल पर एक मास में लगभग 6 से ज्यादा आत्महत्याएं होती हैं। लोग इसी पुल से क्यों आत्महत्या करना चाहते हैं, यह विचारणीय प्रश्न है। इससे पूर्व कि इस प्रश्न पर विचार करें, इस पुल के इतिहास और बनावट के विषय में विचार करना भी आवश्यक है।
(सोशल मीडिया पर वायरल खुदकुशी का विडियो, अपनी जिम्मेदारी पर देखें)
कंदरौर के इस ऐतिहासिक पुल का निर्माण कार्य साल 1959 में प्रारंभ हुआ था और 1965 में यह बनकर तैयार हो गया था। गैमन इंडिया कंपनी द्वारा तैयार किया  गया यह पुल एशिया का सबसे ऊंचा पुल है। इसकी लंबाई 280 मीटर और चौड़ाई 7 मीटर है। इसकी ऊंचाई 80 मीटर है। छठे दशक के पूर्वार्ध में बना यह पुल जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर है और प्रदेश के ऊना, हमीरपुर, कांगड़ा, चंबा और मंडी जिले के कुछ इलाकों को राजधानी शिमला से जोड़ता है।
इस पुल के निर्माण में सबसे बड़ी त्रुटि यह रह गई है कि इसके दोनों तरफ ऊंची रेलिंग नहीं है और इस कारण आत्महत्या करने वाले निराश लोगों के लिए यह पहली प्राथमिकता वाला स्थल बन गया है। इसी कारण इसे जिले का ‘सूइसाइड ब्रिज’ भी कहा जाता है। इस पुल के किनारों पर लगी रेलिंग इतनी ऊंची नहीं है कि पुल के किनारे तक पहुंचने में कठिनाई हो। प्रदेश सरकार भी इस पुल की रेलिंग को ऊंचा करने की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दे रही है।
कंदरौर पुल एशिया का सबसे ऊंचा पुल है
आत्महत्या करने वाले हताश लोगों की मानसिकता को लेकर मनोविज्ञानी निरंतर शोध करते रहते हैं। सेन फ्रैंसिस्को का गोल्डन गेट ब्रिज दुनिया का दूसरा ऐसा पुल है, जहां पर आत्महत्या करने के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं। जून 2012 तक इस पुल से छलांग लगाकर मरने वालों की संख्या 1500 को पार कर गई थी। इस पुल की दरिया से दूरी 250 फीट है। डॉक्टरों का मानना है कि इतनी ऊंचाई से छलांग लगाने वाला 80 मील प्रति घंटे की रफ्तार से पानी से टकराता है। यह टक्कर इतनी भयंकर होती है कि इंसान के विभिन्न अंग कट-फट जाते हैं, जिससे जल्दी मौत हो जाती है।
कंदरौर पुल पर आत्महत्या करने वालों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अधिक रही है। नवंबर 2006 में इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला के सीनियर डॉक्टर ने सोलन से यहां आकर खुदकुशी की थी। वैसे हिमाचल प्रदेश के आत्महत्या संबंधी आंकड़ों पर जर डालें तो छलांग मारकर खुदकुशी करने के मामले बहुत कम हैं। ज्यादातर कीटनाशक दवाइयां ही आत्महत्या के लिए प्रदेश में इस्तेमाल की जाती हैं।
मनोविज्ञानी सुझाव देते हैं कि आत्महत्या का यह कायर कदम उठाने वालों को वाहन से उतरकर कुछ देर पैदल चलना चाहिए। अगर कंदरौर पुल के दोनों छोरों पर कुछ प्रेरक साइन बोर्ड लगा दिए जाएं तो आत्महत्या करने के इरादे से आने वाला अपना क्षणिक निर्णय बदल सकता है। मेरे विचार से कुछ इस तरह की पंक्तियां भी इस स्थल के लिए उपयुक्त होंगी, “इस पुल से हिमाचल की प्रसिद्ध लोकगायिका गंभरी देवी का गांव सिर्फ 30 किलोमीटर दूर है। उनका प्रसिद्ध लोकगीत है- खाणा-पीणा नंद लेणी गो गंभरिये… खाणा-पीणा नंद लैणी हो…। आइए प्रकृति का आनंद लें, क्योंकि जिंदगी जीने के लिए है।”
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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