एजेंसियों के सर्वे के बाद भी ऊहापोह की स्थिति में क्यों है बीजेपी?

सुरेश चम्ब्याल।। चुनाव आयोग ने कमर कस ली है इसी के साथ राजनीतिक गर्माहट भी प्रदेश में बढ़ गई है। बीजेपी जहाँ दल-बल के साथ चुनावी राण में कूद गई है वहीँ कांग्रेस अपने अपने नेताओं के दम पर उनसे सबंधित एक एक सीट को पक्का करने में जुटी हुई है। भाजपा जहाँ एक इकाई के रूप में नारों और रथयात्रा के शोर के साथ माहौल बंनाने में जुटी है वहीँ कांग्रेस नेता और मंत्री विधायक अपने अपने क्षेत्रों का रुख कर चुके है, सचिवालय खाली हैं। बीजेपी के रोज के हमलों का जबाब कांग्रेस की तरफ से हाल फिलहाल मुख्यमंत्रीं और प्रवक्ता ही देते नजर आ रहे हैं। बीजेपी ने जो तीन प्राइवेट फर्मों से सर्वे करवाया था उसकी रिपोर्ट आलकमान के सामने पहुँच गई है। और सर्वें के निष्कर्ष की बातें कहीं न कहीं बीजेपी के दिग्गज नेताओं की जुबानी इशारों में बाहर भी निकलने लगी हैं। खबर यह है कि सर्वे में दो मुख्य बिंदुओं पर प्राइवेट फार्मों को फोकस करने के लिए कहा गया था। पहला यह कि संगठन, पदाधिकारी और कार्यकर्ता क्या चाहता है और दूसरा की प्रदेश की आम जनता क्या चाहती है।

इन दोनों मोर्चों पर अलग अलग रुझान पार्टी को मिले हैं, ऐसा सर्वे रिपोर्ट में निकल आने की बात कही गयी है। हैदराबाद की एक फर्म जो इससे पहले भी कई सर्वे कर चुकी है और उत्तर प्रदेश में पार्टी ने उसी पर चलने का फैसला लिया था के अनुसार। प्रदेश में रुझान दो भागों में विभग्त है। अधिकांश पार्टी पदाधिकारी और काडर पूर्व मुख्यमंत्री प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल के घोषित नेतृत्व को जीत का मंत्र बता रहा है, वहीँ जेपी नड्डा के नाम की माला वो पदाधिकारी जप रहे है जिनका संगठन में वजूद कभी नगण्य कर दिया गया था या हाशिये पर धकेल दिए गए थे। परन्तु ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है। वहीँ गाँवों शहरों और कालेज काडर से युवा वर्ग के संवाद के रुझान या सर्वे में निकलकर बताया जा रहा है कि प्रदेश के लोग पार्टियों से इतर नया मुख्यमंत्री देखना चाहते है।

जिस तरह से उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ चले है और मीडिया समाज में उनकी चर्चाएं है हर निर्णय पर बहस छिड़ रही है। ऐसा ही गैर परम्परागत नेतृत्व हिमाचल में भी अधिकांश लोग चाहते है। जो मौजूदा स्थापित नेताओं में लोगो को नहीं लगता की मिल पायेगा। सर्वे के अनुसार कांगड़ा में भी पार्टी अब आगे मजबूत हुयी है गुटबंदी कहीं न कहीं अब ज्यादा असर डालती हुई नहीं दिख रही है। वही ऊपरी हिमाचल जिसमे शिमला सबसे महतवपूर्ण जिला है वहां एक सद्भावना लहर वीरभद्र सिंह के लिए भी चल रही है।

कांग्रेस अपने परम्परागत वोट बैंक के आधार पर इस चुनाव को जीतना चाहती है और बी जी पि उसी परम्परागत वोट बैंक की एक पीढ़ी को अपने पक्ष में करते हुए आगे बढ़ना चाहती है। और इसी लिए ऊहापोह में है की नेतृत्व अगर पुराना चेहरा दिखाया तो नया वोटर नई उम्मीद में उस जज्बे के तहत साथ नहीं आएगा जिसके तहत वो आम लोगों के बीच माहौल बनांना चाहते है। और दूसरी दुविधा ये है कि अगर कोई नया चेहरा दिया तो समर्थक कादर के साथ स्थापित लीडरशिप गाहे बगाहें अड़ंगा डाल सकती है। इसलिए पार्टी अभी तक यह निर्णय नहीं कर पा रही है की किस स्थिति में उसे ऑप्टिमम रिजल्ट प्राप्त होगा, चुनाव में परम्परगत चहेरे को कमान देकर या नए चेहरे को कमान देकर। हालाँकि उम्र बीजेपी के लिए कोई ख़ास मुद्दा नहीं है कर्णाटक में येदुरप्पा को कमांड देकर पार्टी यह जता चुकी है।

राज्यों की जीत ही उसके लिए महत्वपूर्ण है। फिर भी ऊहापोह की यह स्थिति बी जे पी आलाकमान को सफल उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश , मॉडल पर चलने की तरफ भी सोचने को मजबूर कर रही है। जहाँ बिना चहेरा दिखाए मोदी के नाम पर बी जे पी ने कामयाबी के ऐतिहासिक झंडे गाड़ दिए थे। योगी आदित्यनाथ जो आज पार्टी का मोदी के बाद सबसे बड़ा फेस हो गए है इसी लहर से निकले हुए नेता हैं। वहीँ त्रिवेंद्र सिंह रावत के चयन ने बीजेपी के हर नेता को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है की मुख्यमंत्री वो भी या कोई भी हो सकता है। कुलमिलाकर प्रदेश में आने वाले समय में यही कयास लगते रहेंगे की अगला सी एम् फेस बी जी पि किसे देती है। और नहीं देती है तब भी यह रोमांच चुनावी फैसले आने के बाद तक जारी रहने की सम्भावना है। दूसरी बात यह लग रही है पार्टी इस बार टिकट के लिए आवेदन नहीं मांगेगे जैसा अमूनन करती आयी है इस बार सतसत कमेटी खुद ही नाम तय करके आलाकमान को फैसले के लिए भेजेगी। यह बात अध्यक्ष सत्ती भी पुख्ता कर चुके है।

पार्टी बिना फेस के भी लड़ सकती है यह ब्यान केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा ने हाल में ही सिरमौर में दिया है। दिग्गज नेतायों के मुंह से निकले यह बोल इन तथ्यों को पुख्ता करते हैं की सर्वे की रिपोर्ट आलाकमान के पास पहुँच चुकी है और उसी से ऐसा कुछ निकल कर आया है। पर फाइनल क्या होगा यह समय के गर्भ में छुपा है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन हिमाचल के लिए भी कुछ वक्त से लिख रहे हैं।)

डिस्क्लेमर- ये लेखक के अपने विचार हैं और इनके लिए वह स्वंय जिम्मेदार हैं। इन हिमाचल इनसे सहमत या असहमत होने का दावा नहीं करता।
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