हिमाचल में कब बंद होगा पीरियड्स आने पर महिलाओं से भेदभाव

राजेश वर्मा।। पिछले सप्ताह नेपाल में बिना खिड़की वाली झोंपड़ी में आग से दम घुटने के कारण 35 वर्षीय महिला और उसके दो बेटों की मौत की घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। भले ही सभी इस घटना को आग से दम घुटना वजह मानते हों लेकिन असल कारण तो महिला को माहवारी के दौरान अछूत मानकर उसे अलग स्थान पर एक झोंपड़ी में रहने के लिए मजबूर करना था।

आधुनिक युग में इंसानियत के नाम पर हम सभी के मुंह पर यह किसी तमाचे से कम नहीं की महज पीरियड्स के नाम पर महिलाओं को अछूत मान लिया जाए। यह घटना मात्र नेपाल की ही नहीं हमारे देश में अभी भी कई राज्यों में इस प्रकार की सामाजिक परंपराओं के नाम पर महिलाओं से भेदभाव किया जाता है।

गैक़ानूनी होने के बावजूद नेपाल के कई हिस्सों में पीरियड आने पर अलग कर दी जाती हैं महिलाएं

ऐसी ही कुप्रथा देव भूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में भी प्रचलित है। पिछले वर्ष एक ऐसी ही मीडिया रिपोर्ट कुल्लू जिला से भी देखने को मिली कि किस तरह ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को कैसा भी मौसम हो, मासिक धर्म के दौरान घरों से बाहर निकाल दिया जाता है। महिलाओं को पीरियड्स के दौरान कहीं 5 तो कहीं 7 दिन के लिए अछूत बनाकर उनका जीवन बहुत ही कठिन बना दिया जाता है। देखिए वो वीडियो:

वहां देव प्रथा के अनुसार मासिक धर्म के दौरान महिलाएं अशुद्ध हो जाती है और घर में प्रवेश करने व घर के किसी भी सामान को छूने पर वह सामान भी अशुद्ध हो जाता है। इस दौरान उन महिलाओं से अछूत की तरह व्यवहार किया जाता है और घर के सदस्य भी उन्हें छूने से कतराते है। उन्हें भी घर के बाहर गौशाला या अन्य अंधेरी जगहों पर रहने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें अलग बर्तनों में खाना पीना दिया जाता है।

महिलाओं के साथ पीरियड्स के दौरान यह भेदभाव आज के वैज्ञानिक युग में समझ से परे है। महिलाओं का मासिक धर्म या माहवारी एक सहज वैज्ञानिक और शारीरिक क्रिया है। किशोरावस्था से शुरू होने वाली यह नियमित मासिक प्रक्रिया सामान्य तौर पर अधेड़ावस्था तक चलती रहती है। लेकिन भारत के बहुत से हिस्सों में इस मासिक प्रकिया के दौरान महिलाओं पर लगाई जाने वाली सामाजिक पाबंदियां व अछूतों जैसा व्यवहार महिलाओं के लिए हर माह तीन-चार दिन किसी सजा से कम नहीं।

इतना परहेज़ तो तब नहीं करते लोग जब किसी को ऐसी संक्रामक बीमारी हुई हो जो छूने से फैलती हो। सोचिए, वे खाना नहीं पका सकती, दूसरे का खाना और पानी नहीं छू सकती। कई मामलों में तो उनको जमीन पर सोने के लिए मजबूर किया जाता है।

यह सच है कि पिछले कुछ समय में लोगों की सोच में काफी बदलाव आया है। अब लोग पीरियड्स के दौरान महिलाओं को अछूत नहीं समझते। इस दौरान महिलाओं को होने वाले मानसिक व शारीरिक दर्द से उबारने के लिए सहायता करते हैं। लेकिन अभी भी बहुत से लोग हैं जो पीरियड्स के दौरान महिलाओं को रिवाज़ों में बांधते हैं और इनमें केवल ग्रामीण व अशिक्षित ही नहीं बल्कि शहरी व पढ़े लिखे भी कम नहीं। वे भी महिलाओं को अहसास करवाते हैं कि पीरियड्स आना एक पाप से कम नहीं। जहां एक महिला इस मासिक चक्र के दौरान शारीरिक कष्टों को झेल रही होती है वहीं इस तरह की परंपराएं उन्हें और मानसिक पीड़ा भोगने पर मजबूर कर देती है।

देश के असम राज्य में होने वाली एक सामाजिक रीति भी बड़ी विचित्र है। एक तरफ तो किसी कन्या को जब पहली बार पीरियड होता है तो इस बात पर खुशी मनाई जाती है। उसे उपहार दिए जाते हैं तथा उसे विशेष खुशी का अनुभव करवाया जाता है लेकिन दूसरी तरफ इसी खुशी में शामिल होने से उन महिलाओं को कोसों दूर रखा जाता है जो मासिक धर्म भोग रही होती है। तीन रातों तक वह महिलाएं उस घर में प्रवेश नहीं कर सकतीं, जिस घर की कन्या को पहली बार पीरियड हुआ हो। आखिर यह कैसा रिवाज़?

मेडिकल साइंस में पीरियड्स का आना महज़ एक शारीरिक तब्दीली है। पीरियड्स होने का मतलब है कि वह कन्या या स्त्री एक ज़िंदगी को दुनिया में लाने के लायक है। पीरियड्स के दौरान छूने से कौन सा भोजन खराब होगा? इस दौरान पानी देने से कौन से पौधे सूख जाएंगे? वे दो दिन तक बाल नहीं धो सकती। चलो एक बार यह तर्क मान लें कि पहले के समय में इस दौरान किसी नदी या नाले में महिलाओं के पीरियड्स के दौरान स्नान करने से पानी दूषित हो सकता था। लेकिन अब तो घरों में साफ सफाई युक्त सुविधाएं उपलब्ध है फिर ऐसी क्या समस्या?

ऐसी नहीं की यह किसी एक धर्म में ही है भारत के ज्यादातर हिस्सों में हिंदू और मुसलमान समुदायों में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के साथ अछूतों की तरह का व्यवहार होता है। मुस्लिम तबके के लोग भी इस दौरान लड़की को नापाक यानी अपवित्र मानते हैं, उसे इबादत की अनुमति नहीं होती वह कुरान नहीं छू सकती। पहली बार माहवारी होने पर लड़की को घऱ से बाहर नहीं भेजा जाता आदि तरह तरह की पाबंदियां लगा दी जाती है।

इस भेदभाव के पीछे यदि अकेले पुरुषों को दोषी माना जाए तो यह नाइंसाफी होगी। इन कुरीतियों के पीछे महिलाएँ भी कम जिम्मेदार नहीं बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जो पीरियड्स के दौरान लोगों व परिवार से दूर रहना पसंद करती हैं। वे इस विषय पर बात करने से झिझकती हैं। जब महावारी या पीरियड्स आना शुरू होते हैं तो सबसे पहले और कोई नहीं माँ ही कहती है कि बिटिया इन दिनों न तो मन्दिर जाते हैं न ही पूजा करते हैं। किचन में नहीं जाना, किसी चीज़ को नहीं छूना, तुम्हें अलग बिस्तर पर ही सोना और अलग ही खाना खाना होगा आदि तमाम तरह की बातें एक माँ ही अपनी बेटी को सिखाती है और बेटी इसे प्राकृतिक प्रक्रिया न मानकर एक छूत की बीमारी या अभिशाप समझ लेती है । जिसे वह न चाहते हुए भी ताउम्र ढोने के लिए मजबूर हो जाती है या उसे मजबूर कर दिया जाता है।

भले ही बदलते समय के साथ शहरी इलाकों में यह प्रथा अब न के बराबर हो इसका कारण यह भी है कि शहरों में आप महिलाओं को बाहर रखने के लिए जगह कहां से लाओगे? एक व्यक्ति अपनी पत्नी को गांव में तो पीरियड्स के दौरान गौशाला में या अलग कमरे में सोने के लिए भेज सकता है लेकिन शहर में जहां वह किराए पर एक ही कमरे में रह रहे हैं तब वह उसे और कहां भेजेगा मतलब?

हम लोग अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से इन कुरीतियों को महिलाओं को मानने पर मजबूर करते हैं। हम भूल जाते हैं कि गौशाला में रहने से किसी महिला को कौन कौन से संक्रामक रोग लग सकते हैं। मासिक चक्र के दौरान यदि महिलाएं साफ सफाई न रखें तो उनकी सेहत के लिए यह कितना नुकसानदेह साबित हो सकता है। जब भी ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग द्वारा महिलाओं की इस अवधि के दौरान जांच हुई तो महिलाओं में पीरियड्स के दौरान सफाई न रखने के कारण कई बीमारियां पाई गई।

भले ही बहुत से लोग इसे चीज को धार्मिक रीति रिवाजों से जोड़ते आए हों पुराणों व कुरान का उल्लेख कर इस कुप्रथा को सही साबित करते हों लेकिन संस्कृति व रीति रिवाज भी वही सहेजने चाहिए जिनसे हम अपने परिवार में अपनी बेटी, बहन व पत्नी को शोषित होने पर मजबूर न करें। जब हम गौशाला में नहीं सो सकते तो हमारी घर परिवार की महिला सदस्यों को हम कैसे मजबूर कर सकते हैं कि वह ऐसी जगहों पर अकेली रहें?

एक बार पुरुष होकर सोचो तो सही कि जब कोई आप से कहे कि खाने की किसी चीज़ से हाथ मत लगाओ, घर के किसी सदस्य को मत छूना, खाना पीना भी अलग बर्तन में लेना आदि तब आपके अंदर से ऐसा गुबार आएगा कि आपको लगेगा दुनिया में सबसे ज्यादा भेदभाव इस चीज के सिवा कहीं नहीं है, वह भी महिलाओं की तरह मासिक धर्म के मानसिक व शारीरिक कष्ट को भोगे बिना।

(स्वतंत्र लेखक राजेश वर्मा बलद्वाड़ा, मंडी के रहने वाले हैं और उनसे 7018329898 पर संपर्क किया जा सकता है।)

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