जयराम ठाकुर को क्यों पसंद करते हैं नरेंद्र मोदी और अमित शाह?

भूप सिंह ठाकुर।। दिसंबर 2017 को शिमला के पीटरहॉफ में सर्दियों की हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बीच माहौल गर्म था। प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता स्टेट गेस्ट हाउस के मैदान में जुटे हुए थे। अक्सर हिमाचल को नदरअंदाज़ कर देने वाला राष्ट्रीय मीडिया भी अचानक हिमाचल में दिलचस्पी लेने लगा था। कई राष्ट्रीय समाचार चैनलों के पत्रकार भी पीटरहॉफ के बाहर जुटे हुए थे। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं का दिल्ली से शिमला आना-जाना लगा हुआ था। प्रदेश की जनता भी टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर चिपकी हुई थी। हर कोई इंतज़ार कर रहा था कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।

बीजेपी स्पष्ट बहुमत लायक सीटें तो ले आई थी मगर जिस नेता को चुनाव से पहले अभियान की कमान सौंपी थी, वह अपनी सीट हार चुका था। मगर प्रेम कुमार धूमल और उनके समर्थक सीएम के तौर पर दावेदारी छोड़ने के तैयार नहीं थे। धूमल जहां विनम्रता से यह कह रहे थे कि अंतिम फैसला पार्टी को करना है, वहीं उनके कुछ समर्थक दिल्ली से आए पर्यवेक्षकों के सामने शक्ति प्रदर्शन में जुटे हुए थे। हालात ऐसे थे कि वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने आजिज आकर यह तक कह दिया था कि मैं इन अनुशासनहीनों को पार्टी से बाहर निकाल देता।

उधर दिल्ली में मौजूद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के भी सीएम बनने अटकलें की खबरें मीडिया में चलने लगीं। कुछ चैनलों ने तो उनका नाम भावी सीएम के तौर पर अपनी स्क्रीन पर फ्लैश कर दिया। उधर धूमल के खेमे के कुछ विधायकों ने तो यह कह दिया कि हम धूमल के लिए अपनी सीट छोड़ने को तैयार हैं और धूमल चाहें तो उनकी सीट पर आकर चुनाव लड़ सकते हैं मगर सीएम उन्हें ही बनाया जाए।

लेकिन तभी आलाकमान ने स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री जो भी होगा, वह चुने हुए विधायकों में ही होगा। इसके साथ ही चुने हुए विधायकों के बीच होड़ लग गई। वरिष्ठ और अनुभवी विधायक संघ और पार्टी संगठन में बैठे अपने करीबियों से लिंक भिड़ाने में जुट गए। उस समय ‘इन हिमाचल’ ने सबसे पहले संभावितों के तौर पर जयराम ठाकुर का नाम सबसे आगे बताया। ऐसा करने के पीछे इन हिमाचल ने लिखा था कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जयराम ठाकुर के पक्ष में चुनाव प्रचार करते समय कहा था- आप इन्हें जिताइए, पार्टी इन्हें सरकार में सबसे बड़ा पद देगी।

नवंबर में भी इन हिमाचल पर खबर पढ़ी थी जिसमें अंदाजा लगाया गया था कि पार्टी के मन में क्या है (यहां क्लिक करके पढ़ें)। इस खबर को पढ़कर लगा था कि शुरू में कुछ समय के लिए प्रेम कुमार धूमल को सीएम बनाया जा सकता है मगर बाद में धूमल की जगह जयराम को नेतृत्व सौंपा जा सकता है। मगर जिस समय प्रेम कुमार धूमल की हार हो गई, उसी समय स्पष्ट हो गया कि अब उनकी जगह नंबर जयराम ठाकुर का ही लगने वाला है।

एक साल पहले जब अमित शाह ने यह बयान दिया था और फिर बाद में जब जयराम को ही मुख्यमंत्री बनाया था, उसी समय स्पष्ट हो गया था कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी दोनों की हिमाचल के लिए पसंद जयराम ठाकुर ही हैं। वैसे भी जबसे भारतीय जनता पार्टी पर अमित शाह और नरेंद्र मोदी का प्रभुत्व हुआ है, उसके बाद से जिन-जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें बनी हैं, उनमें स्थापित नेताओं के बजाय नए चेहरों को मुख्यमंत्री बनाया गया है।

महाराष्ट्र में फडनवीस, राजस्थान में खट्टर, झारखंड में रघुबर इसके उदाहऱण हैं। इसके अलावा जब जयराम को हिमाचल में नेतृत्व सौंपा गया, उसके बाद अन्य राज्यों में भी यह सिलसिला जा रही। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश से लेकर सुदूर उत्तर पूर्व तक नए चेहरों को मौका दिया गया। अगर पैटर्न पर गौर फरमाएं तो यह चयन करने के पीछे शाह और मोदी की खास रणनीति रही है। वह है- पार्टी में गुटबाजी खत्म करना।

दरअसल हर पार्टी में हर राज्य के अंदर गुट होते ही हैं। उनकी आपसी खींचतान पार्टी के लिए खतरनाक रहती है। अगर इन गुटों में से किसी एक को नेतृत्व सौंप दिया जाए तो दूसरा गुट नाराज होकर पार्टी की कब्रें खोदने में जुटा रहता है। ऐसे कई उदाहऱण देखने को मिले हैं और गुटबाजी के कारण पहले भी हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी नुकसान उठाती रही है। उसके लगातार सत्ता में न आ पाने के पीछे भी यही कारण माना जाता है।

तो अगर इन गुटों के अलावा किसी अन्य को यह कमान सौंप दी जाती है तो बाकी गुट कमजोर हो जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जिन ध्रुवों के इर्द-गिर्द विधायक और नेता आदि घूम रहे होते हैं, उनमें से कई लोग नए नेतृत्व की ओर शिफ्ट हो जाते हैं। इससे पहले वाले गुट असंतुष्ट हो भी जाएं, तब भी उनका प्रभाव इतना नहीं रहता कि वे पार्टी को कमजोर कर पाएं। ऐसे में उनके पास भी अपनी प्रासंगिकता बानए रखने के लिए नए नेतृत्व को स्वीकार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता।

लेकिन अगर खेमेबाजी तोड़कर किसी और अन्य को नेतृत्व सौंपना है तो उसमें भी अमित शाह और नरेंद्र मोदी यूं ही किसी का चयन नहीं करते। वे ऐसे नेता का चयन करते रहे हैं जो बेदाग हो, अनुशासित हो और लो प्रोफाइल रहते हुए खेमेबाजी से दूर रहे। ऐसे व्यक्ति का सीएम के तौर पर चयन कर लेने के बाद मोदी-शाह की जोड़ी उसे अपना पूरा समर्थन देती है।

जिस समय नरेंद्र मोदी में थे, उस समय संगठन के स्तर पर उनका सभी के साथ मिलना-जुलना रहा है। धर्मशाला की रैली में भी उन्होंने जिक्र किया कि वह तहसील स्तर पर काम करने वाले नेताओं को आज मंच पर कैबिनेट मंत्रियों के तौर पर बैठा देख खुश हैं। तो उस दौरान से जयराम को वह जानते रहे हैं। आज भी जयराम की पहचान मृदुभाषी नेता की है। संभवत: इन्हीं बातों ने जयराम ठाकुर को हिमाचल के सीएम की कुर्सी पर बिठाने में मदद की। पिछले साल दिसंबर में लंबे मंथन के बाद जैसे ही जयराम ठाकुर को सीएम बनाने का ऐलान किया था, पीटरहॉफ के प्रांगण में बीजेपी समर्थक झूमने लगे थे।

जनाभार रैली के दौरान जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से संबोधन की शुरुआत की, उन्होंने सभी नेताओं और पदाधिकारियों को उनके पदनाम के साथ संबोधित किया जबकि जयराम ठाकुर को मेरे मित्र कहा। इसके बाद भी उन्होंने जयराम सरकार के काम की तारीफ की और उनके काम पर बने वीडियो को सभी लोगों तक पहुंचाने की अपील की।

यह एक तरह से जयराम सरकार के एक साल के कार्यकाल को प्रधानमंत्री का अप्रूवल था कि वह उनके कामकाज से संतुष्ट हैं। साथ ही यह पार्टी और असंतुष्ट धड़ों को भी संदेश था कि वे टांग खिंचाई से बाज आकर सरकार की योजनाओं का जनता के बीच प्रचार-प्रसार करें। मंच से प्रधानमंत्री ने जयराम और उनकी सरकार के कामों की जिस तरह से तारीफ की है, जाहिर है उससे जयराम और उनके कैबिनेट के सहयोगियों का जहां मनोबल बढ़ा होगा तो वहीं पार्टी के अंदर के उनके विरोधियों को झटका भी लगा होगा।

लेकिन अभी तो एक साल पूरा हुआ है और इस दौरान हुए काम के आधार पर सरकार को निर्णायक तौर पर जज नहीं किया जा सकता। लेकिन सरकार को जनता और खासकर पार्टी के अंदर के ही लोगों की भावनाओं को समझना होगा। जनता ने कांग्रेस को हराकर अगर बीजेपी को वोट दिया था तो उसकी कुछ अपेक्षाएं थीं। उन अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए जयराम सरकार को बहुत मेहनत करनी होगी। वरना जिस तरह से एक साल तेजी से बीता है, बाकी के चार साल बीतने में भी समय नहीं लगेगा।

जरूरी यह भी है कि जयराम सरकार असंतुष्ट कार्यकर्ताओं की भी सुने, भले वे किसी भी खेमे से क्यों न हों। उनकी वाजिब मांगों और समस्याओं पर ध्यान देकर ही उनके असंतोष को दूर किया जा सकता है। सर्वमान्य नेता की पहचान यही है कि वह खेमेबाजी को तोड़कर पार्टी को एकजुट करे। अगर एक बार इस पार्टी की सरकार, अगली बार उस पार्टी की सरकार के सिलसिले को तोड़कर जयराम ठाकुर ने अगली बार भी भाजपा को सत्ता में लाने का लक्ष्य है तो उन्हें पूरी पार्टी को साथ में लेकर चलना होगा। कार्यकर्ताओं का असंतोष दूर करना होगा और वह भी बिना तुष्टीकरण किए।

(लेखक मंडी के रहने वाले हैं और आयकर विभाग से सेनानिवृति के बाद विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिख रहे हैं।)

DISCLAIMER: ये लेखक के निजी विचार हैं।

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