जब बीजेपी ने हिमाचली टोपी जलाई थी, तब आप सब चुप क्यों थे?

रविंद्र ठाकुर।। हिमाचल में राजनीति के रंग में रंग दी गई हिमाचली टोपी एक बार फिर चर्चा में है। एक वीडियो में प्रदेश के मुख्यमंत्री एक टोपी को पहनने से पहले इनकार कर रहे हैं और फिर उसे एक तरफ पटकते दिखते हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्होंने इस लाल रंग की टोपी को पहनने से इसलिए इनकार किया क्योंकि इस रंग की टोपी बीजेपी पहना करती है। अब बीजेपी वाले वीरभद्र के इस आचरण को हिमाचल का अपमान बता रहे हैं और मीडिया में भी खबरें छाई हुई हैं। मगर मैं बीजेपी वालों, मीडिया और यहां तक कि इस मामले को उठाने वाले In Himachal से भी पूछना चाहता हूं कि अगर टोपी को पहनने से इनकार करके इक तरफ रखना अगर हिमाचल का अपमान है तो उस टोपी को जलाना क्या है? और जब बीजेपी वाले किन्नौरी टोपी को जला रहे थे, तब आप सब कहां सोए थे? मैं कुछ तस्वीरें और वीडियो भेज रहा हूं।

इसी साल 27 जुलाई को भारतीय जनता पार्टी ने पूरे हिमाचल में वीरभद्र के पुतले फूंके थे। ज्यादातर जगह जो पुतले बनाए गए थे, उन्हें वीरभद्र सिंह की तर्ज पर हरे रंग की टोपी पहनाई गई थी। कहा जा सकता है कि वीरभद्र यही टोपी पहनते हैं तो रियलिस्ट लुक देने के लिए ऐसा किया गया था। मगर दुख हुआ था जब हिमाचल की पहचान मानने वाली इस टोपी को वीरभद्र के पुतलों के साथ फूंक दिया गया था।

एक प्रदर्शन के दौरान पुतले के साथ जलाई जाती हिमाचली टोपी।

राजनीतिक विरोध अपनी जगह है, मगर प्रदेश का सम्मान अपनी जगह। क्या बीजेपी नेताओं की अक्ल उस वक्त काम नहीं कर रही थी कि जलाने से पहले ही कम से कम हिमाचली टोपी को निकाल लेते? मगर कई जगहों पर बड़े नेताओं की मौजूदगी में वीरभद्र के पुतलों के साथ-साथ हिमाचल की टोपी को भी राजनीति की भेंट चढ़ा दिया गया था।

मगर अफसोस, तब किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। और तो और, इन हिमाचल ने भी इसपर कोई खबर प्रकाशित नहीं की। वीरभद्र के मामले में तो उनके बेटे का बयान निकालकर वीडियो डालकर कॉमेंट्री कर दी गई कि हिमाचल का अपमान हो गया। मगर क्या हिमाचलियों के सिर के ताज टोपी को जब बीजेपी ने जलाया था, तब क्या हमारा मान बढ़ गया था?

 

मैं यह नहीं कह रहा कि वीरभद्र ने जो किया सही किया। मैं उनका बचाव भी नहीं कर रहा। मैं मानता हूं कि उन्होंने जो किया वह सही नहीं है। मगर मैं तो हमारे समाज के दोहरेपन पर सवाल उठा रहा हूं। बीजेपी वाले आज हो-हल्ला मचा रहे हैं कि टोपी फेंक दी, ऐसा हो गया, वैसा हो गया।  मगर जब खुद उसके कार्यकर्ता उसे जलाते हैं तो कोई कुछ नहीं कहता। यही बात मीडिया पर भी लागू होती है। आज तो आपको यह घटना नज़र आ गई, मगर उस वक्त बीजेपी के मामले में आपने आंखें मूंद ली थीं।

 

आखिर में In Himachal, मुझे नहीं पता कि आप यह लेख प्रकाशित करेंगे या नहीं। मेरा मकसद आप तक अपनी बात पहुंचाना था। आपको हमेशा हमने निष्पक्ष जानकर मान दिया है। आपकी खबरों और लेखों में जनता के मुद्दे प्रतिध्वनित होते रहे हैं। आप आज अगर सबसे कामयाब हैं तो यह कामयाबी जनता ने दी है। आपका मंच जनता का मंच है और इसलिए इसे यही रहने दीजिए। मैं आरोप नहीं लगा रहा, मगर इतनी उम्मीद रखता हूं कि आप आगे इस बात का ध्यान रखेंगे कि हर मामले के दोनों पहलू ध्यान में लाएंगे। वरना जो जनता आपको बनाती है, वह बिगाड़ भी सकती है।

(लेखक दरअसल InHimachal के पाठक हैं और उन्होंने वीरभद्र सिंह द्वारा टोपी फेंकने की खबर को लेकर प्रतिक्रिया देते हुए हमें ईमेल भेजी थी। हम इस ईमेल को यथावत प्रकाशित कर रहे हैं।) 

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