हिमाचल में जातिवाद: शुतुरमुर्ग बने बैठे हैं तथाकथित अगड़ी जातियों के कुछ लोग

इन हिमाचल डेस्क।। जातिवाद हिमाचल प्रदेश में इतने चरम पर है कि तथाकथित अगड़ी जातियों के लोग यही मानने को तैयार नहीं है कि हिमाचल में जाति के आधार पर भेदभाव होता है। सोशल मीडिया पर युवा पीढ़ी के लोगों की संख्या ज्यादा है। जहां कुछ लोग बहुत समज-बूझ भरी बातें करते नजर आए, वहीं कुछ लोगों की टिप्पणियां बता रही थीं कि वे जातिवाद से किसने ग्रस्त हैं और उनके अंदर जातिगत दंभ कितना ज्यादा है। ये कह रहे थे कि जातिवाद हिमाचल में है ही नहीं। इसीलिए इस बड़ी को समस्या को सिरे से खारिज कर देने वाले ऐसे लोगों को जाहिल यानी Ignorant कहा जा सकता है। यानी ऐसे लोग, जो अज्ञानी हैं। ऐसे में यह लेख ऐसे ही लोगों के लिए समर्पित है।

हिमाचल के कई अंदरूनी इलाकों में जाकर देखें, जातिवाद कैसा है। यह इकलौती घटना नहीं है कि बच्चे स्कूलों में मिड-डे मील साथ नहीं कर रहे। पिछले साल तो कुछ लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल से ही हटा दिया, ताकि वे किसी अन्य जाति के बच्चों के साथ खाना न खा पाएं।

इन हिमाचल के फेसबुक पेज पर कुछ लोग तर्क दे रहे हैं कि मीडिया हौव्वा बना रहा है औऱ हिमाचल में जातिवाद है ही नहीं। वे कहते हैं कि उनके सामने भेदभाव नहीं हुआ। मगर ऐसा दावा करने वाले सभी के सभी ठाकुर, राणा, कटोच और शर्मा जैसे क्यों हैं? और एक ने तो बड़े गर्व से कहा कि मैं राजपूत हूं, फिर भी मेरे दोस्त दलित हैं। यह टिप्पणी खुद में दंभ भरी है मानो मैं अगड़ी जाति से होकर तथाकथित पिछड़ी जाति के दोस्त बनाता हूं। यह स्वयं जातिवाद से ओत-प्रोत टिप्पणी है।

ऐसी टिप्पणियां क्यों सामने नहीं आतीं कि मैं दलित हूं और मेरे साथ जातिगत भेदभाव नहीं हुआ। इसलिए, क्योंकि एक तो लगभग सभी को जीवन में किसी न किसी स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ा होगा। और अगर नहीं भी करना पड़ा होगा तो हमारे समाज की सोच के कारण बहुत से लोग खुलकर ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि वे नहीं बता सकते कि वे पिछड़ी जाति से हैं। सोशल मीडिया पर नाम के आगे दंभ से राजपूत लगाया जा सकता है, मगर उनके साथ ऐसा नहीं है।

आरक्षण की आड़ लेते लोग
टिप्णपियों में लोग कुछ जातिवाद को आरक्षण से जोड़ते नजर आए। उनका कहना था कि आरक्षण की वजह से जातिवाद है। वे बच्चों के साथ हुए घटनाक्रम को जस्टिफाई कर रहे थे। यह बात हास्यास्पद है क्योंकि उनकी सोच के ठीक उलट आरक्षण इसीलिए है, क्योंकि समाज में जातिवाद है। और यह तब तक रहेगा ही, जब तक जाति के आधार पर पक्षपात और भेदभाव नहीं रुक जाता। यह बहस हो सकती है कि आरक्षण कैसे, किस आधार पर लागू होना चाहिए, हटना चाहिए या नहीं। मगर यह समझना जरूरी है कि इसके लिए जातिवाद ही तो जिम्मेदार है।

यदि आरक्षण को खत्म करना है तो पहले जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को खत्म कीजिए। क्या तथाकथित अगड़े अपनी शादियों में अपने गांव के लगभग सभी अगड़ों को बुलाते हैं, क्या वे अपनी ही गांव के दलितों को भी शादी में न्योता देंगे और अपने साथ घर के अंदर बिठाएंगे और खाना भी सबके साथ खिलाएंगे? अगर इसका जवाब न है तो समझ लीजिए कि आप लाख दिखावा कर लें, आपके समाज में जातिवाद है। सबसे बड़ी बात, यहां शादी करने के लिए अपनी ही जाति के लोग क्यों देखे जाते हैं? कितने लोग हैं जो अपने बच्चों के लिए अंतरजातीय जीवनसाथी ढूंढते हैं?

सोचिए, उन नन्हे-मुन्नों के मासूम दिल पर क्या गुजरती होगी, जब स्कूल में उनके साथी उनके साथ खाना खाने से इनकार कर देते होंगे। जब उन्हें कहीं बैठने से मना कर दिया जाता होगा, कहीं जाने पर टोक दिया जाता होगा। समाज में बचपन से होने वाला यह भेदभाव किसी के भी दिलो-दिमाग पर गहरा असर डाल सकता है। यह बुलीइंग यानी दादागिरी का रूप है। समाज में कदम-कदम पर होने वाला यही भेदभाव हमारे समाज के एक वर्ग के आत्मविश्वास को गिराता है।

ये बच्चे बचपन में अपने माता-पिता से पूछते हैं कि साथी उनके साथ खाना क्यों नहीं खाते। यह हताशा बच्चों में एक तरह की फ्रस्ट्रेशन पैदा कर देती है। बच्चों के आत्मविश्वास का गिराकर बिना कारण उनके अंदर झिझक और शर्म पैदा कर देती है। गिरे हुए आत्मबल के कारण उसे हर जगह दोहरा युद्ध करना पड़ता है। पहले खुद से और फिर सिस्टम या एग्जाम से। यह ऐसा अनुभव है जिसे फेसबुक पर ज्ञान दे रहा तथाकथित अगड़ी जाति का व्यक्ति कभी समझ नहीं सकता।

किसी भी समस्या को दूर तभी किया जा सकता है, जब पहले माना जाए कि वाकई समस्या है। अगर यही कहते रहेंगे कि समस्या नहीं है, तो इसे दूर कैसे किया जा सकता है? यह हो सकता है कि हिमाचल में अन्य राज्यों की तरह भीषण हत्याकांड या दलितों के खिलाफ स्पष्ट भेदभाव नहीं होता हो, लेकिन यहां जातिवाद तो हर जगह है। खासकर उन इलाकों में, जहां विकास कम हुआ है। जहां देवताओं के प्रकोप का भय दिखाकर दलितों को दबाया जाता है। शुतुरमुर्ग बनने से कुछ नहीं होता, जो शिकारी देखकर रेत में अपना सिर दबा लेता है और सोचता है कि मुझे कुछ नहीं दिख रहा तो शिकारी को भी कुछ नहीं दिख रहा।

(आप भी जातिवाद को लेकर लेख inhimachal. in @ gmail.com या contact @ inhimachal. in पर भेज सकते हैं)

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