लेख: हिमाचल को लेकर सिर्फ लोक-लुभावन राजनीति न करें प्रधानमंत्री मोदी

आईएस ठाकुर।। टोपी पहनाना एक मुहावरा है। इस मुहावरे का अर्थ है- बेवकूफ बनाना या झांसा देना। हिमाचल प्रदेश में चुनाव आने वाले हैं, ऐसे में टोपी पहनाने का खेल शुरू हो चुका है। हिमाचल के साथ अच्छी बात यह है कि यहां पर पहनाने के लिए अपनी टोपी है जो आज दुनिया भर में ‘हिमाचली टोपी’ के नाम से पहचानी जाती है। और हमारे नेता तो टोपी पहनाने में एक्सपर्ट हैं। हर किसी ने अपनी-अपनी टोपी तय कर ली है और वे अपने समर्थकों को इसी टोपी को पहनाते हैं। जैसे कि वीरभद्र और उनके समर्थक और ज्यादा कांग्रेसी हमेशा हरे रंग की टोपी पहनेंगे और पहनाएंगे भी। हरे रंग वाली इस टोपी को बुशहरी टोपी या किन्नौरी टोपी कहते हैं। वहीं धूमल और उनके समर्थक और बीजेपी वाले लाल रंग की ही टोपी पहनेंगे और इसी को पहनाएंगे भी। यह कुल्लुवी टोपी की एक किस्म है और तथाकथित निचले हिमाचल के कई हिस्सों में पहनी जाती है। यानी हर बड़ा राजनेता अपनी तरह की टोपी पहनाना पसंद करता है। जरूरी नहीं है कि किसी को झांसे में लेने के लिए उसे टोपी पहनाना जरूरी है, टोपी पहनकर भी सामने वाले को झांसे में लिया जा सकता है। खासकर तब, जब टोपी पहनने वाला बड़ी शख्सियत हो। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।

इसरायल के दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी लाल रंग की टोपी पहने नजर आए। देश के अन्य हिस्सों के लोग नहीं समझ पाए मगर हिमाचल के लोग समझ पाए कि ये तो हिमाचली टोपी है। बीजेपी वाले तो फूले नहीं समाए क्योंकि मोदी जी ने वही टोपी पहनी थी, जो उन्हें उनके नेता धूमल जी ने पहनाई है। जी हां, लाल रंग वाली ये कुल्लुवी टोपी धूमल जी के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही पॉप्युलर हुई और इसे वीरभद्र सिंह की हरी टोपी के जवाब के तौर पर अपनाया गया। अब कुछ लोग तो इतने खुश हुए कि उन्होंने बाकयादा प्रेस नोट निकालकर मोदी जी को धन्यवाद कर दिया हिमाचली टोपी पहनने के लिए। कुछ सांसद (जो खुद टोपी नहीं पहनते हैं क्योंकि शायद उन्हें लगता है कि टोपी पहनना ट्रेंडी नहीं है) वे कहने लगे कि मोदी जी ने तो हिमाचल का मान बढ़ा दिया यह टोपी पहनकर। मगर कुछ लोग ऐसे भी थे जिनका कहना था कि मोदी जी ने टोपी पहनी नहीं है, पहनाई है। शायद ये लोग समझ गए थे कि मोदी जी की टोपी के जरिए कुछ लोग फिर से जनता को टोपी पहनाने में लग गए हैं।

हिमाचली टोपी पहने नजर आए पीएम मोदी

मैंने कई दोस्तों को फेसबुक पर लिखते देखा कि मोदी जी सही टाइमिंग चुनी है हिमाचली टोपी पहनने के लिए। उन्हें खास तौर पर वही लाल टोपी पहनी, जो हिमाचल में बीजेपी वाले पहना करते हैं। अगर मोदी ने हरी टोपी या धारीदार कुल्लुवी टोपी पहन ली होती तो बीजेपी काडर इतना उत्साहित न होता। ठीक भी कहा। दरअसल मोदी जी इस खेल के माहिर खिलाड़ी हैं। वे जानते हैं कि कौन सी चीज लोगों को कहां टच करती है। इसीलिए अचानक मोदी जी का हिमाचल प्रेम हिलोरें मार रहा है। मगर यह प्रेम अचानक क्यों उमड़ आया? लोग कहते हैं कि इलेक्शन की वजह से मोदी जी जरा हिमाचलियो को लुभाने में जुटे हैं। मैं उनसे सहमत हूं और मेरी समझ भी यही कहती है कि मोदी जी बहुत चतुराई से हिमाचलियों को मोहने में जुटे हैं। पहले पिछले दिनों की कुछ घटनाओं पर नजर डाल लेते हैं:

1. उड़ान योजना का हिमाचल से आगाज: मोदी जी ने उड़ान नाम की योजना शुरू की और कहा, भाइयो-बहनो, मेरा ख्वाब था कि हवाई चप्पल पहनने वाला व्यक्ति भी हवाई यात्रा कर सके। कम दूरी वाले एयरपोर्ट्स के बीच सस्ती यात्रा की शुरुआत करने के लिए मोदी जी कहीं और भी जा सकते थे, मगर हिमाचल को क्यों चुना? दरअसल एक तो कोर्ट पहले ही कह चुका था कि शिमला के लिए उड़ान क्यों नहीं है और कनेक्टिविटी यहां पर होनी चाहिए। इसलिए सरकार को यहां से हवाई सेवा तो देनी ही थी। साथ ही हिमाचल में इलेक्शन के लिए 1 साल से कम वक्त बचा था, इसलिए वहां जाकर भाषण आदि देकर कैंपेनिंक की अप्रत्यक्ष शुरुआथ भी तो करनी थी। तो मोदी जी चले आए उड़ान का आजाग करने शिमला और उनके जाने के बाद यह योजना फुस्स हो गई और टिकट महा महंगे हो गए और सुलभ भी नहीं रहे। यानी माहौल तो बहुत बना, मगर जमीन पर हवाई चप्पल पहनने वालों को तो क्या, महंगे जूते पहनने वालों तक को फायदा नहीं हो रहा।

2. ट्रंप की पत्नी को हिमाचली तोहफे: हिमाचल का मीडिया और बीजेपी कार्यकर्ता तब और भी दीवाने हो गए जब मोदी जी ने अमेरिका के राष्ट्रपति की पत्नी को कुल्लू शॉल, चांदी का ब्रेसलेट और कांगड़ा चाय गिफ्ट की। अच्छी बात है, मुझे खुशी हुई कि चलो हिमाचल का कुछ नाम हुआ। मगर मैं टाइमिंग पर शक क्यों न करूं? चुनाव की तैयारियों में जुटी है प्रदेश बीजेपी, अमित शाह कई चक्कर लगा चुके हैं, परिवर्तन रथयात्रा चल रही है, इस बीच अगर हिमाचल से जुड़ी कोई चीज मोदी से किसी को गिफ्ट कर दें तो माहौल बनना तय है। भले ही कांगड़ा और चंबा की चांदी के गहने अभ कोई न पहनता हो, कांगड़ा चाय की महक सरकारी नजरअंदाजी की वजह से फीकी पड़ती जा रही हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। इन्हें बचाने के लिए सरकार कुछ करे या न करे, कोई फर्क नहीं पड़ता। मोदी जी ने गिफ्ट कर दी चीजें, हिमाचली खुश, बस। मगर हिमाचल का भला तब होगा जब कांगड़ा चाय को रिवाइव किया जाए और हिमाचल की नक्काशी और अन्य कलाओं को संरक्षण दिया जाए। इस संबंध में कोई ठोस कदम उठाए बिना कुछ नहीं होगा।

3. इसरायल में हिमाचली टोपी: ट्रंप फैमिली को हिमाचली तोहफे देने के कुछ ही दिनों के अंदर मोदी जी टोपी पहने नजर आए। यह कोई संयोग नहीं था। मोदी जी हमेशा तो टोपी नहीं पहनते। कसोल से इजरायल के लिंक को जोड़ते हुए कुछ लोग इसे एक अच्छा मूव बता रहे हैं। मैं भी उनसे आंशिक रूप से सहमत हूं। बल्कि मैं तो कहता हूं कि मोदी जी ने अच्छा कदम उठाया है और एक तीर से दो शिकार किए हैं। इजरायली भी मोदी जी को हिमाचली टोपी में देखकर कनेक्ट कर गए होंगे और अपने हिमाचली (खासकर बीजेपी वाले) तो आज तक खुशी की खुमारी से नहीं उतरे हैं। मगर क्या हिमाचल के लिए टोपी पहनना ही काफी है? हिमाचलियों को जरूरत है कुछ और चीजों की और उम्मीद है कि वे सिर्फ राजनीतिक ऐलान नहीं होंगे।

पिक्चर अभी बाकी है…
मुझे मोदी जी द्वारा किए गए इन सभी कामों से कोई दिक्कत नहीं। बल्कि मुझे खुशी है कि चलो, कुछ तो अच्छा किया जा रहा है। हिमाचल जैसा प्रांत जो कि राजनीतिक रूप से इसलिए इग्नोर किया जाता है क्योंकि यहां से सिर्फ 4 लोकसभा सीटे हैं, कम से कम एक प्रधानमंत्री की नजर में तो है, भले ही चुनावों के लिए सही। मगर मोदी जी से अपील है कि सिर्फ टोपी पहनने से काम नहीं चलेगा। आपने भाषणों में वादा किया है कि हिमाचल में रेल का नेटवर्क होना चाहिए। आपने कहा था कि मेरा दिल दुखता है जब हादसों में किसी की मौत होती है। आपने पूछा था- भाइयो-बहनों, रेल नेटवर्क होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? आपके कई बार पूछे गए सवाल का मतलब आपका वादा है। इसका मतलब यह होना चाहिए कि बिलासपुर-लेह लाइन के अलावा भी आप अहम जगहों को कनेक्ट करवाएं ट्रेन से (वह भी न जाने कब बनेगी)। बात इकनॉमिकल फिजिबिलिटी की नहीं, लोगों की जान और उनकी सुविधा की है। जरुरी नहीं है कि ट्रेन लाइन वहीं बनाई जाए जहां लोग भेड़-बकरियों की तरह चढ़ते हों।

जरूरत है हिमाचल में अच्छे अस्पतालों की। एम्स का आपने ऐलान तो कर दिया मगर यहां प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के बीच फ्रेंडली मेैच चल रहा है। राज्य सरकार केंद्र पर आरोप लगाती है कि उनकी तरफ से मामला अटका है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री कहते हैं कि इसमें कोई टेक्निकैलिटी है जिसमें मैं जाना नहीं चाहता। अगर आप सोच रहे हैं कि टोपी पहनने, कांगड़ा चाय गिफ्ट करने की तरह इलेक्शन से पहले एम्स का शिलान्यास करके माहौल बनाएंगे तो आपमें और उन लोगों में कोई फर्क नहीं रहा जो कई दशकों से ऐसी ही राजनीति करते आ रहे हैं। सेंट्रल यूनिवर्सिटी को भी वॉलिबॉल बनाया हुआ है। एक जगह कैंपस होने के बजाय आपकी पार्टी के नेता दो-दो जगह कैंपस खोलने की बात कर रहे हैं और वह भी प्रदेश के दो कोनों मे नहीं ताकि जनता को सुविधा हो, बल्कि एक ही जिले में दो कोनों पर। अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं।

अगर आप सोच रहे हैं कि इसका भी इलेक्शन से पहले कुछ करेंगे तो कोई फायदा नहीं। असल फायदा जनता को शिमला और धर्मशाला को स्मार्ट सिटी बनने से भई नहीं है। जनता ने आपको परिवर्तन के लिए प्रधानमंत्री बनाया है तो इसका मतलब तौर-तरीकों मे भी परिवर्तन होना चाहिए। आपके वादे जमीन पर दिखने चाहिए। 2014 से लेकर आज 2017 तक हिमाचल में आपने क्या अलग कर दिया, दिख नहीं रहा। अगर किसी को लगता है कि वह लच्छेदार भाषणों और टोपी पहनने-पहनाने से वोट बटोर लेगा तो यह दुख की बात है। हो सकता है कि आपको माहौल के बीच आंख मूंदकर वोट देने वालों के वोट मिल भी जाएं, मगर प्रदेश के उस समझदार तबके को हताशा होगी जो आपसे उम्मीदें लगाए बैठा है। वरना अगर कोई बदलाव के नाम पर लोक-लुभावन और टोपी पहनाने जैसी राजनीति करता है तो यह जनता के साथ ठगी है। शायद आपको टोपी पहनने की सलाह देने वालों ने बताया नहीं होगा कि हिमाचली अब टोपी पहनकर लोगों को टोपी पहनाने वालों से तंग आ चुके हैं।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से संबंध रखते हैं और आयरलैंड में रहते हैं। इन हिमाचल से जुड़कर लंबे समय से लेखन कर रहे हैं)

DISCLAIMER: ये  लेखक के निजी विचार हैं, इनके लिए वह स्वंय उत्तरदायी हैं।

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