आलोचना का नया मुहावरा- किस्से चलते हैं बिल्ली के पांव पर

सतीश धर।। कविता के पाठकों के लिए हिमाचल के जनजातीय क्षेत्र पांगी घाटी से सम्बद्ध कवि-आलोचक गणेश गनी ने आलोचना का नया मुहावरा देकर हिंदी साहित्य जगत में खलबली मचा दी है।

वास्तव में पिछले तीन दशक से प्राध्यापकीय आलोचना के कारण कविता जिस तरह से पाठकों से दूर होती चली गई, यह चिंता कवि-पाठक दोनों के लिए असमंज की स्थिति पैदा कर रही थी। गनी ने एक सुगम और सहज परामर्श देकर इस दुविधा का निदान अपनी पुस्तक में किया है।

“किस्से चल कर आते हैं बिल्ली के पांव पर’ कवि-आलोचक गनी साहित्यिक संवाद की यात्रा में अपने साथ देश के 50 से अधिक कवियों की कविताओं की स्मृतियां साथ लेकर चलते है । इस यात्रा में शब्दों से बर्फीली धूप है, छाते में बादल है और अंधेरे समय की उजली कविताएं हैं।

गणेश गनी

कवि गनी मानते हैं कविता की दुनिया उतनी सरल नहीं है, जितनी दिखती है। गनी अपनी पुस्तक में लिखते हैं, “शब्दों के निर्रथक जोड़-तोड़ से कवि सोचता है कि कविता बन गई क्योंकि उसे वाहवाही भी मिल जाती है और यही भ्रम में भी डाल देती है।”

“कविता लिखने से पूर्व एक संवेदनशील और बेहतरीन ह्रदय वाला मनुष्य बनना बहुत ज़रूरी है। ऐसा व्यक्ति ही जीवन और समाज में व्याप्त जटिलता को महसूस कर सकता है। कवि के व्यक्तिगत जीवन और उसकी विचारधारा को जानना भी ज़रूरी हो जाता है ताकि उसकी रचना का ठोसपन मालूम हो सके। बहुत से कवि दोहरा जीवन जी रहे।”

कविता की कवि के व्यक्तिगत जीवन से जोड़ कर देखने की यह प्रक्रिया हिंदी कविता को नया आयाम प्रदान करती है। आलोचक गनी का यह कहना कि अपनी मूल्य विहीन तटस्थता, आत्मघाती सहनशीलता और कायर चुप्पी के कारण हिंदी का लेखक अपना मृत्यु लेख स्वयं लिख रहा है सत्य प्रतीत होता है।

गणेश गनी ने हिमाचल के 15 हिंदी कवियों की कविताओं के माध्यम से भी यह आत्म-संवाद यात्रा पूरी की है। कविता की राष्ट्रीय धारा में हिमाचल की हिंदी कविता को शामिल कर जो सम्मान और आदर उन्होंने हिमाचल को बख्शा है वह प्रशंसनीय है। गणेश गनी स्वयं भी हिमाचल के जनजातीय क्षेत्र पांगी से हैं और कुल्लू में एक निजी पाठशाला ग्लोबल विलेज स्कूल का संचालन कर रहे हैं।

(लेखक सतीश धर मूलत: कवि हैं। श्रीनगर (कश्मीर) में जन्मे कवि सतीश धर हिमाचल में पले-बढ़े। वर्ष 1967 कॉलेज के दिनों में कविता लिखना शुरू किया।

उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- ‘कल की बात’, ‘सलमा खातून नदी बन गयी’, ‘प्रथम पंक्ति के लोग।’ उन्होंने ‘अन्त्योदय पुरुष: शान्ता कुमार’ जीवन-वृतांत का लेखन और ‘भारत और भारतीय संस्कृति’ का सम्पादन किया है।

इसके अलावा दो पुस्तकें कश्मीर की संत कवयित्री माता श्री रूपभवानी पर प्रकाशित हो चुकी हैं। उनसे dharsatish51 @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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