लेख: वन मंत्री नाचते रहेंगे और पीछे से हिमाचल के जंगल साफ हो जाएंगे

  • नवीन राणा


इन दिनों एक तस्वीर हिमाचल प्रदेश में बहस की विषय बनी हुई है। तस्वीर में हिमाचल के वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी मंच पर नाच रहे हैं। किसी वेबसाइट ने उसके साथ लिखा है कि यह सिस्टम का मजाक है और क्या इन्हें इसीलिए मंत्री बनाया गया है। इस कैप्शन को देखकर पहले-पहल तो मन में सवाल आता है कि ठाकुर सिंह भरमौरी अगर मंच पर नाच रहे हैं तो सिस्टम का क्या मजाक है? ऐसा क्या है कि कोई मंत्री मंच से गा नहीं सकता या नाच नहीं सकता?

किसी मंत्री के नाचने में कुछ भी गलत नहीं है और इससे किसी को समस्या भी नहीं होनी चाहिए। मगर दिक्कत सिर्फ तब तक नहीं होनी चाहिए, जब तक वह मंत्री अपने दायित्यों और जिम्मेदारियों का पालन पूरी निष्ठा और समर्पण से कर रहा हो। लेकिन अगर वह मंत्री नाचने और गाने के अलावा कुछ कर ही न रहा हो, तब दिक्कत होनी चाहिए और हर जागरूक नागरिक को दिक्कत होनी चाहिए। और अफसोस, यही कुछ नजर आ रहा है हिमाचल प्रदेश के वनमंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी के साथ।

bharmauri

भरमौरी जी के बारे में सुना है कि वह लोक कलाकार रहे हैं और आकाशवाणी के शिमला केंद्र से उनके गाए गानों का लंबे समय तक प्रसारण होता था। अगर यह सही है तो संभव है कि हम सबने कभी धारा रे गीत या अन्य किसी कार्यक्रम में उन्हें गाते सुना हो। जो व्यक्ति लोक संस्कृति से जुड़ा रहा हो उम्र भर, वह उससे कभी अलग नहीं हो सकता। अगर वह किसी भी कार्यक्रम में जाता होगा, बच्चों को गाते हुए देखता होगा, नाचते हुए देखता होगा तो उसका मन भी मचलता होगा नाचने-गाने को। इसमें वैसे तो कुछ गलत भी नहीं है, मगर मंत्री जी को ध्यान रखना चाहिए कि अब वह प्रदेश के मंत्री हैं और उनके ऊपर प्रदेश की वन संपदा की जिम्मेदारी है।

वन संपदा है तो हिमाचल है, वरना चट्टान के बने पहाड़ों में न कोई इंसान बस सकता है और न उन पहाड़ों की कोई शोभा बनती है। जितना लगाव और जितना समर्पण वह नाच और गाने के प्रति रखते हैं, उतना ही समर्पण अगर वह अपने विभाग के लिए दे रहे होते तो आज प्रदेश के वनों की हालत खराब नहीं होती। और अगर वह इतने ही संवेदनशील हैं तो जैसे वह लोक संस्कृति के प्रति लगाव रखते हैं तो कैसे भूल सकते हैं कि हिमाचल की वन संपदा भी इसकी लोक संस्कृति का हिस्सा है। वन विभाग के मंत्री होने पर औपचारिकता में जिम्मेदारी निभाने के बजाय उन्हें पैशन और समर्पण के साथ वनों के लिए कुछ करने में जुट जाना चाहिए था।

किसी मंत्री या संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के कामों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला- मंत्री होने के नाते प्रदेश के लिए क्या पॉलिसी बनानी है, किस पॉलिसी को कैसे लागू करना है, कहां कमी है, कहां क्या सुधार होना है, कहां कौन सा अधिकारी अच्छा कर रहा है, कहां खराब; इन सब बातों का ख्याल रखना है। और दूसरा हिस्सा ऐसा है, जिसमें दिखावा है, औपचारिकताएं हैं। उदाहरण के लिए पब्लिक अपियरेंस देना, जिनमें उद्घाटन या शिलान्यास के कार्यक्रमों में जाना, सांस्कृतिक जमावड़ों में शिरकत करना और तरह-तरह के कार्यक्रमों में उपस्थिति देना भी शामिल है। मगर अफसोस की बात यह है कि भरमौरी जी दूसरे हिस्से पर कुछ ज्यादा फोकस कर रहे हैं, पहले हिस्से की उन्हें चिंता तक नहीं है। वह पब्लिक अपियरेंस देने में तो पूरे समर्पण से डूबे रहते हैं, मगर अपने महकमे की जिम्मेदारियों में शायद उनका मन नहीं लगता।

प्रदेश भर में वनमाफिया सक्रिय है। आलम यह है कि सिरमौर जिले के पावंटा साहिब के पास वन तस्करों ने वन विभाग के अधिकारियों समेत पूरी टीम पर फायरिंग कर दी। कुल्लू समेत कई जिलों में विभिन्न जंगलों में सर्दियों के मौसम में आग लग गई तो कुछ आज भी सुलग रहे हैं। कई सालों से कुछ जगहों पर फर्निचर बनाने के नाम पर इमारती लकड़ी की तस्करी हो रही है हरे-भरे पेड़ों को काटकर। झंटिगरी से होते हुए बरोट आदि से जो तस्करी का खेल चल रहा है, वैसा ही खेल प्रदेस में कई जिलों में चल रहा है। शिमला में तारादेवी मंदिर के पास सरेआम जंगल की कटाई हो गई और वन विभाग सोता रहा। कोई भी एक उदाहरण ऐसा देखने को नहीं मिला, जहां मंत्री ने इन तमाम समस्याओं पर अधिकारियों की हाइ-लेवल मीटिंग बुलाई हो या तुरंत कोई ऐक्शन लिया हो। वह नजर आते हैं तो कभी किसी कार्यक्रम में गाने गाते हुए तो कभी किसी कार्यक्रम में नाचते हुए। अगर मंत्री महोदय अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए अपने काम को ढंग से कर रहे होते तो उनके नाचने-गाने पर किसी को आपत्ति नहीं होती।

(लेखक चंबा के रहने वाले हैं और हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी, शिमला में अध्ययनरत हैं।)

SHARE