लेख: अनुराग जी, क्या आपको पिता के नाम का फायदा नहीं मिला?

आई.एस. ठाकुर।। आजकल सोशल मीडिया पर कुछ ज्यादा ही सक्रिय नज़र आ रहे हमीरपुर से बीजेपी के सांसद अनुराग ठाकुर एक बार चर्चा में हैं। इस बार उनका एक ऐसा बयान राजनीतिक गलियारों और बुद्धिजीवी वर्ग के बीच हंसी-ठिठोली का विषय बना हुआ है, जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने 13 साल की उम्र में अपने पिता का नाम इस्तेमाल करने का फैसला किया था। दरअसल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमरीका में कांग्रेस पर लगने वाले परिवारवाद के आरोपों पर सफाई देते हुए कहा था कि भारत में यह सामान्य बात है और इकलौते वही नहीं हैं जो परिवार के पेशे में आगे बढ़ रहे हैं। अब अनुराग ठाकुर को जाने क्या सूझी कि समाचार एजेंसी एएनआई के पत्रकार के सामने उन्होंने राहुल गांधी पर निशाना साधने के लिए बयान दिया। मगर उन्होंने इसमें ऐसी बात कह दी जो गले नहीं उतर रही।

 

अनुराग ने कहा, “मैं 13 साल की उम्र में अगर यह निर्णय ले सकता हूं कि मुझे अपना नाम अनुराग ठाकुर रखना है, धूमल सरनेम नहीं रखना है। तो क्या राहुल गांधी क्या गांधी छोड़कर सिर्फ राहुल नाम से राजनीति करेंगे?” मगर प्रश्न उठता है कि क्या सिर्फ पिता के नाम का सरनेम न लगाने से कोई अपनी पहचान अपने पिता या परिवार से अलग कर सकता है? क्या अनुराग ठाकुर ने अगर अनुराग धूमल नाम नहीं रखा तो दुनिया को पता नहीं चला कि वह किस परिवार से हैं? और अगर अनुराग ठाकुर बीजेपी के सीनियर नेता प्रेम कुमार धूमल के बेटे नहीं होते, तो क्या उन्हें हमीरपुर सीट से टिकट मिल जाता? क्या उन्हें हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन का सर्वेसर्वा बनकर कई नियमों में छूट पाकर धर्मशाला में स्टेडियम बनाकर आगे बढ़ने का मौका मिलता?

 

साथ ही अगर वह राहुल गांधी को नाम छोड़ने की चुनौती दे रहे हैं और चलिए राहुल कल को ऐलान कर दें कि मैं गांधी टाइटल छोड़ रहा हूं, तो क्या उससे उनकी गांधी परिवार से होने की पहचान छिप जाएगी?

मगर अनुराग, आप ठाकुर हों या धूमल। यह तथ्य है कि आप प्रेम कुमार धूमल जी के बेटे हैं और उनके नाम के आधार पर ही पहचान बनी है आपकी और उसी को आपने बेशक अपनी मेहनत से आगे बढ़ाया हो। मगर कम से कम यह तर्क तो मत दीजिए कि मैंने नाम छोड़ दिया ताकि उसका फायदा न मिले। दरअसल आप जानते हैं कि आपके ऊपर परिवारवाद के आरोप लगते हैं। मगर इस मामले में तो आप जबरदस्ती ही सफाई देने लग गए।

 

हिमाचल क्या, पूरे देश में बहुत से लोग ऐसे हैं जहां पर पिता का टाइटल अलग और बेटे का टाइटल अलग होता है। सरनेम में यह भेद इसलिए नहीं होता कि पिता के नाम का फायदा नहीं उठाना है। इसकी कई वजहें होती हैं। कई बार पिता का टाइटल जाति आधारित होता है तो कई बार गोत्र या फिर इलाके के हिसाब से। इसी तरह बेटा अपना टाइटल कभी जाति के आधार पर रखता है तो कभी गोत्र तो कभी किसी और आधार पर। उदाहरण के लिए मेरे एक दोस्त हैं जिनका टाइटल सकलानी है। उनके बेटे का सरनेम ठाकुर है और उनके भतीजे ने अपने गोत्र ‘अत्री’ के नाम पर अपना सरनेम अत्री कर लिया है।

 

लोग कई वजहों से टाइटल अलग रखते हैं। बालमन में ऐसा करने की पहचान जातिगत रहती है या फिर नाम को अच्छी पहचान दिलाने की रहती है, न कि पिता के नाम का फायदा न लेने की। पिता या परिवार के नाम का फायदा न लेने वाला काम तभी हो सकता है जब कोई बचपन में ही पिता का घर छोड़कर कहीं गुप्त नाम से किसी नए शहर में जाए, जहां उसे कोई पहचानता न हो और फिर संघर्ष करके खुद की पहचान बनाए।

 

तो अनुराग, आपने राहुल पर निशाना नहीं साधा, बल्कि खुद को निशाने के आगे कर दिया। आपसे परिपक्वता की उम्मीद रहेगी आगे। वैसे टाइटल छोड़ना ही है तो खुशी होगी अगर आप जातिगत पहचान हटाने के लिए ठाकुर टाइटल का त्याग करने का ऐलान करते हैं। इससे समाज में एक संदेश तो जाएगा ही। आपका यह काम जरूर तारीफ के काबिल होगा।

 

(लेखक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से संबंध रखते हैं और इन दिनों आयरलैंड में एक कंपनी में कार्यरत हैं। उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

(DISCLAIMER: ये लेखक के अपने विचार हैं, इनके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं)

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