जब वीरभद्र ने तोड़ा था पालमपुर में बड़े अस्पताल का शांता कुमार का सपना

हाल ही में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने उस याचिका को खारिज करके याचिकाकर्ता पर दंड लगाया है जिसमें आरोप लगाया गया था कि ‘जनता के सहयोग से शांता कुमार के विवेकानंद ट्रस्ट ने जो अस्पताल बनाया था, वह आज व्यावसायिक गतिविधियां चला रहा है।’

पालमपुर में ट्रस्ट के माध्यम से इस अस्पताल को बनाने से पहले शांता कुमार ने एक और बड़े अस्पताल को  यहां लाने की कोशिश की थी। उस दौर में जब हिमाचल में स्वास्थ्य सुविधाएं नाममात्र की थीं। उस अस्पताल की कहानी बताने वाले इस लेख को पहली बार 26 अप्रैल, 2016 को इन हिमाचल पर प्रकाशित किया गया था। इसे अब फिर से प्रकाशित किया जा रहा है।

डॉक्टर  सतीश अवस्थी।। कल टांडा मेडिकल कालेज में सराय के शिलान्यास पर मैं भी उपस्थित था। टांडा मेडिकल कालेज में  शांता कुमार  ने सराय बनाने के लिए BHEL से ढाई करोड़ का धन उपलब्ध करवाया। आप सबको यह एक रूटीन बात लग रही होगी परन्तु मेरे जैसे व्यक्ति के लिए जिसने इतिहास के पन्ने पढ़े हैं उसके लिए यह एक अलग बात थी। कार्यक्रम की तस्वीरें देख मैं इतिहास में डूब गया।

1990 में बीजेपी रिकॉर्ड सीटों के साथ सत्ता में आई, शांता कुमार फिर से मुख्यमंत्री बने। सब लोगों की नजरें उन पर थीं। गली चौराहों पर यही चर्चा होती थी कि पानी वाला मुख्यमंत्री इस बार क्या नया करेगा। मैं उस समय युवा डॉक्टर था, कांगड़ा जिले में अपनी सेवाएं दे रहा था। हॉस्पिटल के नाम पर पूरे हिमाचल में सिर्फ स्नोडन हॉस्पिटल हम लोगों के पास था, जिसमें कुछ एक सही दर्जे की सुविधाएं मौजूद थीं। फिर बात चली कि पालमपुर में एक हॉस्पिटल बनेगा, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के बड़े अस्पतालों जैसी सुविधाएं होंगी। बात थी कि सीएम खुद इसके लिए कोशिश कर रहे हैं।

उस दौर में अपोलो हॉस्पिटल भारत में स्वास्थ्य के क्षेत्र में ब्रैंड था। एक डॉक्टर होने के नाते हम लोग भी उत्साहित थे कि क्या सचमुच हिमाचल के पालमपुर में अपोलो स्तर का हॉस्पिटल बनेगा। सब चीजें सही राह पर जा रही थीं। शांता कुमार ने अपोलो के तत्कालीन चेरयमैन से बात कर ली थी और पालमपुर को लेकर सब फाइनल हो गया था। हिमाचल के लाखों लोगों ने इस पुनीत कार्य के लिए मुख्यमंत्री के कहने पर चन्दा भी दान दिया था। पर बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण पूरे देश में बीजेपी की सरकारें भंग कर दी गईं। तब ढाई साल की अवधि में ही शांता कुमार सरकार भी इस विवाद की भेंट चढ़ गई।

शांता कुमार | Image Courtesy: Shanta Kumar / HP Govt

पुनः चुनाव हुआ, लोक लुभावन निर्णयों की जगह जनहित में प्रदेश भविष्य के लिए निर्णय लेने वाले शांता कुमार को जनता ने अस्वीकार कर दिया। वीरभद्र सिंह प्रदेश के मुख्यमन्त्री बने। शांता का ड्रीम प्रॉजेक्ट-  पालमपुर में अपोलो का निर्माण –  अब नई सरकार के रहमो करम पर निर्भर था।  बुरी तरह से चुनाव हारा हुआ यह नेता, जिसने मुख्यमंत्री होने के बावजूद अपनी सीट भी गंवा दी थी, शिमला में नए मुख्यमंत्री  से मिला और अपोलो हॉस्पिटल को हरी झंडी देने की प्रार्थना की। कहा कि सब कुछ फाइनल है।

तब वीरभद्र सिंह ने शिमला में भद्रता का परिचय देते हुए शांता कुमार की रिक्वेस्ट को स्वीकार भी किया। परन्तु वीरभद्र सिंह राजनीति के घाघ आदमी हैं। कूटनीति में महारथी यह तथाकथित ‘राजा’ जनहित के लिए भी अपने विरोधियों को चांस नहीं देता।  शांता कुमार को वादा करने के बावजूद अपोलो हॉस्पिटल की फाइल ठन्डे बस्ते में डाल दी गई और एक दिन कांगड़ा दौरे पर आए मुख्यमन्त्री ने पालमपुर से 40 किलोमीटर दूर नगरोटा के टांडा में प्रदेश के दूसरे मेडिकल कॉलेज की घोषणा कर दी।

इस पेशे से जुड़े सब लोग अवाक थे। सिर्फ राजनीति के विद्वान समझ पाए कि अपोलो को बनवाकर वीरभद्र अपने विरोधी शांता को क्रेडिट लेने का कोई चांस नहीं देना चाहते थे। हम डॉक्टर लोग राजनीति नहीं जानते पर बस यह ज़रूर जानते थे कि अपोलो हॉस्पिटल बना-बनाया आ जाता। मगर नए मेडिकल कॉलेज को अच्छे स्तर पर ले जाना उस समय हिमाचल सरकार के वश में नहीं था। हुआ भी वही, टांडा मेडिकल कॉलेज खुल तो गया पर मूलभूत सुविधाओं और उच्च स्तरीय फैकल्टी, शोध आदि के लिए तरसता रहा।

वीरभद्र सिंह

आज भी टांडा मेडिकल कॉलेज कहाँ है, उसका क्या स्तर है, प्रदेश का हर आदमी जानता है। मात्र वीरभद्र सिंह की कूटनीति ने  स्वास्थ्य क्षेत्र में अपोलो से प्रदेश को वंचित करवाकर कितना पीछे धकेल दिया था यह आम जनता नहीं बल्कि प्रोफेशनल डॉक्टर जानते थे। वीरभद्र सिंह ने अगले कार्यकालों में भी कूटनीति के तहत प्रदेश में मेडिकल कॉलेज तो बनवा दिए मगर वे कभी उन्हें उस स्तर पर नहीं पहुंचा पाए, जिससे कि वे लोगों के ढंग से काम आ सकें।

बहरहाल, हाल में जब टांडा में सराय का शिलान्यास हो रहा था, वहां शांता कुमार भी थे और वीरभद्र भी। दोनों की तस्वीरें देख मैं तुलना कर रहा था। एक वीरभद्र सिंह थे, जिन्होंने विरोधी को क्रेडिट न मिले इसलिए अपोलो को लात मार दी। वहीं पर शांता कुमार थे, जिनके सपने के खंडहर के ऊपर टांडा मेडिकल कॉलेज की नींव पड़ी और फिर भी वह उसकी सराय के निर्माण के लिए कहीं से धन का जुगाड़ कर लाए। यही नहीं, जिस आदमी ने उनके विचार के विरोध में यह मेडिकल कॉलेज बनाया था, उसी को इसके शिलान्यास का मौक़ा भी दिया।

मेरा मन आदर भाव से शांता कुमार के लिए झुक गया।

टांडा मेडिकल कॉलेज में सराय के शिलान्यास की तस्वीर

मैं कोई राजनीतिक आदमी नहीं हूँ परन्तु प्रदेश की राजनीति का स्तर मैं भी देखता हूँ। शिक्षण संस्थान, जिनकी कई सालों पहले घोषणाएं हुईं, वे आज तक ढंग से नहीं चल पा रहे। कांग्रेस की सरकार आती है तो बीजेपी सरकार में घोषित किए गए किसी इंजीनियरिंग कॉलेज को बजट नहीं मिलता और बीजेपी की सरकार आती है तो कांग्रेस सरकार में बनाए गए संस्थान पैसे के लिए तरसते हैं। ये पार्टियां, ये नेता ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे ये संस्थान उनके हों, जनता के नहीं।

टांडा मेडिकल कॉलेज आगे बढ़े, वहां अच्छा इलाज़ हो, मैं यह चाहता हूँ। पर अपोलो जैसा अस्पताल अगर राजनीतिक रस्साकशी की भेंट नहीं चढ़ता तो हिमाचल के असंख्य मरीज कई साल पहले से पीजीआई चंडीगढ़ रेफर होते-होते दम नहीं तोड़ते। एक मेडिकल प्रफेशनल होने के नाते मैं समझता हूं कि एक एक पल और एक एक सुविधा कितनी अहम होती है। इसलिए ऐसी राजनीतिक की टीस आज भी कहीं न कहीं महसूस होती है।

(लेखक मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के रहने वाले हैं और स्वास्थ्य विभाग में लम्बी सेवा देने के बाद चंडीगढ़ में रहते हैं)

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