सरकारी पैसे से खली की कंपनी के शो में किसका क्या हित है?

आई.एस. ठाकुर।। जो प्रदेश लगभग 45000 करोड़ रुपये के कर्ज पर डूबा हो और इस कर्ज से उबरने के लिए केंद्र सरकार के सहयोग के अलावा और कहीं से कुछ मिलने की उम्मीद न हो, उस प्रदेश में क्या करोड़ों का खर्च करके एक गैरजरूरी मनोरंजक कार्यक्रम करवाना तर्कसंगत है?

प्रदेश में विभिन्न विभागों के कितने ही कर्मचारी 1000 रुपया महीना या इससे कम पैसा कमा रहे हैं और खुद को खपा रहे हैं। आंगनवाड़ी, आशा, मिडडे मील वर्कर और अन्य कई पार्ट टाइम वर्कर और दिहाड़ीदारों का वेतन चिंदी-चिंदी बढ़ाकर सरकारें अपनी पीठ थपथपाती हैं, मगर संपन्न आर्टिस्ट और उसकी अकैडमी को प्रमोट करवाने के लिए करोड़ों जुटाने में दिन-रात एक कर दे रही है।

पैसा सरकार का, प्रमोशन खली का
जी हां, हिमाचल प्रदेश सरकार ‘द ग्रेट खली रिटर्न्स’ नाम से इवेंट्स का आयोजन करने जा रही है और अब उसकी फंडिंग भी खुद करेगी (पढ़ें), तीन करोड़ रुपये जुटाएगी। खली बिज़नसमैन हैं, वह क्या करते हैं क्या नहीं, वह उनका मामला है। हम उसपर सवाल नहीं उठा सकते। मगर जहां पर जनता की जेब से किसी को पैसा जाना है, वहां यह सवाल बनता है कि आखिर इस पैसे को कहां और क्यों खर्च किया जा रहा है।

आखिर इतनी दिलचस्पी क्यों?
दरअसल जैसे ही बीजेपी की नई सरकार बनी थी, खेल एवं युवा मामलों के मंत्री गोबिंद ठाकुर ‘द ग्रेट खली’ से मिले थे। खली ने जालंधर में अकैडमी खोली है, जहां WWE की तर्ज पर होने वाली स्टंट बेस्ड पूर्वनियोजित रेसलिंग की ट्रेनिंग दी जाती है। फिर ऐलान किया गया था कि हिमाचल में खली के कार्यक्रम आयोजित होंगे। बाद में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी इस अकैडमी का दौरा किया था।

तीन करोड़ रुपये का खर्च
खली की कंपनी CWE (जी हां, WWE तो अमरीकी कंपनी है) के कार्यक्रम करवाने के लिए जाने क्यों खेल मंत्री बेताब हैं। खर्च तीन करोड़ आना है, जबकि सभी को पता है कि WWE कोई रेसलिंग नहीं, कोई शेड्यूल्ड गेम नहीं बल्कि स्टंट आधारित परफॉर्मिंग आर्ट है।

पढ़ें- खली की रेसिलंग खेल नहीं, मनोरंजक कला है

उसी समय ‘इन हिमाचल’ ने प्रकाशित किया था कि जिस तरह का कार्यक्रम खेल मंत्री करवाना चाहते हैं, वह शेड्यूल्ड गेम नहीं है और अगर यह असल खेल होता तो उसे राष्ट्रीय खेलों, कॉमनवेल्थ गेम्स या फिर ओलिंपिक गेम्स में शामिल किया गया होता। दैनिक भास्कर ने इस संबंध में जो बात लिखी है, उसे गौर से पढ़ा जाना चाहिए-

“राज्य सरकार उन्हीं खेलों को बढ़ावा दे सकती है, जो खेल विभाग की सूची में शेड्यूल गेम्स की श्रेणी में आते हैं। इन खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार की आेर से ब्लॉक, जिला आैर राज्य स्तर की प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं। इसमें बेहतर प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों का चयन आगे के टूर्नमेंट में किए जाते हैं। इसलिए इन्हें बढ़ावा देने के लिए सालाना तौर पर इनकी एसोसिएशन को भी फंडिंग की जाती है। पहली बार राज्य में नाॅन शेड्यूल गेम्स पर राज्य सरकार फंड करेगी।”

ओलिंपिक में मेडल आएंगे?
बीजेपी सरकार बनते ही खली का इवेंट आयोजित करवाने की चर्चा शुरू हो गई थी। खेल मंत्री का कहना है कि वह खेलों को बढ़ाना देना चाहते हैं। वह तो यहां तक कह रहे थे कि पिछली सरकारों ने इस दिशा में कुछ नहीं किया। मगर सवाल अब उठता है कि एक निजी कंपनी को एक तरह से लाभ उठाने के लिए आप जो कर रहे हैं, उससे कौन से खेल को बढ़ावा दिया जा रहा है और क्या इससे ओलिंपिक में मेडल मिलने वाले हैं?

जनता भी उठा रही सवाल
अब तो लोग सवाल उठाने लगे हैं कि कई महीनों से सरकार इस कार्यक्रम को करवाने के लिए तैयारी कर रही है, जबकि खबरों के मुताबिक खेल विभाग तक इससे हाथ खड़ा कर चुका था। अब चैरिटी की बात करें, टिकटों की बात करें या कुछ भी करें; हकीकत यह है कि इस इवेंट में तीन करोड़ रुपये हिमाचल सरकार देगी। यानी वह सरकार, जो कहती है कि हम कर्ज से उबारने के लिए पाई-पाई सोच-समझकर खर्च करेगी।

पढ़ें- खली की कंपनी के रेसलिंग शो के चक्कर में बुरी फंसी सरकार

नाचना-गाना भी होगा
शेड्यूल तय हो गया है, 29 जून को पड्डल, 7 जुलाई को सोलन में खली का शो करवाया जाएगा। हिमाचल प्रदेश सरकार के खर्च पर होने वाला शो का नाम है- द ग्रेट खली रिटर्न्स. यही नहीं, खेलों का भला करने के लिए इस कार्यक्रम के लिए राखी सावंत, उर्वशी, मनोज तिवारी और बब्बू मान आदि को बुलाए जाने की खबरे हैं। इस कार्यक्रम में जिन 25 भारतीय रेसलरों के हिस्सा लेने की बात की जा रही है, उनमें से अधिकतर खली की अकैडमी के ही छात्र होंगे।

असली खिलाड़ी उपेक्षित
यानी हिमाचल सरकार अपना पैसा खर्च करके खली की कंपनी और उनके छात्रों को मंच देगी। हिमाचल में असली खिलाड़ी आज क्या कर रहे हैं। ये बात खलती है कि खिलाड़ियों की डाइट और उनकी सुविधाएं बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा, मगर एक पहले से ही संपन्न व्यक्ति का शो करवाने के लिए कर्ज में डूबा प्रदेश तीन करोड़ रुपये बहाने जा रहा है। हरियाणा मेडल पर मेडल ला रहा है क्योंकि वह खेलों और खिलाड़ियों पर नीति बनाता है, पैसे खर्च करता है। न कि माहौल बनाने के लिए तड़क-भड़कर वाले इवेंटों पर पैसे खर्च करता है।

ऐसे में हिमाचल की जनता के मन में सवाल उठना लाजिमी है कि जितनी बेताबी सरकार इस कार्यक्रम को करवाने के लिए दिखा रही है, उसमें प्रदेश का हित छिपा है या फिर इसे आयोजित करवाने के लिए बेताब लोगों का। खासकर इसमें भारी-भरकम रकम भी तो सरकारी खजाने से जा रही है।

(लेखक हिमाचल से जुड़े विषयों पर लिखते रहते हैं, उनसे kalamkasipahi @ gmai.com पर संपर्क किया जा सकता है)

ये लेखक के निजी विचार हैं

SHARE