कोटरोपी: मुख्यमंत्री के बेटे के लिए छाता पकड़े दिखे पुलिस अधिकारी

शिमला।। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और प्रदेश यूथ कांग्रेस प्रेजिडेंट विक्रमादित्य सिंह नए विवाद में फंस गए हैं। वह कोटरोपी में हुए भूस्खलन वाली जगह पर गए थे और वहां जिस वक्त मुआयना कर रहे थे, कुछ तस्वीरों में एक पुलिस अधिकारी उनके लिए छाता पकड़कर खड़ा नज़र आ रहा है, जबकि वह कमर पर हाथ रखकर खड़े हैं। तस्वीर में देखा जा सकता है कि कुछ अन्य बिना छाते के भी हैं। प्रश्न उठाया जा रहा है कि अगर बारिश में छाते की ज़रूरत थी तो क्या उसे ख़ुद नहीं पकड़ा जा सकता था।

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ग़ौरतलब है कि भारत में नेता और बड़े पदाधिकारी इन छोटी बातों पर ध्यान नहीं देते। छाता तो फिर भी अलग बात है, कई नेता अपने सुरक्षा अधिकारियों से जूते उठवाने और जूते पहनवाने जैसा काम कर चुके हैं। मगर विदेशों में सारे काम दूसरों से करवाने के बजाय खुद करने को सम्मानजनक समझा जाता है और नेता भी इसमें यकीन रखते हैं। मगर भारत में ऐसा नहीं है।

नड्डा
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा के लिए छाता उठाकर चलता सुरक्षा अधिकारी। भारतीय नेताओं को अपने काम खुद करने की आदत नहीं है।

जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए थे उन्होंने अपना छाता ख़ुद पकड़ा था। मगर विक्रमादित्य ने जो तस्वीरें शेयर की हैं, उनमें से कुछ में और लोग भी उनके लिए छाता पकड़े खड़े हैं। कहीं भी वह खुद छाता पकड़े नजर नहीं आए।

Obama holding umbrella
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा (File Pic) Courtesy: DD

कुछ लोगों का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री के बेटे से छाता खुद नहीं पकड़ा जाता वह इसके लिए निजी स्टाफ रख सकते हैं। उनका कहना है कि हिमाचल प्रदेश पुलिस का काम नेताओं के बच्चों के लिए छाता पकड़ना नहीं है, पुलिस तो राज्य की सेवा के लिए है, राज या सत्ता की नहीं।

हालांकि एक कॉमेंट का जवाब देते हुए विक्रमादित्य ने लिखा – दोस्त यह मेरा छाता नहीं था। वहां पर मौजूद पुलिसकर्मी का था जिसमें मैंने बारिश के कारण पनाह ली थी। मुझे अपना छाता उठाने में कोई समस्या नहीं है।

प्रशासन पर भी उठे सवाल
जानकारों का कहना है कि छाता उठाने की बात बाद की है, विक्रमादित्य सरकार के कोई मंत्री या प्रतिनिधि नहीं हैं कि वह इस तरह से किसी घटनास्थल का दौरा करें और इस मौके पर प्रशासनिक अमला उनके साथ रहे। वह चुने हुए जनप्रतिनिधि भी नहीं हैं। ऐसे में प्रशासन को बिना चुने हुए प्रतिनिधि के साथ इस तरह से आना लोक सेवकों के नियमों का उल्लंघन और अपमान है। जानकारों का कहना है कि प्रशासन को ध्यान रखना चाहिए कि वे कहीं किसी की निजी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा तो नहीं दे रहे।

जो बात चर्चा का विषय बनी हुई है, वह है मुख्यमंत्री के बेटे के लिए पुलिस अधिकारी का छाता पकड़ना। क्या पुलिस के पास और काम नहीं कि वह हर छोटे-बड़े नेता के साथ कहीं भी चल सकती है? और अगर वे घटनास्थल पर ही थे तो क्या अपना काम छोड़ना चाहिए था? अगर किसी के घटनास्थल पर जाने से प्रशासन को अपना काम छोड़कर उनके साथ चलना पड़ता हो तो उसे भी सोचना चाहिए कि मेरा जाना ज़रूरी है या नहीं।

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