कैदियों का वीडियो बनाने वाले पुलिकर्मी को जेल सुपरिटेंडेंट ने बताया अनुशासनहीन

शिमला।। मॉडल सेंट्रल जेल कंडा (शिमला) में कैदियों द्वारा फेसबुक इस्तेमाल करने के मामले में नई जानकारी सामने आई है। जेल प्रशासन का कहना है कि वीडियो बनाने वाला पुलिसकर्मी अनुशासनहीन है और पहले भी उसपर विभाग कार्रवाई कर चुका है। गौरतलब है कि सस्पेंड किए गए कॉन्स्टेबल भानु पराशर ने फेसबुक पर एक वीडियो डाला है जिसमें दो कैदी फेसबुक पर प्रोफाइल पिक्चर लगाते नजर आ रहे हैं। मगर जेल के सुपरिटेंडेंट शेर चंद का कहना है कि ये कैदी फेसबुक पर नहीं, बल्कि वेबसाइट पर काम कर रहे थे। मगर जेल के सुपरिटेंडेंट का यह दावा झूठा साबित होता नजर आ रहा है।

हिमाचल प्रदेश के न्यूज पोर्टल ‘समाचार फर्स्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक सस्पेंड किए गए कॉन्स्टेबल भानु पराशर ने आरोप लगाए हैं कि कैदी जेल में कई स्तर पर सुरक्षा से खिलवाड़ हो रहा है। कैदी संवेदनशील जगहों पर पहुंच जाते हैं और अधिकारियों के कैबिन तक आ जाते हैं। इंटरनेट, मोबाइल फोन और दूसरे गैजट्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। यहां तक कि कैदी बिना परोल भी जेल से बाहर जाते हैं। जेल के बाहर इसके लिए कई गाड़ियां भी खड़ी रहती हैं।

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भानु का कहना है कि उसने इस मामले की शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से भी की मगर उसके बदले सस्पेंशन लेटर थमा दिया गया। भानु का कहना है कि इस दौरान मुझे प्रताड़ित भी किया गया और गालियां तक दी गईं। यहां तक फेसबुक पर पोस्ट्स लाइक करने वाले सहयोगी पुलिकर्मियों को भी तंग किया जा रहा है। भानु का कहना है कि इस जेल की बात नहीं है, अन्य जगहों पर भी वह इस तरह की खामियों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं मगर बदले में कार्रवाई ही झेलनी पड़ी है। 5 महीने से तनख्वाह तक रोकी गई है।

भानु पराशर

‘समाचार फर्स्ट’ ने जेल सुपरिटेंडेंट शेर चंद से भी बात की। उनका कहना था कि सारे आरोप निराधार हैं और आरोप लगाने वाला पुलिसकर्मी खुद ही अनुशासनहीन है। उसके खिलाफ कई बार विभागीय कार्रवाई की जा चुकी है। शेर चंद ने कहा कि इस कर्मी ने नाम में दम कर रखा है। जब पोर्टल ने शेर चंद से पूछा कि क्या जेल मैनुअल में कैदियों को सोशल मीडिया यूज करने की इजाजत देने का प्रावधान है, तो शेर चंद ने इनकार किया मगर कहा कि वे सोशल मीडिया नहीं, बल्कि हमारी वेबसाइट पर काम कर रहे थे। जब पूछा गया कि वेबसाइट पर स्टाफ क्यों नहीं काम कर रहा तो शेर चंद ने कहा कि अच्छे कैदियों को प्रोत्साहित करने के लिए हम कई स्तर पर कार्य चलाते हैं। (नीचे देखें वीडियो)

शेर चंद का यह दावा झूठ साबित होता दिखता है, क्योंकि साफ दिख रहा है कि वे कैदी फेसबुक पर एक बच्चे की फोटो को प्रोफाइल पिक्चर सेट कर रहे थे। वे दोनों अकेले ही थे और वीडियो बनाने वाले ने जब उनसे पूछा तो सकपका गए।

कैदी फेसबुक ही यूज कर रहे थे। यह देखें स्क्रीन पर क्या खुला है।

प्रश्न यह है कि दोनों कैदी अगर पढ़े लिखे थे और उनसे वेबसाइट के लिए भी सेवा ली जा रही थी, तो उस वक्त निगरानी के लिए कोई औऱ वहां मौजूद क्यों नहीं था? हैं तो आखिर कैदी ही, फिर क्या गारंटी की वे इंटरनेट से किसी साजिश को अंजाम नहीं देंगे या किसी अन्य आपराधिक गतिविधि की योजना नहीं बनाएंगे। प्रश्न यह भी है कि जब वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि फेसबुक इस्तेमाल हो रही थी, क्यों जेल सुपरिटेंडेंट झूठ बोल रहे हैं? प्रश्न यह भी है कि अगर आरोप लगाने वाला पुलिसकर्मी भानु पराशर अगर पहले भी अनुशासनहीता कर चुका है, तब इसका मतलब यह नहीं कि वीडियो में जो दिख रहा है कि वह झूठ है।

गौरतलब है कि यह मामला बीएसएफ के जवान तेज बहादुर जैसा होता हुआ दिख रहा है जिसने खऱाब खाने का वीडियो शेयर किया था तो उसके खिलाफ न सिर्फ कार्रवाई हुई थी बल्कि उसे आदतन अनुशासनहीनता करने वाला बता दिया गया था। यहां तक कि अब बीएसएफ ने उसे बर्खास्त भी कर दिया है। प्रश्न यह है कि अगर कोई बार-बार प्रश्न उठाता है तो इसका मतलब नहीं कि वह अनुशासनहीन ही है। कम से कम इस मामले में भानु पराशर ने जो मुद्दा उठाया है, Dvgवह गंभीर है क्योंकि इसी जेल में आईएसआईएस के संदिग्ध को भी रखा गया है। क्या गारंटी है कि कैदियों की मिलिभगत से वह इटरनेट के जरिए अपने आकाओं से संपर्क न साध ले? इस मामले पर विभाग ने तुरंत कार्रवाई करते हुए शिकायतकर्ता भानु पराशर को तो सस्पेंड कर दिया, मगर प्रथम दृष्टया ही जो बड़ी चूक नजर आ रही है, उसके लिए संबंधित बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई। और तो और अब वे अधिकारी खुलेआम झूठ बोल रहे हैं।

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