54 दिनों से लापता वनरक्षक को नहीं ढूंढ पा रही मंडी पुलिस

मंडी।। मंडी ज़िले से एक वनरक्षक पिछले करीब दो महीनों से लापता है, मगर उसका कोई पता नहीं चल पा रहा। घर वाले परेशान हैं और नाउम्मीद से हुए जा रहे हैं। सोचिए, उस परिवार पर क्या बीत रही होगी जिसका अपना हंसी-खुशी एक कार्यक्रम में जाता है और फिर लापता हो जाता है। परिजन थानों के चक्कर काटकर थक जाते हैं, मगर पता ही नहीं चलता कि वह चला कहां गया। 54 दिन से उन्हें यह तक नहीं मालूम कि वह ज़िंदा भी है या नहीं। ये हालात तब हैं जब कुछ ही महीने पहले मंडी के ही करसोग से वनरक्षक होशियार सिंह भी लापता हुआ था और फिर कुछ दिनों बाद उसका शव पेड़ से उल्टा लटका मिला था। इससे पहले पुलिस दावा कर चुकी थी कि उसने जंगल का चप्पा-चप्पा छान मारा है।

धार्मिक यात्रा (जातर) में गए थे कमरूनाग
घटना मंडी के बल्ह की है, जहां रहने वाले वनरक्षक मोहन लाल, जिनकी उम्र 57 साल है मंडी के बड़ा देव कमरूनाग की जातर में शामिल होने गए थे। वापस में वह कुछ दोस्तों के साथ आ रहे थे। कथित तौर पर कुछ दूरी बाद दोस्तों ने देखा कि वह उनके बीच नहीं हैं। इससे उन्होंने सोचा कि वे शॉर्ट कट से अपने घर चले गए होंगे। अगली सुबह उन्हें पता चला कि मोहन तो घर पहुंचे ही नहीं हैं।

जंगल में ढूंढने पर भी हाथ नहीं लगा कोई सुराग
इसके बाद पुलिस, एसडीआरएफ, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, देवता कमेटी और कई स्थानीय लोगों ने किसी हादसे या दुर्घटना या साजिश की आशंका से मोहन लाल को कमरूघाटी में ढूंढने की कोशिश की, मगर कामयाबी नहीं मिली। अक्तूबर के पहले हफ्ते तक तो मीडिया में भी खबरें आती रहीं कि जैसे कि मोहन लाल के मोबाइल की आखिरी लोकेशन घीडी टावर से मिली थी और बाद में फोन स्विच ऑफ है। यह भी पता लगाने की कोशिश की गई कि आखिरी बात उनकी बात किससे हुई। मगर आज तक उनका पता नहीं चल पाया और फिर इलेक्शन आ गए तो मीडिया में भी मोहन लाल का जिक्र होना बंद हो गया। वरना जिस जिले में कुछ दिन पहले ही मोहन लाल जैसा केस हुआ हो, वहां पर एक और वनरक्षक का गायब हो जाना कोई छोटी बात नहीं थी।

पुलिस की जांच से परिवार संतुष्ट नहीं
मोहन लाल का परिवार पुलिस की जांच से संतुष्ट नहीं है। बेटे घनश्याम का कहना है कि प्रशासन पिता को ढूंढने में नाकाम रहा है। उनका कहना है, “कमरूनाग से वापसी पर जो लोग मेरे पिता के साथ थे, अगर उनसे पुलिस सख्ती ये पूछताछ करेगी तो वे लोग कुछ बता सकते हैं। उनके साथ आए चार-पांच लोगों के व्यवहार से शक हो रहा है कि कहीं मेरे पिता के साथ कुछ अनहोनी तो नहीं हुई हो।’

घनश्याम अपने पिता के साथ चल रहे लोगों पर सवाल उठाते हैं कि जब सभी साथ-साथ चल रहे थे तो कैसे केवल एक ही आदमी रास्ता भटक सकता है। साथ ही इन लोगों ने सड़क पर पहुंचने पर भी सभी को क्यों नहीं बताया कि एक आदमी गायब है। घनश्याम ने शक जाहिर किया है कि कहीं उनके पिता की हत्या न कर दी गई हो।

अब भी खाली हाथ है पुलिस
समाचार फर्स्ट पोर्टल के मुताबिक उन्होंने इस मामले में पुलिस का रुख जानना चाहा, मगर आलम यह था कि सुंदरनगर कॉलोनी थाने में फोन किसी ने नहीं उठाया। इसके बाद मंडी के एसपी ऑफिस संपर्क किया गया, जहां से पता चला कि अभी तक मोहन लाल का कोई सुराग नहीं मिल पाया है और बाकी जानकारी पुलिस स्टेशऩ से मिलेगी। थाना प्रभारी का मोबाइल नंबर भी लिया गया मगर वह बंद चल रहा है।

क्या यह केस पहेली बनकर रह जाएगा?
चुनाव से पहले तो जनता से जुड़े हर मुद्दे को राजनीतिक दल लपक ले रहे थे और उसपर खूब रैलियां और विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। मगर अब लगभग दो महीनों से एक वनरक्षक गायब है, मगर राजनीतिक दल न तो रैली न निकाल रहे हैं और न ही सामाजिक संगठन आगे आ रहे हैं। मीडिया में भी यह खबर दब सी गई है। अगर किसी जंगली जानवर ने भी उन्हें दबोचा होता तो क्या ग्रुप में चल रहे लोगों को पता नहीं चलता? सवाल कई हैं मगर जवाब कोई नहीं। एक जीता जागता इंसान गायब हो जाता है और कुछ पता ही नहीं चलता है?

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