आंखों में आंसू ला देगा ‘शहीद वनरक्षक होशियार सिंह का पत्र’

ये जून महीना है और तीन साल पहले इसी महीने मंडी जिले के करसोग में वनरक्षक का शव पेड़ से उल्टा लटका हुआ मिला था। सोशल मीडिया पर सक्रिय रहकर साहित्य और समाज से विभिन्न मुद्दों पर बेबाकी से राय रखने वाले मुक्तकण्ठ कश्यप ने 2018 में एक ‘चिट्ठी’ लिखी थी। यह चिट्ठी है वनरक्षक होशियार सिंह की थी। गरीब परिवार के उस बेटे की, जिसे आज तक इंसाफ नहीं मिल पाया है।

इसी महीने विश्व पर्यावरण दिवस भी मनाया गया। इंसान जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर रहा है, उसका सीधा प्रभाव पर्यावरण पर पड़ रहा है। हमारा हिमाचल प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। इस खूबसूरत राज्य के जंगलों की ही बात करें तो उनके ऊपर दोहरी मार पड़ रही है- जंगल की आग और वन माफिया। ऐसे में होशियार सिंह के नाम से मुक्तकंठ कश्यप द्वारा कविता के रूप में लिखी गई इस चिट्ठी में इस विषय को भी उभारा गया है।

पढ़ें-

बड़का मुक्तकंठ जी
गले मिलना!
जानता हूँ
जहाँ आप हैं
वहां सुख हो नहीं सकता!
इधर देख रहा हूं
सूख रहा है वह देवदार
जिस पर मुझे उल्टा लटके हुए
देखा था सबने आखिरी बार।
दुनिया खुद को दिखाने के लिए
करती है तय
कि कैसे देखा जाए उसे

मैं रोज उस देवदार के पास जाता हूँ
उसे कैल का
रई का
बुरांस का
सबका वास्ता देता हूं
कहता हूं
मुआ! मत सूख!
तू जितना सूखेगा
उतने ही हरे होते जाएंगे वे लोग
जो करते हैं हरियाली का सौदा

पेड़ से उल्टा लटका मिला था होशियार सिंह का शव

रंगों को एक दूसरे के साथ खड़े होना था
एक दूसरे में घुसना नहीं था
सफेद को सफेद
हरे को हरा
काले को रहना था काला।
इसे भी कहता हूं
मत सूख
तेरी जड़ों से बंधी है ज़मीन
इसी जमीन के अंदर पानी है
जिसे पीते आये हैं लोग
मैं उलटा ज़रूर था
गिरा नहीं !
देवदार ने मुझे गिरने नहीं दिया

व्याकरण के जख्म देखो
कुछ लोगों के लिए
गिरना उठने का पर्यायवाची है।
मैं एहलमी बीट में भी घूमा
मैं तारा देवी बीट में भी घूमा
वहां जो भी कुल्हाड़ी चली
उसके हत्थे पर बड़ी मुहर थी
इसलिए उसी जादुई कुल्हाड़ी का असर है
कि कागजों में
केवल झाड़ियां कटीं
सोचता हूँ
जिनके लिए देवदार भी झाड़ियां
उनके पेड़ होते होंगे कैसे पेड़?

तारादेवी में पेड़ कटने पर तत्कालीन वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने कहा था- झाड़ियां कटी थीं, पेड़ नहीं। (Image: Himachal Watcher)

मुझे याद आते हैं बिश्नोई
पेड़ों के साथ चिपक गए थे!
मेरे पुरखे ही रहे होंगे
संवेदना के स्तर पर!
एक चिड़िया बोली
भाई होशियार!
एक खुशबूदार पेड़ के कटते ही
खो गए मेरे अंडे
वह चिड़िया अब गाना भूल गयी है
जिनके लिए जंगल महज झाड़ियां हैं
उन्हें चिड़िया, गौरेया, घटारी का
गाना पहले भी कहाँ सुनाई देता होगा!

ये बेशर्म
जंगल को नंगा करते हैं
मोर कहां नाचे
नाचता है फिर भी मोर
सबके सामने
यह इस मोर के पैर
विभागीय चौकसी की तरह बदसूरत हैं
इसके पंख
मंत्री रहे एक मुचले आदमी के
दांतों की तरह खाली हैं
इस मोर की आँखोँ में
मोतिया उतर आया है
निगरानी की आँखोँ के बादल जैसा!
ये मोर बदसूरत है
तब भी नाचता है

जयराम ने हेल्पलाइन शुरू की मेरे नाम पर
आभार।
मैं अपनी दादी को मिलने वाली
पेंशन में झलकता हूं
पर दादी जानती है
कैसे अब तक रोती है
घुट घुट कर।
यह मुझे उस चिड़िया ने बताया
जो रोज दादी के आंगन में
दाने चुगने जाती है
कल अचानक छत पर एक कौव्वा देख
रो पड़ी दादी!
भैया। दांत उखड़ने पर ही कितना दर्द होता है
मैं तो जिगर था दादी का
फिर भी दादी के पास जिगरा है
दादी इस बात की ज़मानत है
कि होशियार सिंह आते रहेंगे।

होशियार सिंह की दादी

ये कंजरवेटर
ये डीएफओ
ये डिप्टी रेंजर
ये गार्ड
सब खराब नहीं हैं
खराबी यह है कि
कोई ठीक
किसी खराब को खराब नहीं कहता
ज़ुबाँ छिन गई है
शब्द मोनाल हो गए हैं
साहस हो गया है जाजुराणा
खैर!
कब आओगे तुम?
आते हुए कुछ बुरांस के फूल ले आना
चटनी बनाएंगे
एक साथ खाएंगे।
तुम भी अधिक दिन न रहो वहां
खतरा है
कुछ लोगों को मर कर अधिक सुना जाता है
आओ! आओ! जल्दी आओ!
तुम्हारा अनुज
होशियार सिंह
वन रक्षक।

(लेखक मुक्तकंठ कश्यप फ़ेसबुक पर साहित्य और देश-दुनिया के विभिन्न विषयों पर बेबाकी से राय देने के लिए चर्चित हैं)

‘इन हिमाचल’ पर पहली बार इसे पाँच जून, 2018 को प्रकाशित किया गया था। अब इसे फिर से पब्लिक किया गया है।

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