कुल्लू की देवी त्रिपुरा सुंदरी ने ऐसे चुना अपना गुर

कुल्लू।। हिमाचल प्रदेश की देव परंपरा निराली है। बहुत से लोग भले ही इसे अंधविश्वास मानते हों मगर प्रदेश में ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है जिनका मानना है कि कोई न कोई शक्ति तो है। वैसे भी देव परंपराओं से जुड़ी कुछ बातें ऐसी हैं जो सोचने पर मजबूर करती हैं। उदाहरण के लिए देवी-देवताओं की पालकियां जो आज हम देखते हैं, वे कई साल पुरानी हैं। उनके कई पुजारी रहे, जिन्हें गुर कहा जाता है, और उनके इस दुनिया के चले जाने के बावजूद नए पुजारी आते गए। माना जाता है कि देवता अपने गुर के माध्यम से ही संवाद करते हैं। किसी एक गुर के गुजर जाने के बाद देवता नया गुर किसे चुनता है, यह बहुत दिलचस्प बात है। ऐसा ही देखने को मिला है देवी बाला त्रिपुरा सुंदरी के साथ। बताया जा रहा है कि देवी ने अपना नया गुर चुन लिया है।

कुल्लू जिले के धरोहर गांव नग्गर के नीलकंठ भारद्वाज को देवी त्रिपुरा सुंदरी ने अपना गुर चुन लिया है। 37 साल के नीलकंठ कहते हैं कि कुछ दिन पहले घर में रात को सोए और फिर उन्होंने आधी रात के समय स्वयं को चंद्रखणी में पाया। उन्हें सब कुछ एक सपने जैसा लगा। अचानक देवी त्रिपुरा सुंदरी का ध्यान आया और मैं समझ गया कि मैं यहां क्यों आया हूं।

आगे नीलकंठ बताते हैं, ‘बस फिर क्या था मैंने देवी के आदेशानुसार अपना कार्य किया और सुबह जगती पट परिसर में जा पहुंचा। वहां पर सभी देव कारकून एकत्रित हुए और मुझे देवी त्रिपुरा सुंदरी के गुर के रूप में चुन लिया गया। खास बात यह है कि चंद्रखणी जोत तक पहुंचने के लिए करीब 5-6 घंटों तक घने जंगलों के बीच से खड़ी चढ़ाई तय करके जाना पड़ता है। दिन के समय भी इन घने जंगलों से गुजरने से लोग कतराते हैं। आज से एक साल रहले आधा दर्जन छात्र चंद्रखणी क्षेत्र में भटकने के बाद फंस गए थे और हेलिकॉप्टर के जरिए रेस्क्यू किया गया था।

इस मामले में हिंदी अखबार पंजाब केसरी की रिपोर्ट कहती है कि एक व्यक्ति रात को भोजन करने के बाद अपने घर में सोया और आधी रात को उसने खुद को एक ऊंची पहाड़ी पर पाया। कुछ पल के लिए उस व्यक्ति सोचा कि जिस जगह वह आधी रात को खड़ा है यहां तक पहुंचने के लिए तो कई घने जंगलों को पार करना पड़ता है। आखिर वह यहां पहुंचा कैसे। फिर वह महसूस करता है कि वह देवी बाला त्रिपुरा सुंदरी के एक कार्य को पूरा करने के लिए देवी के आदेश पर ही यहां आया है।’

आगे लिखा है कि देवी के बताए गए कार्य को पूरा करने के बाद वह शख्स कुछ बुरांस के फूल, बेठर (धूप की पत्तियां) व कुछ जड़ी-बूटियां हाथ में लेकर वहां से वापस लौटता है। ब्रह्म मुहूर्त में जब वह घने जंगल से निकलकर रुमसू गांव से गुजरता है तो ग्रामीण उस शख्स को देखते हैं। फिर खबर फैल जाती है कि देवी बाला त्रिपुरा सुंदरी ने अपना गुर चुन लिया है। आगे अखबार लिखता है- ‘जी हां, यह कोई सपना नहीं बल्कि सत्य है।’ बहरहाल, हम इस बात की पुष्टि तो नहीं करते मगर प्रदेश में देव परंपराओं को लेकर कई बातें ऐसी हैं जिनकी साइंटिफिक एक्स्प्लनेशन नहीं है।

कठिन नियमों का पालन करना होगा नीलकंठ को
नीलकंठ देवी के गुर तो बन गए मगर अब उनका जीवन बदलने वाला है। देवी बाला त्रिपुरा सुंदरी को कुल्लू के राज परिवार की 5 कुल देवियों में सबसे ज्येष्ठ माना जाता है। देवी का गुर बनने वाला व्यक्ति कई नियमों में बंधता है। वह अपने सगे संबंधी की मृत्यु पर मुखाग्नि तक नहीं दे सकता, शोक समारोह में शामिल नहीं हो सकता और घर पर शिशु का जन्म हो तब भी बाहर की वक्त बिताना पड़ेगा।

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