प्रदेश डूबा है कर्ज में, ऊर्जा मंत्री ने सरकारी पैसे से खरीदी नई SUV

शिमला।। विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए और वर्तमान ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा ने पहले से दो सरकारी गाड़ियां मिली होने के बावजूद एक नई एसयूवी खरीद ली गई है। और इसके लिए उस बिजली बोर्ड का सहारा लिया गया है जो घाटे में है।

जिस प्रदेश पर लगभग 5,00,00,00,00,000 रुपये का कर्ज हो, उस प्रदेश की सरकार पर जिम्मेदारी बनती है कि वह इस कर्ज को चुकाने के रास्ते तलाशे। चूंकि हिमाचल प्रदेश के पास आय के स्रोत कम हैं, ऐसे में कर्ज चुकाने में सरकार के उन विभागों की जिम्मेदारी ज्यादा बनती है, जो प्रदेश के लिए कमाई करते हैं। ऊर्जा मंत्रालय भी ऐसे ही मंत्रालयों में से एक है क्योंकि हिमाचल प्रदेश में पन बिजली की अपार संभावनाए हैं। ऐसे में सरकार के ऊर्जा मंत्रालय पर जिम्मेदारी बनती है कि वह इस कर्ज को चुकाने में मदद करे। मगर लगता नहीं कि मंत्री इसे लेकर गंभीर हैं।

रास नहीं आई फॉर्च्यूनर
जीएडी की ओर से अनिल शर्मा को महंगी एसयूवी फॉर्च्यूनर मिली हुई थी मगर अब वह एंडेवर की सवारी करेंगे, जिसकी कीमत लगभग 30 लाख रुपये है। चूंकि जीएडी पहले से ही गाड़ी मिली होने के कारण उन्हें नई गाड़ी नहीं मिल सकती थी, इसलिए इसकी काट निकालते हुए बिजली बोर्ड से यह गाड़ी खरीदवाई गई।

घाटे में है बिजली बोर्ड
राज्य का बिजली बोर्ड पहले से ही लगभग दो हजार करोड़ रुपये के घाटे में चल रहा है और हर साल यह घाटा करोड़ों में बढ़ रहा है। इसलिए क्योंकि बोर्ड के पास कमाई के साधन कम हैं। सरकार ने इसी कारण इस बार बजट में बोर्ड को आर्थिक मदद दी थी मगर इस बोर्ड ने आखिर क्यों महंगी गाड़ी खरीदकर मंत्री को सौंप दी?

मंत्री को पहले ही जीएडी से फॉर्च्यूनर मिली हुई है।

करोड़पति हैं अनिल शर्मा
अनिल शर्मा ने 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग को अपनी चल-अचल संपत्ति का जो ब्योरा दिया था, उसके मुताबिक उस समय उनके बैंक खातों में 2 करोड़ 50 लाख 76 हजार रुपये थे और इससे पिछले वित्त वर्ष (2016-2017) में उन्होंने अपनी सालाना आय 68 लाख रुपये दिखाई थी। पत्नी के नाम पर 74 लाख रुपये जमा थे। अचल संपत्ति की बात करें तो अनिल शर्मा के पास उस समय 16 करोड़ 30 लाख रुपये और उनकी पत्नी के पास 20 करोड़ 70 लाख रुपये की संपत्ति थी। पति-पत्नी की कुल चल-अचल संपत्ति 40 करोड़ रुपये है।

उनकी संपत्ति का ब्योरा इसलिए दिया गया है ताकि यह बताया जा सके कि हमारे राजनेता अगर संपन्न हैं और वे वाकई जनसेवा के मकसद से आए हैं तो उन्हें सरकारी पैसे का खर्च घटाकर मिसाल पेश करनी चाहिए। अगर उन्हें एसयूवी की इतनी ही जरूरत थी  तो फॉर्च्यूनर तो थी ही। और अगर इससे दिक्कत थी, असुविधा हो रही थी तो और नई गाड़ी शौक था तो उन्हें जनता के पैसे से गाड़ी खरीदवाने के बजाय अपने पैसों से गाड़ी खरीदनी चाहिए थी।

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बता दें कि सरकार के और मंत्री भी हैं जो सड़कों की खराब हालत का हवाला देकर नई एसयूवी की मांग कर रहे हैं। लेकिन प्रश्न उठता है कि जब आपको सड़कों से दिक्कत है तो गाड़ी खरीदनी चाहिए या सड़कों की हालत सुधारनी चाहिए? आप जिस जनता की सेवा के लिए चुने गए हैं, उसे तो एसयूवी नहीं मिलेगी। लेकिन आपको एसयूवी चाहिए और वह भी जनता के पैसे से। यह शर्मनाक नही तो और क्या है?

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