हॉरर एनकाउंटर: सफेद दाढ़ी वाले उस बुजुर्ग ने कहा, मुझे बचा लो….

  • देवेंदर शर्मा

बात उन दिनों की है, जब मंडी के दूर-दराज के जंजैहली के एक गांव में मेरी पोस्टिंग हुई थी। 1981-82 तक मैं वहां अध्यापक के तौर पर रहा। नई-नई नौकरी लगी थी। गांव में उन दिनों किराए के मकान नहीं मिला करते थे, क्योंकि लोगों ने गुजारे लायक ही कमरे बनाए होते थे। बड़ी मुश्किल से मुझे गांव के आखिरी सिरे में एक घर मिला, जहां रहने वाले मंडी शहर में शिफ्ट हो गए थे। घर पुराना था और मिट्टी का बना था, मगर रहने लायक था। आसपास कोई घर नहीं और कुछ सालों से कोई रहता नहीं था तो आसपास के खेतों में पेड़ पौधे उग आए थे। आंगन खुला था और नीचे एक नाली बहती थी। बरसात के दिनों में नजारा खूबसूरत लगता था। समस्या एक ही थी कि नाला जहां से मुड़ता था, वहां पर श्मशान घाट था। पूरे इलाके के लोग वहां आते थे, जब कभी किसी का देहांत होता। घर ऊंचाई पर था तो दहलीज से ही नीचे का सब कुछ दिख जाता था। मगर यह कोई बड़ी बात नहीं थी, घर मिलना मुश्किल था। और कोई चारा भी तो नहीं था।

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तस्वीर प्रतीकात्मक है।

मैं रोज स्कूल से शाम को आता और सुबह चला जाता। मुझे यहां रहते साल भर हो गया था। एक बार मेरे दोस्त, जो कि मंडी कॉलेज में पढ़ाता था, मेरे यहां आने की इच्छा जताई। वह शनिवार को आया और साथ में थोड़ी शराब भी लाया था। रात को हमने खाया-पिया और सो गए। अगले दिन स्कूल की छुट्टी थी, इसलिए बेफिक्री से सोए रहे। सुबह का वक्त रहा होगा 6-7 बजे का। किसी ने दरवाजा खटखटाया। चूंकि मेरे क्वार्टर से बाकी लोगों के घर कम से कम आधा एक-किलोमीटर थे, इसलिए मैं चौंका कि कौन आ गया इतनी सुबह। खिड़की से थोड़ी-थोड़ी रोशनी दिखी बाहर। मैंने दोस्त को आलस में कहा कि भाई दरवाजा खोल। वह उठा और दरवाजा खोलने गया, मैंने चादर सिर पर ओढ़ ली ताकि दरवाजा खुलने पर लाइट आंखों में न चुभे।

मैंने सुना कि वह कुछ बात कर रहा है किसी में। इतने में जोर से आवाज सुनाई दी दोस्त की- देवेंदर उठ। मैंने उठकर देखा और बोला कि क्या हुआ। रजाई हटाकर देखा कि दरवाजे के अंदर खड़ा दोस्त बाहर की तरफ देखकर हक्का-बक्का सा खड़ा है। इससे पहले कि मैं कुछ कहता, दोस्त बोला- देवेंदर उठ। मैंने बोला क्या हुआ और तुरंत दौड़ता हुआ सा दरवाजे पर पहुंचा। देखा कि बाहर एक बूढ़ा व्यक्ति खड़ा है, जिसके सिर पर कोई बार नहीं मगर बहुत लंबी सफेद दाढ़ी थी और उसमें गेंदे के फूल की पंखुड़ियां फंसी हुई थी और हाथ में लाल रंग का चमकीला कपड़ा था।

मैंने कहा- हां जी बोलो।
बूढ़ा बोला- बेटा मेरेको बचा लो।
मैंने कहा कि क्या हुआ, किससे बचा लो।
बूढ़ा नीचे की तरफ इशारा करते हुए बोला- वो लोग जला रहे हैं मेरे को, बचा लो मेरेको।

उसका यह कहना था कि मेरी नजर नीचे नाले की तरफ गई। देखा कि वहां बहुत से लोग जुटे हुए हैं। साफ था कि किसी की मौत हुई थी और वे उसका अंतिम संस्कार करने वहां आए थे। जैसे ही मैंने उसकी बात सुनी और नीचे का मंजर देखा, मेरा दिल धक्क से बोल गया। मेरे हाथ पांव फूल गए। क्या यह नीचे जलाए जा रहे किसी बूढ़े की आत्मा है? वहां के बुजुर्गों से सुना था कि जंगल में भूत रहते हैं। कुछ किस्से भी सुने थे, इसलिए डर लग गया। कुछ समझ में हीं नहीं आ रहा था कि क्या करें, क्या नहीं। इतने में मेरा दोस्त बोला तो हमारे पास क्यों आए हो, किसी और के पास जाओ, हम क्या करें।

इतने में उस बूढ़े ने जेब से कुछ निकाला और बोला- बाकियों के पास भी जाऊंगा, ये गोली उनके आर-पार कर दूंगा।

पता नहीं उसके हाथ में क्या था और कैसी गोली आर-पार करने की बात कर रहा था वो। मैं तो सन्न था। जैसे ही उसने ये कहा, मेरे दोस्त ने जोर से गाली देते हुए कहा-  हरामजादे कौन है तू और दरवाजे के पास टिकाकर रखा छाता (पुराना वाला, जिसमें हत्था होता था) उठाकर उसे मारने दौड़ा। बूढ़े ने यह देखा और वह पलटा और नीचे की तरफ भागने लगा। बूढ़ा आगे-आगे और मेरा दोस्त पीछे-पीछे। मैं डर रहा था लेकिन दोस्त के पीछे मैं भी दौड़ लिया। बूढ़ा बड़ी तेजी से नीचे की ओर भागा और खेत खत्म होने पर सुरू होने वाले जंगलों में घुस गया। मैंने जोर से आवाज लगाई और अपने दोस्त को आगे जाने से रोक दिया।

हम दोनों का दम फूल चुका था। हम यह देखते हुए वापस घर की तरफ लौटे कि कहीं वह बूढ़ा वापस न आ रहा हो। इस बीच तक नीचे चिता को आग लगा दी गई थी। हम दोनों की बुरी हालत थी। एक-दूसरे से कुछ भी कहने की हालत में नहीं थे। मैंने कमरे में ताला लगाया और रास्ते से पास के गांव की तरफ चल दिया। मन में तरह-तरह के ख्याल आए कि वह क्या था। भगवान का भी शुक्रिया अदा किया कि आज तो बचा लिया। रास्ते में ही दो-तीन लोग मिले, जो शायद श्मशान घाट की तरफ जा रहे थे। उनमें एक दुकानदार भी था, जिससे मैं राशन लिया करता था। मुझे हांफता और दौड़ता देख वे लोग रुक गए।

इससे पहले कि वे लोग कुछ बोलते, मैंने एक सांस में पूरी कहानी उन्हें सुना दी। मैंने उन्हें बताया  कि ऐसे-ऐसे एक बंदा आया और उसने ऐसा कहा। हमारी बात को वे तीनों लोग बड़ी ध्यान से सुन रहे थे। दुकानदार ने पूछा कि सफेद रंग की दाढ़ी थी क्या उसकी बड़ी सी।

जैसे ही उसने ये सवाल पूछा, मन में शंका पैदा हुई कि जिस शख्स की चिता को ये लकड़ी डालने जा रहे हैं, उसी की लंबी दाढ़ी रही होगी। मैंने कहा हां- यह सुनकर उन तीनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और जोर-जोर से हंसने लगे। अब मैं और डर गया। मुझे लगा कि शायद ये भी भूत प्रेत हैं और अब ठहाका लगा रहे हैं। मैंने दो कदम पीछे हट गया और भागने की तैयारी में ही था कि दुकानदार बोला- मास्टर साहब, आप भी कमाल करते हो, मास्टर होकर भूतों पर भरोसा करते हो।

मैंने कुछ नहीं कहा। दुकानदार के साथ वाला बंदा बोला- अरे वो बगल वाले गांव का एक पागल बूढ़ा है। उसके दिमाग में फर्क है। दिन-भर इधर-उधर घूमता रहता है, कभी जंगल में कभी श्मशान घाट में तो कभी कहां। रोज नए ड्रामे करता है। रात को अपने घर पहुंचता है बेटे के पास, वहां खाना खाता है, रात को सोता है, सुबह खाना खाता है और दिन भर फिर इधर-उधर घूमकर अजीब हरकतें करता है।

हमारी हालत पर वे तीनों लोग ठहाके लगाने लगे। यह सुनकर मुझे और मेरे दोस्त को राहत की सांस भी आई और शर्मिंदगी भी हुई। हम दोनों बहुत झेंपे और शर्मिंदगी से बचने के लिए उनके साथ हंसने लगे। इतने में पता चला कि गांव की किसी बुजुर्ग महिला की मौत हुई है, जिसका अंतिम संस्कार किया जा रहा है। इसके बाद वे श्मशान घाट की तरफ चल दिए और हम अपने उस घर की तरफ।

जानता हूं कि ये हॉरर कहानी नहीं है, मगर मेरे लिए यह पूरा घटनाक्रम तब तक हॉरर रहा, जब तक बूढ़े की सच्चाई पता नहीं चल गई। वैसे बाद में वह बूढ़ा कई बार मिला। एक दो बार शाम को मेरे यहां आकर बैठा और मैंने उसे कुछ खाने को भी दिया। फिर कभी उसने मेरे साथ ऐसी हरकत नहीं की, मगर वह हवा में बातें करता रहता था और सड़क से पत्थर उठाकर जेब में रखता रहता था। आज भी इस कहानी को मैं और मेरा वह दोस्त खूब चाव से सुनाते हैं। आज भी अंदर तक गुदगुदा जाती है इस घटना की याद।

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(लेखक चंबा के हने वाले हैं और शिक्षा विभाग से रिटायर होने के बाद इन दिनों अपने पैतृक गांव में रहते हैं। फेसबुक के जरिए उन्होंने यह वाकया हमें भेजा)

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