‘उस रात जंगल से कोई और चीज़ भी मेरे साथ कमरे तक चली आई थी’

  • इरफान (बदला हुआ नाम)

मैं नाहन, जिला सिरमौर हिमाचल प्रदेश का रहने वाला हूं। यह वाकया साल 2007 का है। मै ITI का एक साल का डिप्लोमा (COPA ) करने हेतु तहसील शिलाई में था। मूलतः मैं नाहन का रहने वाला हूं।

बात वर्ष 2007 की है। T20 वर्ल्ड कप चला हुआ था। उस दिन भारत और पाकिस्तान का फाइनल मुकाबला था। मैं अपने ITI के दोस्तों के साथ बार (एक होटेल, जहां डिप्लोमा करने के दौराम हम किराए पर रहते थे) में बैठा इस रोमांचकारी मैच का लुत्फ़ उठा रहा था। मुझे आज भी वो पल याद है जब प्रवीण कुमार की आखिरी गेंद पर मिसबाह-उल-हक़ का कैच लपका गया था। भारत ने पाकिस्तान को हराकर वर्ल्ड कप जीत लिया था और हम सभी ज़ोर-शोर से इसका जश्न मना रहे रहे थे। हमने बार मे खूब सेलेब्रेट किया और फिर एक खाली टिन का कनस्तर लेकर उससे पीटते हुए माल रोड पर निकल पड़े।

हममें से कुछ नशे मे थे और खुशी को सेलिब्रेट कर रहे थे। रात के करीब 12:45 का वक़्त रहा होगा। लोग हमें घरों से बाहर निकलकर देख रहे थे। काफी मज़ेदार नज़ारा था वो भी। हम पूरे शिलाई धार पर घूमते हुए नारे लगाते हुए वापिस अपने अपने रूम लौटने लगे। करीब 1:15 मिनट पर मैंने अपने दोस्तों से विदा ली। मेरा कमरा बार (होटल) की तीसरी मंज़िल पर था होटल मालिक का नाम विकास तोमर (बदला हुआ नाम) था। मेरे सभी ITI के दोस्त 2 या 3 के जोड़ों मे रहते थे, पर मेरे पास कोई रूम पार्टनर नहीं था तो मैं अकेले ही रहता था। अकेले रहना मुझे पसन्द भी था। दूसरी मंज़िल पर एक सरदार जी रहते थे जिनकी शिलाई में ही एक कपड़े की दुकान थी। साथ ही एक फैमिली भी रहती थी जो दिल्ली की रहने वाली थी।

खैर, दोस्तों से विदा लेकर मैं अपने कमरे की ओर सीढ़ियां चढ़ने लगा और कमरे में पहुंचकर सीधा बेड पर लेट गया। मैंने अपने जूते भी नही उतारे थे और आंखें बंद करके उस शाम की बातें याद करता हुआ मन ही मन खुश हो रहा था। तभी मुझे बंद आंखों में रोशनी का अहसास हुआ जैसे किसी ने लाइट्स जला दी हों कमरे की। मैंने हल्की आंखें खोलकर देखा कि कमरे से अटैच सामने वाले बाथरूम से यह तेज रोशनी आ रही है। रोशनी ऐसी थी जैसे किसी ने हज़ारो बल्ब जला दिए हो। मैंने एक पल सोचा शायद ये किसी गाड़ी की हेडलाइट की रोशनी है क्योंकि मेरा कमरा तीसरे माले पर था। सामने दूर ट्रकों की लाइट किसी मोड़ पर मुड़ते वक्त मेरे कमरे से टकरा जाया करती थी। मगर ये रोशनी अजीब थी। अजीब इसलिए क्योंकि पहली बात तो ये क्योंकि ये बहुत ज्यादा थी दूसरी ये कि ये रोशनी हट नही रही थी, जैसे अक्सर गाड़ियो के गुज़रने क बाद चली जाती है।

मैं टकटकी लगाए उस रोशनी को देख रहा था। धीरे-धीरे वो रोशनी बहुत ज्यादा हो गई। मेरा कमरा पूरा रोशनी से भर गया। ऐसा लग रहा था जैसे कमरे के अंदर किसी ने सूरज ही रख दिया है। अब मुझे घबराहट हुई। मेरी सांसें और धड़कनें बढ़ने लगी थीं, मगर उस वक्त मेरी हालत ही खराब हो गई जब काला सा कोई साया उस रोशनी के बीच खड़ा नजर आया। देखने में तो वह किसी औरत जैसा मालूम हो रहा था। बाल खुले से दिख रहे थे मगर कोई और अंग या चेहरा नहीं दिख रहा था क्योंकि रोशनी बहुत ज्यादा थी। कदम लगभग 6 फुट ही रहा होगा।

तस्वीर प्रतीकात्मक है।

मैं समझ गया कि यह कोई चुड़ैल वगैरह है, क्योंकि बचपन में खूब सुना था कि चुड़ैलें वगैरह होती हैं। मै ज़ोर से चिल्लाना चाहता था मगर चिल्ला नही पा रहा था। उठकर भागना चाहता था मगर हिल भी नही पा रहा था। मुझे लग रहा था कि ये आगे बढ़ेगी और अब मुझे मार डालेगी। मगर वह वहीं खड़ी रही। मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी थी कि मुझे दिल अपने चेहरे पर धड़कता हुआ लग रहा था। खुद को पूरी तरह असहाय पाकर डर के मारे मैंने अपनी आँखे बंद कर लीं और क़ुरान शरीफ की एक आयत जिसका नाम “आयतुल कुर्सी” है, ज़ोर-ज़ोर से मन पढ़ने लगा। क़ुरान की ये आयत ठीक वैसी ही है, जैसे हिन्दू धर्म मे हनुमान चालीसा। मुझे इस आयत का मुक़ाम पता था कि इस आयत को पढ़ने से भूत-प्रेत पास नही आ पाते। जैसे-जैसे मैं मन आयतुल कुर्सी पढ़ने लगा, उस साए ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया। अब मैं सुन सकता था कि मेरे मुंह से आवाज भी निकल रही है। थोड़ी हिम्मत बढ़ी और मैं लगातार उस आयत को पढ़ता जा रहा था।

धीरे-धीरे उस साए ने दरवाज़ा पीटना बंद कर दिया। मौसम ठंडा था लेकिन में पूरी तरह पसीने से तर-ब-तर था। इसके बाद मैंने आंखें बंद कीं और रजाई में घुसकर खुद को पैक कर लिया। उस रात मैंने क़ुरान की यह आयत न जाने कितनी बार पढ़ी होगी। न जाने कब मुझे नींद आ गई। बस इतना जानता हूं जब मैंने आंख खोली तो सुबह हो चुकी थी। लेकिन मेरी ज़ुबान लगातार वही आयत पड़ रही थी। जब सूरज निकला और पक्षियों के चहचहाने की आवाज़ मेरे कानों मे पड़ी, मैंने धीरे से रजाई से थोड़ा गैप बनाकर बाथरूम पर नजर डाली वहां कोई नहीं था।

(तस्वीर प्रतीकात्मक है।)

मैं उठा और देखा कि बाथरूम में राख जैसा कुछ पड़ा हुआ है। मैंने तुरंत दरवाजा खोला और नीचे सड़क पर पहुंचा। लोगों को ये बात बताई तो उन्होंने पंडित सेवाराम (बदला हुआ नाम) के पास जाने को कहा। मैं उनके पास गया और उनको सारी बात बताई। वो भी मेरे साथ आ गए। उन्होंने कुछ मंत्रों का उच्चारण करते हुए उस राख को वहा से हटा दिया। पूरा मामला समझने पर उन्होंने मुझे बताया कि रात को जो महिला का साया आया था, वह मसान थी। इस मसान को किसी व्यक्ति ने किसी का अनिष्ट करने के लिए छोड़ा था, मगर उस व्यक्ति ने अपना सुरक्षा कवच बनाया हुआ था पहले ही। इसलिए यह भटक रही थी और भटकते हुए रात को तुम्हारे साथ तुम्हारे कमरे में आ पहुंची। पंडित जी ने यह भी बताया कि यह तुमने अच्छा किया जो क़ुरान शरीफ की आयत पढ़ने लगे और इसी वजह से बच पाए वरना कुछ भी हो सकता था।

आज भी उस घटना को याद करता हूं तो सिहर उठता हूं। कृपया मेरा नाम न लिखा जाए, क्योंकि अब मैं एक अध्यापक हूं। इसलिए मैं नहीं चाहता कि समाज मे एक गलत संदेश जाए। बस यह मेरी आपबीती है, इसलिए शेयर कर रहा हूं।

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(लेखक के अनुरोध पर हमने उनका और कहानी से संबंधित व्यक्तियों के नाम बदल दिए हैं।)

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