हॉरर एनकाउंटर: कभी नहीं भूल पाऊंगा बैजनाथ-पपरोला ब्रिज पर हुआ वह अनुभव

  • अनंत त्रिवेदी

मैं उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से हूं और गुड़गांव में एक सॉफ्टवेयर डिवेलपर हूं। इन हिमाचल पेज को पिछले दिनों लाइक किया था। बीच में यहां भूत से जुड़ी कुछ कहानियां पढ़ीं तो पुरानी याद ताजा हो गई। बहुत दिनों से लिखने की सोच रहा था, आज वक्त निकालकर लिख रहा हूं। किस्सा हिमाचल प्रदेश से ही जुड़ा हुआ है। बात 7-8 साल पुरानी है। चंडीगढ़ में पढ़ाई कर रहा था। मेरे आजमगढ़ के ही कुछ दोस्त दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने प्लान बनाया कि बिलिंग चलो, वहां पर पैराग्लाइडिंग होती है। घूम आएंगे और मजा भी आएगा। अचानक योजना बनी और वे तीन लोग बिलिंग चले गए। मुझे जब पता चला कि वे लोग हिमाचल जा रहे हैं तो मैंने भी इच्छा जताई। वे लोग तय प्रोग्राम के तहत बस से निकलने वाले थे, इसलिए मैने कहा कि एक दिन बाद मै खुद चंडीगढ़ से आ जाऊंगा।

नवंबर का महीना था और दोस्त लोग हरियाणा रोडवेज की बस से दिल्ली से बैजनाथ गए। एक दिन वे बिलिंग और चौगान वगैरह घूमे और आसपास कोई होटेल न मिलने पर शाम को बैजनाथ आ गए। उसी शाम को मैं चंडीगढ़ से निकला। मैंने पहले धर्मशाला जा रही एक बस पकड़ी, मगर ऊना के पास उसका टायर पंक्चर हो गया। इसी ने मेरा सारा प्लान चौपटकर दिया। मैंने सोचा था कि वक्त पर कांगड़ा उतर जाऊंगा और वहां से कोई बस पकड़ लूंगा बैजनाथ के लिए। मगर धर्मशाला जा रही उस बस ने मुझे रात के करीब 1 बजे कांगड़ा उतारा। वहां से कोई भी बस बैजनाथ पालमपुर साइड को नहीं मिली। किसी ने बताया कि बसें सुबह चलेंगी, बेहतर होगा कि किसी ट्रक वगैरह को हाथ देकर लिफ्ट ले लो। मैं ऐसे ही खड़ा रहा और आधे घंटे के बाद मुझे एक जीप वाले लिफ्ट दे दी। यह ड्राइवर उत्तराला जा रहा, जिसके लिए बैजनाथ से पहले पपरोला से ही लिंक चला जाता है। उसने कहा कि मैं पपरोला मार्केट में छोड़ दूंगा आपको, बाकी आपको खुद जाना होगा आगे।

रात को सड़कें खाली थीं और ड्राइवर पूरी स्पीड से गाड़ी दौड़ा रहा था। करीब 45 मिनट में उसने एक कस्बे के बीच ब्रेक लगाई और बोला कि आ गया पपरोला, अब आप या तो किसी गाड़ी का इतजार कर लो या फिर पैदल निकल जाओ सीधे रेलवे ब्रिज से। मैंने कहा कि जी मेरेको पता नहीं है, आप पैसे ले लो और मुझे छोड़ दो। ड्राइवर ने कहा कि भाई पैसों की बात नहीं है, मुझे बहुत जरूरी काम है और मैं खुद पठानकोट से भागा-भागा आ रहा हूं। उसने मुझे बताया कि ज्यादा दूरी नहीं। उसने बताया कि सामने जाओ, सड़क से नीचे को रास्ता दिखेगा, चांदनी रात है एकदम, रेलवे पुल पार करो और खड़ी चढ़ाई है। सीधे मार्केट में पहुंचोगे और वहां पर होटेल में पहुंच जाना।

पाठकों की जानकारी के लिए- बैजनाथ और पपरोला दो कस्बे हैं, जो बिनवा नदी के दोनों आमने-सामने वाले किनारों पर बसे हैं। दोनों के आखिरी सिरों के बीच मुश्किल से सड़क मार्ग से 400 मीटर की दूरी है, मगर पैदल यह दूरी 200 मीटर होगी। बस आपको शॉर्टकट मारते हुए रेलवे ब्रिज से रास्ता तय करना होगा। ऊपर दी गई तस्वीर में वह पुल है और साथ में बैजनाथ मार्केट की ओर जा रहा पैदल रास्ता दिख रहा है।

यह कहकर मुझसे ड्राइवर ने विदा ली और वहां से ऊपर की तरफ जा रहे एक लिंक रोड पर निकल गया। चांदनी रात थी और शहर में सन्नाटा था। दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा था। कोई गाड़ी भी नहीं गुजर रही थी कि लिफ्ट मांगी जाए। स्ट्रीट लाइट्स भी दूर-दूर थीं। खैर, मैंने उस दिशा में बढ़ना शुरू किया, जिस तरफ ड्राइवर ने इशारा किया था। कस्बे के खत्म होते ही खूबसूरत नजारा था। चांदनी रात थी और एक तरफ नदी बह रही थी। नदी में बहते पानी का मस्त संगीत सुनाई दे रहा था। खड्डे के पत्थचर चमकते हुए बहुत शानदार लग रहे थे। सामने दो पुल दिखाई दिए। एक सड़क वाला और उससे नीचे रेल का। पहले सोचा कि रेल के पुल से चलूं, मगर फिर सोचा कि वहां अंधेरा है और ऊपर से रास्ते में कोई जंगली जानवर मिल सकता है। इसलिए बेहतर है कि सड़क से चलूं क्योंकि गाड़ियां आती-जाती रहती होंगी तो जानवर वगैरह नहीं मिलेंगे। झाड़ियों वाले रास्ते मे सांप वगैरह भी हो सकते हैं। ऊपर से स्ट्रीट लाइट भी जल रही थी एक सड़क वाले पुल पर।

मैं तेज कदमों से बढ़ चला। जैसे ही पुल के पास पहुंचा, रेल के पुल की तरफ देखा। चांदनी रात में कितना प्यार लग रहा था वो नजारा। मगर मेरा ये सारा उत्साह उस वक्त गायब हो गया, जब मैंने किसी चीज़ को पुल के नीचे की तरफ लटके हुए देखा। पहले मन किया कि दोबारा उधर न देखूं, कयोंकि पता नहीं क्या था और समझ भी नहीं आया था। मगर डर और एक्साइटमेंट के मिले-जुले भाव से मैंने देख ही लिया। गौर करने पर पाया कि ऐसा लग रहा था कि कोई महिला पुल पर नीचे लटकी हुई है। मतलब साफ-साफ नहीं दिख रहा था, मगर धुंधला सा, स्लेटी से रंग का कुछ और जैसे बाल लहरा रहे हों और वह भी उल्टे। सच कहूं तो मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि वह महिला थी या कुछ और, लेकिन मेरे प्राण सूख गए। शरीर में झुरझुरी दौड़ गई और भागने को दिल चाहा लेकिन घबराहट में पता नही ंक्या हो रहा था। इतने में सामने से एक गाड़ी आती हुई दिकाई दी, जिसकी हेडलाइट नहीं जल रही थी। मारुति रही होगी सफेद रंग की। मैं आगे बढ़ा और उसे हाथ दे दिया।

गाड़ी मेरी बगल में रुकी और मैंने आव-देखा न ताव, झट से उसका दरवाजा खोलने लग गया और बोल रहा जल्दी चलो, यहां से। मैंने कार का दरवाजा खोला और उसमें बैठ गया और ड्राइवर को बोलने लगा कि जल्दी चलो यहां से। मैंने देखा कि आगे वाली साइट पर एक एक बुजुर्ग बैठा है और ड्राइवर की सीट पर अधेड़ सा एक मर्द। मेैं पीछे वाली सीट पर बैठा हुआ था, वहां पर एक महिला बैठी हुई थी। मैं बोला चल क्यों नहीं रहे, अचानक वे सब लोग एक-दूसरे की तरफ देखने लग एकटक लगाकर। मैं पहले से डरा हुआ था और अब मेरी हालत और खराब थी। मैं समझ गया कि मामला गड़बड़ है। मैंने भागने के लिए कार का दरवाजा खोला ही था कि वे लोग बहुत अजीब सी आवाज में रोने लग गए। दरवाजा खुल चुका था और मैं बेतहाशा भाग रहा था। उनकी आवाजें और तेज हो रही थीं। मैं दौड़ा और पुल पार करते ही नीचे की तरफ मंदिर का दिखा, वहां भाग गया और जोर-जोर से दरवाजा पीटने लगा। अंदर दो साधु निकले और उन्होंने पहले तो गालियां दी कि मैं इतनी रात को क्या कर रहा हूं। मैंने घबराकर उन्हें पूरी बात बताई तो उन्होंने अंदर बिठाया। पानी पिलाया, भभूत खिलाई और मुझे बोला कि कुछ नहीं हुआ, घबराओ मत।

पाठकों की जानकारी के लिए इन हिमाचल ने वह तस्वीर ढूंढी, जिससे लेखक की बताई बात समझी जा सके। उन्हें ऊपर वाले पुल से नीचे रेलवे पुल में कुछ दिखा था। बाद में वह भागकर सड़क के नीचे (बाएं) दिख रहे लाल रंग के ट्रक वाली तरफ भागे थे, यहीं एक मंदिर है जहां आजकल गोशाला बनी हुई है।

मैं कांप रहा था और रो रहा था। उनमें एक बुजुर्ग से दिख रहे साधु ने कहा कि कुछ नहीं हुआ तुम्हें, वहम हो गया। यह कहते हुए उन्होंने मोरपंखे से कुछ मंत्र पढ़ते हुए सिर पर उसे कई बार लहराया। मैं उन साधुओं के बीच खुद को सहज पा रहा था। इतने में मैंने मोबाइल निकाला और अनपे दोस्तों को पूरी कहानी बताई। दोस्तों ने होटेल वाले को जगाया और रात को ही गाड़ी लेकर एक घंटे में उश मंदिर में पहुंच गए। मैंने पूरी कहानी बताई तो उन्हें यकीन नहीं हुआ। उन्हें लगा कि मुझे वहम हुआ है। वह रात मैंने और मेरे दोस्तों ने उसी मंदिर में बिताई और होटेल के उस भले मालिक ने भी। सुबह होते ही मैं मंदिर से बाहर निकला और दोस्तों को बताया कि कहां क्या हुआ था। इस बीच वहां मौजूद साधु ने मुझे जाने से पहले भभूत की पुड़िया देते हुए कहा, डर लगे तो इसे लगा लेना। बाकी कोई बात नहीं।

हम लोग वहां से बैजनाथ गए, होटेल में ब्रेकफस्ट किया और बाबा बैजनाथ मंदिर में माथा टेका। वहां जाकर मैंने भगवान से प्रार्थना की कि ऐसा कभी दोबारा न हो, जैसा बीती रात हुआ। उसके बाद हम सब बिलिंग गए, दोस्तों ने इस बार उड़ान भी भरी, लेकिन मैं किसी औऱ ही दुनिया में था। मन किया तुरंत यहां से भाग जाऊं। दोस्तों का प्लान और रुककर कहीं और घूमने का था, लेकिन मैंने कहा कि मुझे चंडीगढ़ ले चलो। मैंने इसके लिए मंडी जाने के लिए कहा और वहां से चंडीगढ़ के लिए बस पकड़ने के लिए प्लान बनाया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि दोबारा उस पुल से होकर गुजरना पड़े।

उसी रात हम चंडीगढ़ आ गए। घबराहट कई दिनों तक बनी रही और कई दिनों तक बाबा जी की पुड़िया अपना पास रखी। कभी कोई सपना या ऐसी घटना दोबारा मेरे साथ नहीं हुई। और इसके लिए मैं भगवान का शुक्रगुजार हूं। बाबा जी की दी हुई पुड़िया आज भी पूजा के सामान के साथ रखता हूं। मगर 7-8 साल बाद आज मैं उस घटना के बारे में सोचता हूं तो उतना डर नहीं लगता। मेरा मतलब है कि आज इतने सालों बाद लगता है कि मुझे शायद कोई भ्रम हुआ होगा पुल की तरफ देखकर और वो गाड़ी में जो लोग थे, वे भी बेचारे मेरी ही तरह कुछ देखकर डर गए होंगे। मैंने कई सालों तक यह कहानी किसी को नहीं सुनाई। मेरे दोस्त जो मुझे डरपोक समझते थे, उन्होंने हमेशा मेरा मजाक उड़ाया। आज मैं शादी-शुदा हूं, बच्चे हैं। उनके साथ भी ये कहानी नहीं सुना पाया, क्योंकि लगता था कि शायद वे भी मेरा मजाक उड़ाएंगे। मगर मैं जानता हूं कि उस रात जो मेरे साथ हुआ, वह सामान्य नहीं था। जो कुछ भी था, डरावना था। इसलिए इन हिमाचल को भेज रहा हूं कि मेरे इस अनुभव को वह कहानी के तौर पर ही सही, दुनिया के सामने ला सके।

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(लेखक गुड़गांव में एक मल्टीनैशनल सॉफ्टवेयर फर्म में कार्यरत हैं। उन्होंने ईमेल आईडी प्रकाशित न करने की गुजारिश की है।)

DISCLAIMER: इन हिमाचल का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें।

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