कौन थी वह बड़ी-बड़ी आंखों वाली बला की खूबसूरत लड़की?


पिछले दिनों हमने आपको टीवी पत्रकार पंकज भार्गव की आपबीती बताई थी, जिसमें उन्हें ‘बेलीराम नाम के शख्स का भूत’ मिला था। उन्होंने आईबीएन 7 में रहते हुए आईबीएन खबर वेबसाइट पर एक और आपबीती साझा की थी। हम उस वेबसाइट से यह लेख आभार प्रकट करते हुए यहां प्रकाशित कर रहे हैं।

मेरा घर हाइडवेल सेट नं – 3 नीयर चौड़ा मैदान शिमला – 171004…… ये पूरा पता है। सौ साल पहले किसी अंग्रेज़ का ठिकाना था। आयशा बेगम नाम की महिला ने उसे ख़रीदा और फिर लगभग 40 साल पहले मेरे पिताजी ने उसी भद्र महिला से उसे ले लिया। लकड़ी का पुराना सा घर…टीन की लाल छत, धुएंवाली चिमनी।

पता है जब टीन की छत पर बारिश पड़ती है तो आवाज़ ऐसी होती है कि छप्पड़ फट जाए। घना देवदार का जंगल और उसके बीच में ये घर, मेरे बचपन की तमाम यादें जुड़ी हैं इससे। मैं, मेरा छोटा भाई, एक बहन जो अब इस दुनिया में नहीं है। हमारी शरारतें, पिठ्ठू और छिपन छिपाई का खेल और फिर अचानक सब छूमंतर।….हम कब बड़े हो गए कुछ पता ही नहीं चला।

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पिताजी का तबादला हुआ मां, भाई और बहन सब दिल्ली आ गए, मैं अकेला शिमला में रह गया। उस बड़े से घर में जहां सुबह खूबसूरत है, पर रात बड़ी अकेली सी और डरावनी भी। चलिए अब पड़ोस के एक शख़्स से आपका परिचय करवा दूं नाम है फणीभूषण भट्टाचार्य…प्यार से हम उन्हें फोनी दादा बुलाते हैं, एक कैंटीन है इनकी कालीबाड़ी में। यहां बंगाली लोगों ने एक बड़ा सा मंदिर बनवाया है, यहीं इनकी एक प्यारी सी कैंटीन भी है। अकेला रहता था मैं बीए कर रहा था तो अक्‍सर खाना खाने चला जाता था।

उस दिन क्या हुआ था— 8 दिसंबर की रात थी, शाम सात बजे मैं चल दिया। अपने आप से बातें करता हुआ, राम अल्लाह रब जीज़स सभी को याद करता हुआ। ठंड और डर भइया डेडली कॉम्बिनेशन होता है। 20 मिनट का रास्ता डरते-डरते कट गया कब कालीबाड़ी आ गया कुछ पता ही नहीं चला। जम कर खाना खाया माछ भात बंगाली भोजन फोनी दादा की कैंटीन की खासियत है, सो वो ही खाया। फिर सोचा लगे हाथ चाय भी पी ली जाए। कांच के गिलास में चाय पी जाए, तो दो फायदे हैं स्वाद भी मिल जाता है और ठंड के इस मौसम में हाथ भी गर्म हो जाते हैं।

फोनी दादा रोज़ मेरे साथ घर जाते थे, पर आज होनी को कुछ और ही मंजूर था। बोले पोंकोज- मेरा प्यारा सा बंगाली नाम दादा ने ही रखा था। मुझे आज देर होगी तुम निकलो। मरता क्या न करता सो निकल पड़ा मंदिर के गेट पर पहुंचा तो सुनिये…ये आवाज़ आई… मुड़कर देखा एक लड़की थी, गोरी सी बला की खूबसूरत….बड़ी-बड़ी आंखे पीले लिबास में क्या कहूं और उसके बारे में।

सिसिल होटल कहां है। आपको मालूम है उसने पूछा।

हां, मैंने जवाब दिया। मेरे घर के पास है आप चाहें तो मेरे साथ चल सकतीं हैं। और हम चल पड़े।

कलकत्ते के बड़े इंडस्ट्रिअलिस्ट की बेटी है, हर साल घूमने निकलती है, इस बार शिमला चुना घूमने के लिए ये कहा उसने मुझसे। शरतचंद्र, टैगोर सत्यजीत रे , शर्मिला, उत्तम कुमार, आर डी बर्मन सब पर चर्चा हुई। अचानक वो गाने लगी ..तुझ से नाराज़ नहीं ज़िन्दगी…लता का गाना उसकी आवाज़ में बहुत सुरीला लग रहा था।

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खांसती थी बीच-बीच में गाते हुए। थोड़ी बीमार लग रही थी। भगवान को कोसा मैंने..ऊपरवाले हसीनों को बीमार न किया कर। ढलान पर एक बार पांव लड़खड़ाया तो उसने मेरा हाथ भी पकड़ा। सच बोलूं मुझे अच्छा लगा।

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एक और चाय की प्याली का मन था सोचा की कुछ और वक्त बिताने को मिलेगा उसके साथ। उससे कहा तो वो राज़ी भी हो गई ये कहते हुए की आज उसका आखिरी दिन है शिमला में। हम निकल पड़े वापस माल रोड। बालजीज़ में चाय भी पी ली। 9 बज गए।

उसकी बातों से ऐसा ज़रूर लग रहा था, कि वो पहले कई बार शिमला आई है और मुझसे झूठ बोल रही है। कभी हंसती थी तो कभी सीरियस हो जाती थी। चूड़ेलें खूबसूरत होतीं हैं मैंने सुना था। पर हां उसके हाथ पांव टेड़े नहीं थे सो यकीन हो गया लड़की ही है चुड़ैल नहीं। वो गाती जा रही थी।

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शिमला की खासियत ये है की अगर आप अपनी प्रेमिका के साथ हैं तो बैठने के लिए जगह और जेब में पैसे नहीं चाहिए, चलते जाइये उसके साथ एक खूबसूरत एहसास होता जाएगा।

बातें और बातें, कुछ गानों पर डिस्कश्न और अचानक सिसिल होटल आ गया।

कम्बखत ये रास्ता आज इतना छोटा कैसे हो गया…ये सोचा मैंने…

बाय….कलकत्ता आना….कागज़ मेरी तरफ बढ़ा दिया उसने।

माया…यही लिखा था…

और हां साल्ट लेक कलकत्ते का पता था।

मैं उसे छोड़कर घर आ गया अकेला।

सुबह हुई घर की घंटी बजी दरवाज़ा खोला तो फोनी दादा थे

मैंने माया की बात कही…

दादा के हाथ से चाय की प्याली छूट गई।

एक अंग्रेज़ अफसर था …बंगाली लड़की के प्यार में पड़ गया …माया नाम था उसका। एक रोड ऐक्सिडेंट में दोनो की मौत हो गई तभी से भटक रही है दोनों की आत्मा.. कभी अंग्रेज़ मिल जाता है तो कभी ये माया।

मैं फौरन भाग कर होटल गया। रिसेप्शन पर रजिस्टर चैक किया…पूछा भी लोगों से…..

जवाब वही था।

कोई माया नहीं ठहरी थी वहां।

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DISCLAIMER: इन हिमाचल का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें।

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