आनंद शर्मा और विप्लव ठाकुर से हिसाब क्यों नहीं मांग रही कांग्रेस?

आई.एस. ठाकुर।। 2019 का चुनाव नजदीक आते देख कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी के सांसदों को घेरने की रणनीति बनाई है। वे भारतीय जनता पार्टी के सांसदों से पिछला चार साल का हिसाब मांग रहे हैं कि आपने क्या किया। चलिए, राजनीति में यह घेराव, विरोध, नारेबाजी चलती है। मगर समय आ गया है जब इन पारंपरिक और अप्रासंगिक हो चुके तरीकों से राजनेताओं को किनारा कर लेना चाहिए।

ऐसा इसलिए क्योंकि सांसदों से हिसाब तो तब मांगा जाए जब उनके द्वारा किए गए कामों की जानकारी गोपनीय हो और वे देने से इनकार कर रहे हों। लेकिन आज के दौर में सांसदों की हाजिरी, उनके द्वारा पूछे गए सवाल, उनके द्वारा पेश किए गए बिल तक की जानकारी राज्यसभा और लोकसभा की वेबसाइट या अन्य डेटा प्रोवाइडर वेबसाइट्स मिल जाती है।

लॉजिक क्या है?
रही बात कि सांसद निधि इन सांसदों ने कहां खर्च की, इसका हिसाब लेना भी मुश्किल नहीं। पहली बात तो यह कि आजकल ट्रेंड चला है कि सांसद पहले ही अपने खर्च की जानकारी सार्वजनिक कर रहे हैं कि कहां उन्होंने कितने पैसे खर्च किए। उदाहरण के लिए मंडी के ही सांसद ने अपनी सांसद निधि के व्यय की जानकारी सार्वजनिक कर दी थी।

बावजूद उसके कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उनके कार्यालय के बाहर हंगामा किया और घर का भी घेराव करने की कोशिश की। इसी तरह हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर के व्यय की जानकारी सार्वजनिक थी, फिर भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके घर को घेरने की कोशिश की और जब पुलिस ने रोका तो कहने लगे कि पुलिस ने धारा 144 लगाकर गलत किया।

घर का घेराव गलत
पहली बात तो यह कि सब जानकारियां और जवाब सार्वजनिक होने के बावजूद हिसाब मांगने के नाम पर हो-हल्ला करना दिखाता है कि राजनीतिक पार्टियों के नेतृत्व के पास विजन नहीं है। कार्यकर्ताओं को एकजुट करना है तो कोई और आयोजन करें, निराधार मुद्दे पर प्रदर्शन करके और अखबारों पर एक खबर लगवाने से कुछ नहीं होगा।

अब वह दौर नहीं रहा कि जनता अखबारों के आधार पर अपनी राय बनाया करती थी। हिमाचल में अब साक्षरता के साथ लोगों की समझ और जागरूकता भी बढ़ी है। वे जानते हैं कि कौन सी पार्टी कौन सा धरना या प्रदर्शन किस मकसद से कर रही है। ऊपर से घर का घेराव करना गलत है।

नेताओं और जन प्रतिनिधियों से कड़े सवाल पूछे जाने चाहिए। उनसे पूछा जाना चाहिए कि भई, आप जो बड़ी-बड़ी बातें करते थे, उन्हें जब चार साल में पूरा नहीं कर पाए तो अब कब करोगे। लेकिन इसके लिए सार्वजनिक मंचों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। कार्यालय तक तो ठीक, मगर घर पर जाकर प्रदर्शन करना गलत है।

दरअसल हिमाचल प्रदेश में क्या, देश में कहीं भी ऐसी परंपरा नहीं रही है कि राजनीति को किसी के घर तक ले जाया जाए। सरकारी आवासों पर जाकर सांकेतिक विरोध तो चलता था, मगर गांव के पैतृक घरों में जाकर राजनीति हुड़दंग की पंरपरा नई है। कहने का मतलब यह है कि जन प्रतिनिधियों आदि को जहां सरकारी आवास मिलते हैं, उस एरिया में सुरक्षा होती है। मगर नेताओं के जो घर गांव-देहात में हैं, वहां पर चौकीदार तक की व्यवस्था नहीं है।

अगर आप गांव में पैतृक घरों में जाकर राजनीतिक प्रदर्शनों की परंपरा शुरू करेंगे तो कल को आपकी और पुलिस की अनुपस्थिति में कोई भी वहां पहुंच सकता है। इससे नेता से नाराजगी के शिकार उनके परिजन हो सकते हैं। वे बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे हो सकते हैं जिनका आपके नेता या राजनीति से कोई संबंध नहीं है।

फेसबुक पर ही एक मित्र ने इस संबंध में टिप्पणी की थी, जिन्होंने लिखा था कि इस तरह की पंरपरा गलत है क्योंकि कल को आप भी इसके शिकार हो सकते हैं। विरोधी पार्टी के लोग जब आपके घर पर आकर हंगामा करें तो आपके परिजन परेशान होंगे या नहीं?

राज्यसभा सांसदों से हिसाब क्यों नहीं
कांग्रेस के कार्यकर्ता लोकसभा के सांसदों से तो हिसाब मांग रहे हैं मगर राज्यसभा के सांसदों से नहीं। इसलिए क्योंकि लोकसभा की चारों सीटों पर भाजपा के सांसद हैं जबकि राज्यसभा की तीन में से दो सीटों पर कांग्रेस के सांसद हैं। इसीलिए कांग्रेस कार्यकर्ता जेपी नड्डा से भी हिसाब नहीं मांग रहे क्योंकि ऐसा किया तो आनंद शर्मा और विप्लव ठाकुर से भी हिसाब मांगना पड़ेगा।

बता दें कि राज्यसभा सांसदों के पास भी सांसद निधि खर्च करने का अधिकार है। आनंद शर्मा 3 अप्रैल 2016 से हिमाचल से राज्यसभा के लिए चुने गए हैं जबकि विप्लव ठाकुर 10 अप्रैल 2014 से सांसद हैं। यानी आनंद शर्मा 2 साल और विप्लव 4 साल से सांसद हैं।

क्या इन सांसदों से पूछा नहीं जाना चाहिए कि आपने हिमाचल के संबंध में कितने सवाल पूछे, कितनी सांसद निधि कहां खर्च की और हिमाचल की जनता का वहां पर क्या प्रतिनिधित्व किया? बात यह नहीं है कि चुनाव तो लोकसभा के हैं, इसलिए क्यों राज्यसभा वालों से पूछा जाए। बात यह है कि आप ये सवाल शायद इसीलिए उठा रहे हैं न कि हिमाचल के लिए, यहां की जनता के लिए सांसदों ने क्या किया। तो फिर आपके लोकसभा ही नहीं, राज्यसभा के सांसदों का भी हिसाब लेना चाहिए क्योंकि राजनीति सिर्फ वोट लेने के लिए नहीं होती।

राजनीति दमदार होनी चाहिए। अपने गिरेबान को साफ करने के बाद ही दूसरे को घसीटना चाहिए। बीजेपी से जरूर सवाल पूछे जाने चाहिए। मगर कांग्रेस का इन सवालों को पूछना तब तारीफ के काबिल होगा, जब पहले उसके सांसद अपना हिसाब किताब जनता के सामने रखेंगे और बोलेंगे, ये देखिए, हमने अपने कार्यकाल में विकास के ये ये कार्य किए हैं, अब बीजेपी वाले बताएं कि उन्होंने क्या किया है।

मगर अफसोस, न तो पत्रकार ये सवाल कांग्रेस के नेताओं से पूछते हैं और न ही बीजेपी के नेता इस सवाल को लेकर कांग्रेस को घेर रहे हैं। क्योंकि अगर बीजेपी वालों ने बदले में आनंद शर्मा और विप्लव शर्मा का हिसाब मांगा तो उन्हें पहले अपनी पार्टी के राज्यसभा सांसद जेपी नड्डा का हिसाब देना होगा। यानी अपनी मजबूरियों के आधार पर इन राजनीतिक पार्टियों के फ्रेंडली मैच आगे भी जारी रहेंगे।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिखते रहते हैं, उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

ये लेखक के निजी विचार हैं

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