पौंग डैम विस्थापित: जो न हिमाचल के रहे, न राजस्थान के

इन हिमाचल डेस्क।। साल 1966 में बने पौंग बांध के कारण 330 गांव पानी में डूब गए थे। वैसे तो यह बांध पंजाब के तलवाड़ा के पास बना है, मगर इसके कारण हिमाचल प्रदेश की गुलेर घाटी की बेहद उपजाऊ जमीन डूब गई थी। चूंकि इस बांध का लाभ राजस्थान को भी होना था इसलिए उसके ऊपर विस्थापित लोगों को जमीन देने की जिम्मेदारी थी। दरअसल ब्यास नदी पर बने इस बांध से 51 प्रतिशत पानी राजस्थान को जाता है।

शुरू में 20,362 विस्थापितों ने मुआवजे का दावा पेश किया मगर राजस्थान ने 16,300 विस्थापितों का दावा स्वीकार किया। राजस्थान सरकार की जिम्मेदारी थी कि इन लोगों को अपने यहां उपजाऊ जमीन दे। इस संबंध में हिमाचल प्रदेश के और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के बीच 1970 में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसके तहत हर परिवार 15.625 एकड़ जमीन दी जानी थी।

इनमें से 11,300 लोगों को तो जमीन मिल गई मगर लेकिन इनमें से 700 को अभी भी राजस्थान में जमीन पर कब्जा नहीं मिला है। वे विभिन्न अदालतों में केस लड़ रहे हैं क्योंकि स्थानीय लोगों ने उन्हें अलॉट की गई जमीनों पर कब्जा किया हुआ है। यही नहीं, 2501 लोग ऐसे हैं, जिन्हें अब तक जमीन मिली ही नहीं है। वे इंतजार कर रहे हैं कि राजस्थान सरकार ने उन्हें जो जमीन देने का वादा किया था, वह पूरा किया जाए।

राजस्थान सरकार ने जिस 16,300 को जमीन देने का वादा किया था, उनमें से 5,442 का दावा राजस्थान की सरकार ने खारिज कर दिया है। यही नहीं, जिन लोगों को राजस्थान सरकार जैसलमेर में जमीन दे रही थी, उनमें से 2501 की वित्तीय मदद करने से उसने इनकार कर दिया है।

ध्यान देने की बात यह है कि ऊपर की जो संख्या है, वह एक सदस्य के आधार पर है मगर सोचिए कि 1962 से लेकर अब तक उनका परिवार कितना बढ़ गया होगा।

दी जा रही है सूखी जमीन
दरअसल इन लोगों को राजस्थान सरकार की ओर से उपजाऊ जमीन मिलनी थी मगर उन्हें जैसलमेर के सूखे इलाकों में जमीन दी जा रही है। ऐसे में पौंग डैम विस्थापित इस जमीन को लेने के लिए तैयार नहीं है।

देहरा से निर्दलीय उम्मीदवार होशियार सिंह और हमीरपुर से भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर ने मांग उठाई थी कि राजस्थान सरकार अगर उपजाऊ जमीन नहीं दे पा रही तो वह वित्तीय मदद कर दे ताकि पौंग डैम विस्थापित कहीं और ढंग की जमीन खरीद लें।लेकिन अंग्रेजी अखबार ‘द ट्रिब्यून’ ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि राजस्थान सरकार ने सचिव स्तर की बातचीत में किसी तरह की वित्तीय मदद देने में असमर्थता जताई है।

किसके लिए छोड़ी अपनी जमीन?
सोचिए कि कल को अचानक कोई प्रॉजेक्ट मंजूर हो जाए और आपको कहा जाए कि इस जमीन को छोड़िए, इतने रुपये मुआवजा लीजिए और हिमाचल छोड़कर राजस्थान में शिफ्ट हो जाइए। तो क्या आप अपनी जन्मभूमि छोड़कर चले जाएंगे? आप भले न कहें मगर सरकार के आगे किसकी चलती है। आपको जाना तो पड़ेगा। मगर सोचिए, आपसे किया गया वादा पूरा न हो तो आप कहां जाएंगे?

हिमाचल प्रदेश के साथ विडंबना यह रही है कि यहां लगाए गए बिजली के प्रॉजेक्टों से लाभ तो पड़ोसी प्रदेश भी उठा रहे हैं, मगर विस्थापन और जमीनें आदि डूबने का ज्यादा नुकसान हिमाचल के लोगों को उठना पड़ता है। एक बार प्रॉजेक्ट बन जाता है तो विस्थापितों को पूछता कोई नहीं। यही हाल कई बांधों से विस्थापित हुए लोगों का है। लोकसभा चुनाव आ रहे हैं तो सांसद इसका मुद्दा उठाएंगे, विधानसभा चुनाव आने पर विधायक मुद्दा उठाते हैं। फिर विस्थापितों को हर कोई भूल जाता है। ऐसी ही स्थिति पौंग डैम के उन विस्थापितों की है, जो न हिमाचल के रहे और न राजस्थान के।

 

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