कांगड़ा फिर बना ‘सत्ता का आधार’, कांग्रेस को मिलीं 10 अहम सीटें

धर्मशाला, मृत्युंजय पुरी।। हिमाचल में कांगड़ा का सत्ता का द्वार यूं ही नहीं कहा जाता। इस जिला से जो भी पार्टी 9 से 11 सीटें जीतती है, प्रदेश में उसी की सरकार बनती है। एक बार फिर यह बात साबित हो गई है। इन चुनावों में कांग्रेस को कांगड़ा की 15 में से 10 सीटों पर जीत हासिल हुई है। यानी जिला से मिली 10 सीटों के दम पर कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है। कुल 40 सीटों में से 10 कांगड़ा से ही कांग्रेस को मिल गई हैं।

पिछले 6 चुनावों की बात करें, तो प्रदेश मेंkangra कांगड़ा से मिली सीटों का आंकड़ा ही सरकार बनाने में बड़ी भूमिका अदा करता आया है। पांच साल पहले हुए विधानसभा चुनावों में कांगड़ा से भाजपा को 11 सीटें मिली थीं। इसी के दम पर भाजपा ने सरकार बनाई थी। भाजपा को मिली 44 सीटों में एक चौथाई हिस्सा कांगड़ा का था।

साल 2012 के चुनावों की बात करें, तो उस समय कांग्रेस को कांगड़ा से 10 सीटें मिली थीं। उन चुनावों में पार्टी को कुल 36 सीटें मिली थीं, यानी एक तिहाई सीटें इसी जिला से थीं, जिसके दम पर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। हालांकि उन चुनावों में पुनर्सीमांकन के बाद थुरल का वजूद खत्म हो गया था। जिला में 16 की बजाय तक से 15 सीटें हैं। इससे पहले साल 2007 के चुनावों की बात करें, तो भाजपा के 9 कैंडीडेट कांगड़ा जिला से जीते थे। उन चुनावों में भाजपा को पूरे प्रदेश मेें 41 सीटें मिली थीं। कांगड़ा उस समय भी लीडर की भूमिका में रहा था।

साल 2003 के चुनावों की बात करें, तो कांगड़ा से कांग्रेस को 11 सीटें मिली थीं। इन्हीं सीटों के दम पर कांग्रेस के हाथ सत्ता की चाबी आई थी। यही नहीं, वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में कांगड़ा जिले से भाजपा ने 10 सीटों के साथ बड़ी जीत दर्ज की थीं। उस दौरान कांग्रेस पार्टी को पांच सीटें मिली थीं। एक निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली थी। कांगड़ा ने सत्ता की राह तैयार की और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। बहरहाल एक बार फिर कांगड़ा ने सत्ता की राह कांग्रेस को दिखा दी है।

अब तक एक बार बना सीएम, मगर नहीं मिला पूरा कार्यकाल

प्रदेश के सबसे बड़े और सबसे ज्यादा विधानसभा सीटों वाले जिला कांगड़ा से सिर्फ शांता कुमार ही सीएम पद तक पहुंच पाए हैं। वह वर्ष 1977 से 80 और 1990 से 1992 तक सीएम रह चुके हैं। दोनों ही बार उनका पांच साल कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया है।

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